tag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post4446096915177320905..comments2024-03-16T10:24:55.941+05:30Comments on लहरें: शहरयार के बहाने आर्टिस्ट और आर्ट पर...Puja Upadhyayhttp://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-86291287250972558782012-02-25T14:48:13.869+05:302012-02-25T14:48:13.869+05:30विषय पर हम दोनों स्पेक्ट्रम के दो छोरों की ओर से द...विषय पर हम दोनों स्पेक्ट्रम के दो छोरों की ओर से देख रहे हैं. आपकी सोच और मेरी सोच एकदम जुदा है यहाँ...तो मुझे नहीं लगता हम इस बारे में और कुछ बात कर सकते हैं. <br /><br />आप की ही बात से खत्म करती हूँ 'विचारो में असहमतिया भी संवाद का ही हिस्सा है'<br /><br />I agree to disagree with you.Puja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-15795936355067232862012-02-25T13:44:21.968+05:302012-02-25T13:44:21.968+05:30"बौद्धिक विकृतिया चमत्कारिक होती है ये यथार्थ..."बौद्धिक विकृतिया चमत्कारिक होती है ये यथार्थ का बँटवारा इस तरह करती है की विकार स्पष्ट नजर नहीं आता ."<br /><br />पूजा ......पहले दोनों किस्सों में ही जब पत्नी ने अलग होना चाहा इन दोनों महाशयों ने हाथ पैर जोड़े ,इमोशनल टूल इस्तेमाल किये फिर भी जब बात बढ़ी तो तो साहित्य ओर समाज के बड़े खम्भों में उन्हें रोकने की कोशिश की. . ये दोनों वे किस्से है जिनमे पुरुष स्त्री विमर्श के पुरोधा है ,अपनी कहानियो -कविताओ में स्त्री के दुःख दर्द पर बाद बड़े बड़े लेख कविताएं लिखते है ?अजीब बात है इंसान दिन रात प्रेम पर लिख रहा है अपनी पत्नी के अलावा दूसरी स्त्री से प्रेम कर रहा है पर अपनी पत्नी से पत्नी के सारी दायित्व पूरे करने की अपेक्षा करता है ओर करवा भी रहा है ,पति होने के सारे सुख भोग रहा है बिना जिम्मेदारी में हिस्सा बटाए. अगर उसकी पत्नी उसकी जिंदगी से बाहर जाना चाहती है ,स्वंत्र होना चाहती है उसे स्वतन्त्र नहीं कर रहा ओर अंत में उसे चरित्रहीन कह रहा है ? ये कैसा कवि है ? मज़लूमो ओर औरतो पर लिखने वाला ?<br /> ये विरोधाभास तुममे क्रोध नहीं भरता ?दूसरे किस्से में तो फिर भी एक सम्मानीय डिस्टेंस बनाकर वो लेखिका अलग हो गयी . ये दरअसल दोहरे व्यक्तित्व का प्रतीक है कथादेश के पुराने अंको में झांकोगी तो सारी कहानी मिलेगी इसके विषय में<br />. मन्नू भंडारी की किताब "यही सच है " भी पढ़ सकती हो .<br /> ,मै भी चाहता तो औरो की तरह एक सेफ डिस्टेंस बनाकर निकल जाता पर मेरा मानना है विचारो में असहमतिया भी संवाद का ही हिस्सा है . .<br />क्या होलीवूड के एक डाइरेक्टर को बलात्कार के आरोप से सिर्फ इसलिए बरी कर दिया जाए की उसने विश्व को अद्भुत सिनेमा दिया है ?<br />या किसी एक्टर को को कोई अदालत शराब पीकर फूटपाथ पर लोगो को मारने के बाद इसलिए बरी कर दे क्यूंकि वे एक कलाकार है ,उसने अमर पिक्चरे दे है अमर किरदार दिए है जिससे लाखो लोग इंस्पायर हुए है , लाखो लोगो के जीवन में खुशिया बिखेरी है . तसलीमा नसरीन यही तो कहती थी बंगाल के राइटरो के बारे में जिसके पास भी गयी खाल के नीचे सिर्फ पुरुष निकला ? खुशवंत सिंह जैसे लोग ही ठीक है वे जैसा सोचते है लिख देते है .जैसे जीते है वैसा लिख देते है .<br />जिस तरह हड्डी -अस्थि मज्ज्जा की कोई जाति-धर्म नहीं होती उस तरह किसी भी गुण दोष को भी गुण ओर दोषों की तरह से देखा जाता है . किसी महान साइंटिस्ट की अपनी पत्नी के प्रति क्रूरता को सिर्फ इसलिए कम नहीं किया जा सकता के वो महान साइंसटिस्ट है . उए उनके व्यक्तित्व का एक विकृत हिस्सा है जिसे हमें स्वीकार करना होगा .<br />वैसे आज से तीन साल पहले इसी विचार पर मैंने कुछ लिखा था शायद तुमने पढ़ा न हो.....