04 May, 2016

चाँद मुहब्बत। इश्क़ गुनाह।


'तुम वापस कब आ रही हो?'
'जब दुखना बंद हो जाएगा तब।'
'तुम्हें यक़ीन है कि दुखना बंद हो जाएगा?'
'हाँ'
'कब?'
'जब प्रेम की जगह विरक्ति आ जाएगी तब।'
'इस सबका हासिल क्या है?'
'हासिल?'
'हाँ'
'जीवन का हासिल क्या होता है?'
'Why are you asking me, you are the one here with all the answers. What’s the whole fu*king point of all this.'
'Please don’t curse. I’m very sensitive these days.'
'ठीक है। तो बस इतना बता दो। इस सबका हासिल है क्या?'
'मुझसे कुछ मत पूछो। मैं प्रेम में हूँ। उसका नाम पूछो।'
'क्या नाम है उसका?'
'पूजा।'
'This is narcissism.'
'नहीं। ये रास्ता निर्वाण तक जाता है। मुझे मेरा बोधि वृक्ष मिल गया है।'
'अच्छा। कहाँ है वह?'
'नहीं। वो किसी जगह पर नहीं है। वो एक भाव में है।'
'प्रेम?'
'हाँ, प्रेम।'
'तो फिर? गौतम से सिद्धार्थ बनोगी अब? राजपाट में लौटोगी? निर्वाण से प्रेम तक?
'नहीं। ये कर्ट कोबेन वाला निर्वाण है।'
'मज़ाक़ मत करो। कहाँ हो तुम?''
'I am travelling from emptiness to nothingness.'
'समझ नहीं आया।'
'ख़ालीपन से निर्वात की ओर।
'ट्रान्स्लेट करने नहीं समझाने बोले थे हम।'
'मुझे दूर एक ब्लैक होल दिख रहा है। मैं उसमें गुम होने वाली हूँ।'
'वापस आओगी?'
'तुम इंतज़ार करोगे?'
'मेरे जवाब से फ़र्क़ पड़ता है?'
'शायद।'
'Tell me why I’m in love with you.'
'Because you hurt. All over.'
'Do you need a hug?'
'You are touch phobic. Write a letter to me instead.' 
'Will you please not come back. Die in the fu*king black hole. I can't see you hurting like this.'
'Are you sure?'
'You are sure you don't love me?'
'Yes.'
'मर जाओ'
---
उसकी हँसी। अचानक कंठ से फूटती। किसी देश के एयरपोर्ट पर अचानक से किसी दोस्त का मिल जाना जैसे। 

याद में सुनहले से काले होते रंग की आँखें हैं…बीच के कई सारे शेड्स के साथ। 
उसकी हँसी के साउंड्ट्रैक वाला एक मोंटाज है जिसमें क्रॉसफ़ेड होती हैं सारी की सारी। सुनहली। गहरी भूरी। कत्थई। कि जैसे वसंत के आने की धमक होती है। कि जैसे मौसमों के हिसाब से लगाए गए फूलों वाले शहर में सारे चेरी के पेड़ों पर एक साथ खिल जाएँ हल्के गुलाबी फूल। जैसे प्रेम हो और मन में किसी और भाव के लिए कोई जगह बाक़ी ना रहे। जैसे उसके होने से आसमान में खिलते जाएँ सफ़ेद बादलों के फूल। जैसे उसकी आँखों में उभर आए मेरे शहर का नक़्शा। जैसे उसकी उँगलियों को आदत हो मेरा नम्बर  डायल करने की कुछ इस तरह कि अचानक ही कॉल आ जाए उसका।  

उसी दुनिया में सब कुछ इतनी तेज़ी से घटता था जितनी तेज़ी से वो टाइप करती थी। सब कुछ ही उसकी स्पीड के हिसाब से चलता था। माय डार्लिंग, उसे तुम्हारे प्रेम रास नहीं आते। इसलिए उनका ड्यूरेशन इतनी तेज़ गति से लिखा जाता कि जैसे आसमान में टूटता हुआ तारा। शाम को टहलने जाते हुए दौड़ लगा ले पार्क के चारों ओर चार बार। टहलना भूल जाए कोई। उँगलियाँ भूल जाती थीं काग़ज़ क़लम से लिखना जब बात तुम्हारी प्रेमिकाओं की आती थी। 

जैसे तेज़ होती जाए साँस लेने की आवाज़। तेज़ तेज़ तेज़। 

कैसे हुआ है प्रेम तुमसे?

