24 July, 2014

लूसिफर. तुकबन्दियाँ और ब्लैक कॉफ़ी.

जरा जरा खुमार है. रात के जाने कितने बज रहे हैं. अब सिर्फ कहीं भाग जाना बचा है. मैं हसरतों से पोंडिचेरी नाम के छोटे से शहर को देखती हूँ. इस शहर में कुछ सफ़ेद इमारतें हैं छोटी छोटी, ऐसा मुझे लगता है कि फ़्रांस होता होगा कुछ ऐसा ही...यहाँ का आर्किटेक्चर फ्रेंच है. मैंने फ़्रांस को देखा नहीं है...सिवाए सपनों के. दुनिया में इकलौता ये शहर भी है जहाँ औरबिन्दो आश्रम में एक दुपहर श्री माँ के पदचिन्हों के पास खड़े होकर महसूस किया था कि माँ कहीं गयी नहीं है. मेरे साथ है. तब से बाएँ हाथ में एक चांदी की अंगूठी पहनती हूँ...उनके होने का सबूत. खुद को यकीन दिलाने का सबूत कि मैं अकेली नहीं हूँ.

सब होने पर भी प्यार कम पड़ जाता है मेरे लिए. हर किसी को जीने के लिए अलग अलग चीज़ों की जरूरत होती है. मुझे लोग चाहिए होते हैं. कभी कभी धूप, सफ़र और मुस्कुराहटें चाहिए होती हैं तो कभी सिर्फ हग्स चाहिए होते हैं. जीने के लिए छोटे छोटे बहानों की तलाश जारी रहती है. आज दो लोगों से मिली. जाने कैसे लोग थे कि उनसे कभी पहले बात की ही नहीं थी...साथ एक ऑफिस में काम करने के बावजूद. नॉर्मली मुझे कॉफ़ी पी कर नशा नहीं होता है मगर कुछ दिनों की बात कुछ और होती है. मैंने कहा कि मैं तुम्हें हमेशा लूसिफ़ेर के नाम से सोचती हूँ...उसने पूछा 'डू यू नो हू लूसिफ़ेर इज?' मैंने कहा कि शैतान का नाम है...फिर मैंने कहा कि कभी उसके नाम का कोई किरदार रखूंगी तो उसका नाम लूसिफ़ेर ही लिखूंगी. उसने मुझे बताया कि लूसिफ़ेर शैतान का बेटा है. मैंने कहा कि जब सच में कहानी लिखूंगी तो रिसर्च करके लिखूंगी. चिंता न करे. उसने बताया कि लूसिफ़ेर शैतान का बेटा है. मुझे कुछ तो ध्यान है कहानी के बारे में...पर ठीक ठीक मालूम नहीं है. मुझे वो अच्छा लगता है. जैसे कि मुझे शैतान अच्छा लगता है. शैतान के पास अच्छा होने की और दुनिया के हिसाब से चलने की मजबूरी नहीं होती है.

मैं जो लिखती हूँ और मैं जो होती हूँ उसमें बहुत अंतर नहीं होता है...होना चाहिए न? लिखना एक ऐसी दुनिया रचना है जो मैं जी नहीं सकती. एक तरह की अल्टरनेट रियलिटी जहाँ पर मैं खुदा हूँ और मेरे हिसाब से दुनिया चलती है.

बहरहाल बात कर रही थी इन दो लोगों की जिनसे मैं आज मिली. मैंने उनके साथ कभी काम नहीं किया था. उनके लिए मैंने एक गीत लिखा था. यूँ मैंने दुनिया में कुछ खास अच्छे काम नहीं किये हैं मगर ये छोटा सा गीत लिख कर अच्छा सा लगा. जैसे दुनिया जरा सी अच्छी हो गयी है...जरा सी बेहतर. मैं आजकल कवितायें भी नहीं लिखती हूँ. ऑफिस में कुछ कॉर्पोरेट गीत देखे तो वो इतने ख़राब थे कि देख कर सरदर्द होने लगा. और दुनिया में कुछ भी नापसंद होता है तो उसे बदलने की कोशिश करती हूँ...इसी सिलसिले में दो गीत लिखे थे...दोनों बाकी लोगों को बहुत पसंद आये...मेरे हिसाब से कुछ खास नहीं थे. मगर बाकियों को पसंद आये तो ठीक है. जैसे गीत हमें कोई बाहरी गीतकार ३० हज़ार रुपये में लिख कर दे रहा था उससे तो मेरे ये फ्री के गीत कहीं ज्यादा बेहतर थे. इतना तो सुकून था. तो थोड़ा सा इम्प्रैशन बन गया था कि मैं गीत अच्छा लिखती हूँ. गीत आज पढ़ कर सुनाया...ऐसा कभी कभार होता है कि अपना लिखा हुआ किसी को डाइरेक्ट सुनाने मिले...गीत सुनते हुए उनमें से एक की आँखों में चमक आ गयी...उसकी ख़ुशी उसके चेहरे पर दिख रही थी. उसे बहुत अच्छा लगा था. शब्दों से किसी के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाए इतना काफी होता है...यहाँ तो आँखों तक मुस्कराहट पहुँच रही थी. इतना काफी था. मैंने उसके साथ कभी काम नहीं किया था...उसे अपनी लिखी एक कहानी भी सुनाई...और जाने क्या क्या गप्पें. जाते हुए उसने हाथ मिलाया और कहा 'इट वाज नाईस नोविंग यू'. बात छोटी सी थी...पर बेहद अच्छा सा लगा.

दोनों खुश थे. बहुत. उसका हग बहुत वार्म था...बहुत अपना सा. बहुत सच्चा सा. अच्छाई पर से टूटा हुआ विश्वास जुड़ने लगा है. शुक्रिया. मुझे अहसास दिलाने के लिए कि दुनिया बहुत खूबसूरत है...कि मुझमें कुछ अच्छा करने की काबिलियत है. नीम नींद और नशे में लिख रही हूँ. इस फितूर की गलतियां माफ़ की जाएं.

In healing others we heal ourselves.

1 comment:

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...