29 January, 2018

तुम्हीं कहो, तुम्हें अमलतास पसंद हैं?

आधी लिखी हुयी चिट्ठियाँ हैं। कुछ अजीब से ख़याल हैं कि किसी के लिए सफ़ेद कुर्ते पर काढ़ दूँ आसमानी बेल बूटे। उसे मालूम हो कि फूलों की अपनी लिपि होती है, भाषा होती है। मैं क्या ही कहूँ उससे। तुम्हारी हँसी अच्छी लगती है मुझे। कि मैं घर देखने गयी थी कल दोपहर और वहाँ एक घर की छत पर मिट्टी में कुछ बड़े पौधे लगे हुए थे, मेरा वहाँ निम्बू का पेड़ उगाने का मन किया। 

मेरे क़िस्सों में भटके हुए लोग हैं। वो कौन था जिसके साथ मैं कहाँ जा रही थी... उसने रास्ते में मुझे रोका और एक पौधे से तोड़ी हुयी पत्तियाँ मसलीं अपनी हथेलियों के बीच और फिर दोनों हथेलियाँ खोल कर कहा, सूँघो..वो गंध कहाँ मिलेगी? उसकी पसीजी हुयी उँगलियों के बीच मसले गए पत्तों की? 

किसी पर अनाधिकार उमड़ता प्यार है।

किसी के घर के परदों पर लिखी कविता के अक्षर हैं। याद में भी बिखरे बिखरे। रोशनी की कंदीलें हैं। 

मैं किन चीज़ों की बनी हूँ? धूप और फूलों की? अंधेरे और अम्ल की?

मैं तुम्हारे लिए अपने क़िस्सों के शहर में एक अमलतास का पेड़ लगा दूँ? तुम कहो, 'तुम्हें अमलतास पसंद हैं?'। मौसमों में वसंत या फिर बारिश?

मेरे ख़यालों में ऐसे पौधे उगते हैं...किसी की वर्क डेस्क पर रखा हुआ एक छोटा सा अमलतास का पेड़ जिसपर भर भर अमलतास खिले हैं। नहीं। बोनसाई नहीं। किसी दूसरी दुनिया से लाया हुआ पौधा। कि इस दुनिया में कहीं ऐसी कोई जगह है जहाँ अमलतास के पेड़ हों और उनके नीचे आराम से सोया जा सके महबूब की गोद में सर रख कर? गिरते रहें अमलतास के पीले फूल, चुपचाप हमारे इर्दगिर्द।

कितनी अधूरी ख़्वाहिशें जी रही हैं कहानी के किरदारों में?

इस दुनिया में इतना प्यार बचा है कि किसी की आँखें रंग सकूँ कत्थे के रंग से? ख़ुर्री। गहरा लाल और काला मिला कर रचूँ किसकी आँखें। अंधरे में रचा हुआ प्रेम गुनाहों की गंध लिए आता है। मैंने कितने साल से किसी को महबूब नहीं कहा है। और जान? कब कहा था किसी को?

इतरां। पूछती है मुझसे। आँख डबडबाए हुए। क्यूँ लिख रही हो ऐसी पनियाली आँखें। ईश्वर तुम्हें दुःख देता है तो तुम्हें अच्छा लगता है? नहीं ना। काजल अच्छा लगता है मेरी आँख में भी। इतना पानी रखने को कोई छोटा सा समंदर लिख दो। मेरी आँखें ही क्यूँ?

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