26 April, 2018

तुमसे बात करना
बारिश में भीगना था
पोर पोर से उड़ती थी
ललमटिया देहगंध
छम छम हँसता था
आम का बौर 

तुमसे बात करके
धुल जाती थी कविताएँ
दिखते थे नए, चमकीले बिम्ब
तुम हँसते थे, और
पिकासो का नीला अवसाद
धुल जाता था आत्मा से

तुमसे बात किए बिना
मैं उजड़ता हुआ किला हूँ
टूटती मुँडेरों वाला
जिस पर दुश्मन या दोस्त
कोई भी आक्रमण कर सकता है

बरसों बीते तुमसे बात किए हुए
मैं इन दिनों,
तलवार की सान तेज़ करती हूँ
दुर्गा कवच पढ़ती हूँ
जिरहबख़्तर पहन के सोती हूँ
डरती हूँ

अपने टूटे हुए दिल से खेलती
सोचती हूँ अक्सर
जाने तुम मेरे हृदय का कवच थे
या तुमने ही मेरा कवच तोड़ा है।

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