06 February, 2018

ला वियों रोज़

एक धुन के पीछे भागते गए थे। कितनी दूर तक। कितनी दूर तक तो। कैसा मिला था धुन में थोड़ा सा जापान। उन दिनों खोजना कहाँ आसान होता था कुछ भी। किसी का दिल ही होता था अगर, तो कितना दूर होता था...कितना सिमटा, सकुचाया होता था। उस उलझन भरे दिल में कहाँ खोजते हम दुनिया भर का ना सही, अपने हिस्से का प्यार।

इस धुन में कितना कुछ समेटते चली आयी थी लड़की। बाँध लिया था उसने अपने आँचल की गाँठ में तुम्हारी हँसी का एक क़तरा। कभी कभी खोलती आँचल की गाँठ और चूम लेती वही ज़रा सी हँसी।

वो तो बिसार देता कितनी आसानी से...उसकी व्यस्तता में प्रेम के लिए जगह नहीं। उसकी फ़ुर्सत में लड़की का नाम नहीं।

और लड़की...
लड़की...

क्या ही कहें। कौन करेगा ऐसी सिरफिरी लड़की से प्यार। कहती है तुम्हारा शहर बिसार देगी पूरा का पूरा। हाँ, नहीं देखा तो क्या हुआ। शहर बिसारने के लिए शहर को याद करना थोड़े ज़रूरी होता है।

जैसे देखो ना। प्यार कहाँ किया तुमसे कभी। फिर भी लगता है ताउम्र करेंगे प्यार तुमसे इतना ही। जानते हो, मेरे फ़ोन में तुम्हारा नम्बर ब्लाक्ड है लेकिन तुम्हारा नम्बर सेव्ड है। पता है क्या नाम है तुम्हारा?

मीता।

सुनो। मैं तुमसे प्यार करती हूँ मीता।
रेलगाड़ी के चले जाने के बाद ख़ाली प्लैट्फ़ॉर्म पर टूटा कलेजा लिए मत बिलखो रे तुम, हमको आज भी तुम्हारा प्यार चुभता है। और मेरा वो गले में पड़ा हुआ हल्के हरे रंग का स्टोल, जो तुम गले से निकाल कर अपने पास रख लेना चाहते थे, आज उसमें आग लगा देने को जी चाहता है। लेकिन वो किसी दोस्त के पास रह गया है। तुम्हारे शहर में ही रहती है। कभी मिल जाए तुमको, मेरा स्टोल डाले हुए तो उसे गले से निकलवा लेना। उसपर तुम्हारा हक़ दिए हम तुमको।

रे। मीता। तुम बहुत्ते याद आते हो रे।
मेरा एक बात मानोगे? तुम दिल्ली छोड़ के कभी मत जाना। दिल्ली के हिस्से प्यार लिखते हुए लगता है तुम्हारे नाम पोस्टकार्ड गिरा दिए हैं।

विदा कहने के लिए किसी का जाना ज़रूरी होता है।
तुम हमेशा रहे हो। साथ। पास।

रहना रे। तुम रहना।


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