वैसे पिछले ऑफिस से इसी तरह पिछले बार जब आये थे हम तो तुमने बहुत डांटा था, कि ऐसे बिना बताये कहीं आया जाया मत करो...चिंता होती है हमको. हम उस बार बिना कुछ बोले वापस आ गए थे, पर हम बहुत रोये थे, चुप चाप ऑफिस के बाथरूम में जाके...फिर आँख पर पानी का छींटा मारे और हमेशा की तरह हंसने और हल्ला करने लगे. क्या करें, हम ऐसे ही हैं...हंसने का दिखावा नहीं होता हमसे...सब कुछ अन्दर रख कर भी आराम से हँस लेते हैं हम.
आजकल तुमको बहुत काम रहता है, इन फैक्ट तुमको पिछले काफी दिनों से बहुत काम रहता है...सुबह, शाम रात, वीकडे वीकेंड हमेशा. पता नहीं कौन सी बात करनी है हमको तुमसे कि बात जैसे दिल के आसपास कहीं फिजिकली फंसी हुयी लगती है. बात से जैसे खून का अवरोध रुक जाता है और दिल को बहुत मेहनत करनी पड़ती है नोर्मल तरीके से चलने के लिए. आखिर शारीर के बाकी हिस्से भी तो अपने हिस्से का खून मांगते हैं.
मुझे आजकल भूख लगने पर भी खाने का मन नहीं करता दिन भर खाली आलतू फालतू बिस्किट, चोकलेट खाती रहती हूँ...क्या मैंने तुमको बताया है कि आजकल हमको डेरी मिल्क अच्छा नहीं लगता है? खाना पता नहीं क्यों हलक के नीचे नहीं उतरता मैंने शायद बहुत दिन से मन भर अच्छे से खाना नहीं खाया है. मुझे हर वक़्त दिल के आसपास एक दर्द जैसा होता रहता है...चुभता, टूटता हुआ दर्द. सांस भी ठीक से नहीं ली जाती है हमसे.
तुम बहुत देर रात को आते हो वापस और उस वक़्त मैं लगभग आधी नींद में होती हूँ, सुबह जब मैं ऑफिस के लिए आती होती हूँ तुम आधी नींद में होते हो. ये आधी आधी बंटी हुयी नींद ना सोने देती है ठीक से ना जगने देती है. मुझे पता नहीं क्यों साहिबगंज का मेरा घर याद आता है, उस घर में बहुत ऊंची छत थी या ऐसा भी हो सकता है कि ढाई साल की बच्ची के हिसाब से वो छत बहुत ऊंची हो. जब मैं वहां रहती थी तो पापा को बहुत कम देख पाती थी, पापा देर रात आते थे और सुबह सुबह चले जाते थे. मुझे उस छोटी उम्र में उस बड़े घर में पापा की बहुत याद आती थी और पापा को देखने का मन करता था.
शाम को ऑफिस से जल्दी घर आ जाती हूँ, आठ बजे से लगभग दस बजे तक कालोनी में यूँ ही टहलती रहती हूँ, घर में लाईट नहीं रहती ना अक्सर इसलिए...उस समय कुछ दोस्तों से बात भी करती हूँ फ़ोन पर, कभी घर भी बात करती हूँ...पर सच में मुझे उस समय तुमसे बात करने का बहुत मन करता है...थोड़ी सी देर के लिए भी. पर उस समय तुम्हारी कॉल होती है तो तुम एक मिनट भी मुझसे बात नहीं कर पाते हो. मुझे उस वक़्त बड़ी शिद्दत से इस बात का अफ़सोस होता है कि मैं एक लड़की हूँ...नहीं तो मैं सिगरेट पीती...वहीँ एक पनवाड़ी की दुकान भी है. पर सिगरेट पीने वाली लड़कियों को 'ईजी' समझ लेते हैं लोग. और मुझे मेरी शाम की वाक् में कोई लफड़ा नहीं चाहिए.
