tag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post3099299509276692538..comments2024-03-16T10:24:55.941+05:30Comments on लहरें: किसी राह पर, किसी इंतज़ार मेंPuja Upadhyayhttp://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-64407517505766613122010-12-27T08:03:11.422+05:302010-12-27T08:03:11.422+05:30पुस्तकें पढ़ना कहानी के चरित्रों से उस प्रकार मिलन...पुस्तकें पढ़ना कहानी के चरित्रों से उस प्रकार मिलना होता है जैसा लेखक चाहे। संवेदनशीलता उसकी अभिव्यक्ति में ही है। यह परिचय जितना भावनात्मक उभार लिये हो, उतना ही गहरा मन में बस जाता है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8251191037711858199.post-23793206487472017732010-12-27T03:39:23.113+05:302010-12-27T03:39:23.113+05:30खूबसूरत दुपरिया में किताबों का पढ़ना। किरदारों को ...खूबसूरत दुपरिया में किताबों का पढ़ना। किरदारों को आसपास महसूस करना। वो भी दिन थे। अब तो लगता है कि खुद ही किरदार बनते चले जा रहे हैं। आज जिंदगी में अक्सर कोई न कोई कभी बढ़ा हुआ किरदार अक्सर दिख जाता है। हर तरह की किताब पढ़ी हर तरह के लोग देखे। किताबों में संसार की झलक इतनी देखी, कि कई बार तो कई चीजों को देख कर या कुछ करके अचरज ही नहीं होता।Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.com