tag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post8790899823397666320..comments2024-03-16T10:24:55.941+05:30Comments on लहरें: निब तोड़ देनी है आज...Puja Upadhyayhttp://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-304811150959768222012-05-15T06:31:22.903+05:302012-05-15T06:31:22.903+05:30मनोदशा का ऐसा खाका, जो पढ़ते-पढ़ते सह-अनुभूति में ...मनोदशा का ऐसा खाका, जो पढ़ते-पढ़ते सह-अनुभूति में ले आ रहा है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-44147358100006793332012-05-15T00:32:25.820+05:302012-05-15T00:32:25.820+05:30निर्वात से पहले वात को झेलना ज़रूरी है।
निर्वात मे...निर्वात से पहले वात को झेलना ज़रूरी है। <br />निर्वात में हाहाकार या अशांति नहीं होती ...पूर्ण प्रशांतावस्था है वह मन की। विचारों का शून्य हो जाना समाधि की स्थिति है....बड़े-बड़े योगियों को बड़ी साधना के बाद मिल पाती है समाधि की स्थिति। <br />...किंतु नही, मैं दूर आती एक आवाज़ को सुन पा रहा हूँ ...उस आवाज़ की बेचैनी को महसूस कर पा रहा हूँ। उसके परे कुछ और भी है .....देखने का प्रयास किया जाय तो जो अभी धुन्धला सा दिख रहा है वह बिल्कुल साफ़ हो जायेगा .......और जब साफ हो जायेगा तब दुनिया फिर से ख़ूबसूरत लगने लगेगी ......बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-59465113303928652282012-05-14T20:35:15.500+05:302012-05-14T20:35:15.500+05:30अब एक निर्वात बन रहा है...
पर निर्वात ही तो वात का...अब एक निर्वात बन रहा है...<br />पर निर्वात ही तो वात का गंतव्य हैM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-65757406694078606492012-05-14T17:25:41.262+05:302012-05-14T17:25:41.262+05:30वहाँ जहां लहरें लौट जाती हैं किनारों से टकरा कर......वहाँ जहां लहरें लौट जाती हैं किनारों से टकरा कर... वो सागर कहीं नहीं जाएगा, हमेशा रहेगा लहरों की राह तकता... अपलक निहारता लहरों को, लहरें जान नहीं पातीं पर जान है वो सागर की... कहाँ जा पायेगा सागर लहरों<br />से दूर...; किनारे भले नहीं होते लहरों के प्रारब्ध में, पर सागर और लहर जुदा हैं ही नहीं... तो लौटने की बात क्या!<br />पढ़ते हुए यह सब, भावों की आंधी लहरों के साथ कदम मिला कर चलने का प्रयास करती रही... और कुछ लिख दिया हमने यहाँ!<br />लम्बी वाक पर जाने से मन अच्छा हो जाता है..., इसकी ज़रुरत हमें भी है अभी!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-26366709691200307612012-05-14T17:16:29.772+05:302012-05-14T17:16:29.772+05:30उत्तर की प्रतीक्षा कीजिये, उत्तर आने के पहले ईश्वर...उत्तर की प्रतीक्षा कीजिये, उत्तर आने के पहले ईश्वर स्तब्धता देता है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com