कहा जा सकता है कि सिगरेट पीने कि इत्ती इच्छा है तो घर में क्यों नहीं पी लेते हैं. पर नहीं, सिगरेट पीने का मन नहीं है...मन है कि अँधेरे सुनसान जैसे रास्तों पर टहलते हुए कोई गीत सुनते हुए सिगरेट पी जाए. इस इच्छा का अपने पूरेपन में वजूद है, बाकी एलिमेंट्स के बिना नहीं.
मुझे सच में पूरी जिंदगी कम लगती है तुम्हारे साथ बिताने के लिए. मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ. बहुत.
yeh lekhak log itna imaandaar kaise ho jate hai likhte samay..kya unke mun mein khayal nahe aate...privacy ya kuch aur...ya shayad prem mein jub koi likhta hai to sochta nahi.......imaandaari se dil ke bataon ko kaagaz pur uker deta hai... shayad.....voh jagjit singh ki ghazal yaad aa agye..hosh walon ko khabar kya....
ReplyDeleteवैसे तो मैं सिगरेट नहीं पीता पर आपकी ये पोस्ट पढ़ते ही एक सिगरेट जला रहा हूँ, बहुत शुभकामना!
ReplyDeleteis it fiction or truth?
ReplyDelete@madhav, does it really matter?
ReplyDeletepuja...
ReplyDeletewhatever it is....
it is just awesome...
i likd it alot..
seedha dil ko chhu gayi......
keep it up...
aur haan
meri kavitayein aapke aagman ki pratiksha kar rahi hain.....
भाई, आधी-अधूरी भूख, आधी-अधूरी नींद....पूरी याद.
ReplyDeleteलिखा बढ़िया है.
राजकमल बढाते हैं चिलम
ReplyDeleteउग्र थाम लेते हैं.
मणिकर्णिका घाट पर
रात के तीसरे पहर
भुवनेश्वर गुफ्तगू करते हैं मजाज से.
मुक्तिबोध सुलगाते हैं बीडी
एक शराबी
मांगता है उनसे माचिस.
'डासत ही गयी बीत निशा सब'.
mujhe bhi achcha laga ise padhna.
ReplyDeleteAll the best.
ReplyDeleteअमज़द इस्लाम का एक शेर
ReplyDeleteजो उतर के ज़ीना-ए-शब से तेरी चश्म-ए-खुशबू में समां गए
वही जलते बुझते से महर-ओ-माह मेरे बाम-ओ-दर को सजा गए.
पूजा........बहुत अच्छा लिखा है आपने........दिल को छू सा गया।
ReplyDeleteशाम के वक्त दूर से उस लैंप पोस्ट को देखना अच्छा लगता है...जब बल्ब जल जाता है, तो उसे चांद मान लेता हूं...चांद रीचेबल लगता है...
ReplyDeleteलहरें अच्छी हैं पूजा जी.
यह मसला सिर्फ पूजा-कुणाल तक ही सीमित नहीं है.. सभी घरों का होगा... पर तुमने अपने मार्फ़त कुछ अपनी बात कही है... कुछ दिनों पहले लगातार जब ३ दिन घर से बाहर रहा तो मेरी बहन से भी शिकायत के लहजे में कहा था "मुझसे कोई बात नहीं करता" बात छोटी सी थी पर दिल पर असर कर गयी थी... घर लौट कर आओ तो सुनता हूँ "आदमी देख कर ख़ुशी होती है"... पहली बार में पढ़ कर इतना भावुक हो गया था की अपने को रोके रखा ... आज संयत होकर लिख रहा हूँ...
ReplyDeleteIts really touchable Pooja. I love it.
ReplyDeletekunal bahut khushkismat hain...pooja....bahut sundar post
ReplyDeletewah kya bat hi...
ReplyDeletekitna sach sach likha hi...!
sachchi mohabbat mukaddar walo ko milati hi..!
Bahut hi acha ,,achi abhivyakti hai ,,, well said ki d'nt matter realty or fiction ,, but dil ki baat hai
ReplyDeletepadhta padhte meri ankho me aansu aa gay
ReplyDeletesundera bhivyakti..
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