<br />http://anuragarya.blogspot.in/2009/03/blog-post_29.html<br /><br /><br /><br /><br />एक कविता ओर है जो शुभम श्री ने लिखी है<br /><br />मुझे पता है<br />तुम देरिदा से बात शुरू करोगे<br /><br />अचानक वर्जीनिया कौंधेगी दिमाग में<br />बर्ट्रेंड रसेल को कोट करते करते<br /><br />वात्स्यायन की व्याख्याएँ करोगे<br />महिला आरक्षण की बहस से<br /><br />मेरी आजादी तक<br />दर्जन भर सिगरेटें होंगी राख<br /><br />तुम्हारी जाति से घृणा करते हुए भी<br />तुमसे मैं प्यार करूँगी<br /><br />मुझे पता है<br />बराबरी के अधिकार का मतलब<br />नौकरी, आरक्षण या सत्ता नहीं है<br />बिस्तर पर होना है<br />मेरा जीवंत शरीर<br /><br />जानती हूँ...<br /><br />कुछ अंतरंग पल चाहिए<br />'सचमुच आधुनिक' होने की मुहर लगवाने के लिए<br /><br />एक 'एलीट' और 'इंटेलेक्चुअल' सेक्स के बाद<br />जब मैं सोचूँगी<br /><br />मैं आजाद हूँ<br />सचमुच आधुनिक भी...<br />तब<br /><br />मुझे पता है<br />तुम एक ही शब्द सोचोगे<br />'चरित्रहीन'डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-31015756884822509772012-02-25T12:00:27.261+05:302012-02-25T12:00:27.261+05:30सार्थकता लिए हुए सटीक प्रस्तुति ।सार्थकता लिए हुए सटीक प्रस्तुति ।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-60490631394025292082012-02-25T09:30:04.147+05:302012-02-25T09:30:04.147+05:30अच्छा इंसान होने से कहीं ज्यादा जरूरी है अच्छा लिख...अच्छा इंसान होने से कहीं ज्यादा जरूरी है अच्छा लिखना. अच्छा इंसान होने से सिर्फ आपके जान-पहचान के लोगों, आपके दोस्तों का फायदा है...जबकि अच्छा लेखन कालजयी होता है और आपके जाने के बाद भी कई तरह से लोगों को कुछ अच्छा बनने के लिए प्रेरित कर सकता है. हर महान इंसान के जीवन में किसी लेखक के शब्दों का ओज रहा है. <br /><br />एक अच्छा इंसान कितनों की जिंदगी बदल सकता है...अपने उदहारण से? बहुत कम...पर एक अच्छी कविता, एक अच्छा लेख अपने लिखे जाने के सदियों बाद तक एक खुशबू लिए जिन्दा रहता है...लोगों को कुछ अच्छा बनने के लिए प्रेरित करता हुआ.Puja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-86497974652303789782012-02-25T09:22:27.341+05:302012-02-25T09:22:27.341+05:30अनुराग जी...पहले दो किस्सों में यही कहना चाहूंगी क...अनुराग जी...पहले दो किस्सों में यही कहना चाहूंगी कि किसी की पत्नी की मजबूरी नहीं रहती शादी जैसे रिश्ते को निभाना...आप तलाक लेकर अलग रह सकती हैं. साथ रहना एक साझा निर्णय होता है पर अलग होने का निर्णय तो पति पत्नी में से कोई भी एकल और स्वतंत्र रूप से ले सकता है. किसी आम इंसान की जिंदगी की भी तहों में उतरेंगे तो बहुत कुछ ऐसा मिलेगा.<br /><br />किसी आर्टिस्ट की जिंदगी बड़ी उलझी और पेचदार होती है...उसपर वाकई हमारे सही गलत के नियम नहीं चलते...मैंने जितना पढ़ा है इससे यही समझा है. मजाज़ को कौन सा गम था जिससे वो पीते थे ये वही बता पाते...अक्सर जिन चीज़ों पर हम एक उचाट निगाह डाल कर निकल सकते हैं किसी कवि का मन उससे इतना आहत हो जाता है कि जीने में तकलीफ होने लगती है. <br /><br />दो चीज़ें...एक तो कोई परफेक्ट नहीं होता...हम सबकी कमजोरियां होती हैं तो आर्टिस्ट को ही इस खांचे में क्यूँ डाला जाए कि वो गलतियाँ न करे...या अच्छा इंसान बने.<br /><br />दूसरा...अगर हर आर्टिस्ट पर इतने सही-गलत के बंधन हों कि वो कुछ रच ही ना पाए तो समाज में जो बड़ा सा खालीपन आएगा क्या उसे हमारे समाज के परफेक्ट लोग भर सकेंगे? अगर रचने की कीमत है कुछ बिखरे परिवार, कुछ उदास प्रेमिकाएं, कुछ परेशान बीवियां...तो ये कीमत तो चुकानी पड़ेगी. हर इंसान सिर्फ दुनिया में सबको खुश करने के लिए नहीं आता...कुछ लोग वाकई इसलिए होते हैं कि उनसे जुड़े हर व्यक्ति को दुःख हो...ऐसे लोगों का होना भी उतना ही जरूरी है. <br /><br />हर वो आर्टिस्ट जिसने यश की पेंशन खायी है के पीछे ऐसे हजारों हैं जो तनहा रहते हुए गरीबी और भुखमरी में मर गए. उनके गुनाहों पर किसी ने कलम भी नहीं चलायी. गरीबी में TRP नहीं होती न.Puja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-46132999032871845452012-02-25T08:59:15.393+05:302012-02-25T08:59:15.393+05:30बात शहरयार की नहीं है उससे उपजे प्रशन की है . क...बात शहरयार की नहीं है उससे उपजे प्रशन की है . कुछ साहित्यकारों -लेखको-महान लोगो के उस सामानांतर संसार की है .जो किताबो ओर उनके आस पास के ओरा से बाहर के "असल जीवन" में है किसी ने एक बार लिखा था कुछ लोग "यश की पेंशन" खाते है .<br />तो गोया<br />१. शादी के दूसरे दिन आप एक मोहतरमा को लेकर घर आये एक कमरे में बंद हो जाये दो घंटे बाद निकले ओर फिर अपनी उस बीवी से कहे (जिसे आप लव मेरिज करके लाये है )कहे "हम दोनों में कुछ खास रिश्ता है " ये रिश्ता रोज पनपे रोज परवान चढ़े पर सब मुआफ क्यूंकि कुछ साल पहले आपने लिखी एक कविता "भागी हुई लडकिया "(इस सदी के महान समाजवादी कवि).<br />२.घर खर्च चलाने के लिए पत्नी काम करे ,घर आकर आपकी रोटी बनाये रोज शाम को होने वाली बैठको में पी जाने वाली शराब में आपके लिए चने भुने ,काजू तले ओर शराब पिए जाने वाले बर्तन धोये क्यूंकि आप सदी के महान लेखक है ओर आपकी बैठक में बहस का विषय है "स्त्री विमर्श ".....ओर ये पत्नी भी लेखक है ,बेहद लोकप्रिय इतनी की उनकी दो पट कथायो पर फिल्मे बन कर हिट हो चुकी है पर घर चलाने ओर बच्चे के लालन पालन की जिम्मेवारी उनके जिम्मे है .ये जिम्मेवारी स्त्री के हिस्से अनिवार्य है ये तय किसने किया है ( इस सदी के महान लेखक )<br />३. आप सुबह उठते ही शराब पिये ,दोपहर में पिये ,रात को पीये चार दिन तक घर न लौटे .कभी नाली में पड़े मिले ,रोज कोई बेहोशी में हालत में आपको घर छोड़े .घर खर्च का जिम्मा परिवार के जिम्मे .पर सब मुआफ क्यूंकि आप" मजाज़" है इस सदी के सबसे बड़े शायर आपको पीने का हक खुदा से मिला है .(यानी "शराब पीना" ओर सिर्फ "शराब ही पीना" में अंतर होता है )<br />ये सिर्फ बानगी है . हकीक़त के पन्नो की कुछ झलकिया. सुधा अरोड़ा जी ने "कथा देश" में लगतार कलम चलाया है इस बाबत . मराठी दलित लेखक नाम देव ढसाल जिन्होंने अपनी प्रसिद्ध आत्म कथा में अपने संघर्षो से जिजीविषा रची है . पर उनकी पत्नी उनके पुरुष रूप का एक अलग रिफ्लेक्शन दिखलाती है . ये किसी मेरी क्युरी का समाज हित या विज्ञान के अनुसंधान में डूबे रहकर वक़्त न दे पाना नहीं है ये कोई ओर चीज़ है<br />ठीक वैसे ही जैसे गांधी १६ साल की लडकियों के साथ रात को नग्न सोये ओर कहे वे "ब्रहमचर्य के प्रयोग" कर रहे है जब गांधी की उम्र ५० पार है ओर जब गांधी भरी सभा में अपनी पत्नी से दैहिक सम्बन्ध न रखने की घोषणा कर चुके है (ये गांधी का स्वंय लिया हुआ निर्णय है जिसको वे अचानक सार्वजानिक करते है )ओर हम कुछ न कहे क्यूंकि वे गांधी है ओर उन्हें "सौ पुण्य के साथ एक गुनाह "की स्कीम का ऑफर अलाऊ है .डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-34997561896911320152012-02-24T18:49:37.351+05:302012-02-24T18:49:37.351+05:30"उसे पा लिया जिससे प्रेम करते थे. पर ऐसा सबके..."उसे पा लिया जिससे प्रेम करते थे. पर ऐसा सबके लिए हो जरूरी तो नहीं" शायद शहरयारजी क साथ भी ऐसा ही रहा हो.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.com