जैसे काफ़ी ना हो मेरे नाम का मेरा नाम होना। जैसे डर मिट गया हो। जैसे अचानक ही आ गया हो तैरना। जैसे मिल जाए बाज़ार में यूँ ही बेवजह भटकते हुए इंद्रधनुष  के रंगों वाला दुपट्टा कोई। कुछ भी ना हो तुम्हारा होना। 

बिना परिभाषाओं में बंधे प्रेम करने की बातें सुनी थीं पर ऐसा प्रेम कभी ज़िंदगी में बिना दस्तक के प्रवेश कर जाएगा ऐसा कब सोचा था। यूँ सोचो ना। क्या है। सिवा इसके कि तुम्हें मेरा नाम लेना पसंद है, कि जैसे झील में पत्थर फेंकना और फिर इंतज़ार करना कि लहरें तुम्हें छू जाएँगी…भिगा जाएँगी मन का वो कोरा कोना कि जिसे तुमने हर बारिश में छुपा कर रखा है। ठीक वहाँ फूटेगी ओरिएंटल लिली की पहली कोपल और ठीक वहीं खिलेगा गहरे गुलाबी रंग की ओरिएंटल लिली का पहला फूल। कि जैसे प्रेम का रंग होगा…और तुमसे बिछोह का। गहरा गुलाबी। चोट का रंग। गहरा गुलाबी। और हमारे प्रेम का भी। 

प्रेम कि जो अपनी अनुपस्थिति में अपने होने की बयानी लिखता है। तुम चलने लगो गीली मिट्टी में नंगे पाँव तो ज़मीन अपने गीत तुम्हारी साँस में रोप दे। तुम गहरा आलाप लो तो पूरे शहर में गहरे गुलाबी ओरिएंटल लिली की ख़ुशबू गुमस जाए जैसे भारी बारिश के बाद की ह्यूमिडिटी। तुम कोहरे में भी ना सुलगाना चाहो सिगरेट कोई। तुम्हारे होठों से नाम की गंध आए। तुम्हारी उँगलियों से भी। 

और सोचो जानां, कोई कहे तुमसे, कि बदल गयी है दुनिया ज़रा ज़रा सी, ऑन अकाउंट औफ आवर लव। कि अब तुम्हारा नाम P से शुरू होगा। तुम्हारा रोल नम्बर बदल गया है क्लास में। और अब तुम क्लास में एग्जाम टाइम में ठीक मेरे पीछे बैठोगे। तुम्हारे ग्रेड्स सुधर जाएँगे इस ज़रा सी फेर बदल से[चीटर कहीं के]। और जो आधे नम्बर से तुम उस पेरिस वाले प्रोग्राम के लिए क्वालिफ़ाई नहीं कर पाए थे। वो नहीं होगा। तुम जाओगे पेरिस। तुम्हारे साथ चले जाएगा उस शहर में मेरी आँखों का गुलमोहर भी। पेरिस के अर्किटेक्ट लोग कि जिन पर उसके इमॉर्टल लुक को क़ायम रखने की ज़िम्मेदारी है, वे परेशान हो जायेंगे कि पेरिस में इतने सारे गुलमोहर के पेड़ थे कहाँ। और अगर थे भी तो कभी खिले क्यूँ नहीं थे। तुम्हारा नाम P से होने पर बहुत सी और चीज़ें बदलेंगी कि जैसे तुम अचानक से नोटिस करोगे की मेरे दाएँ कंधे पर एक बर्थमार्क है जो मेरे नाम का नहीं, तुम्हारे नाम का है। 

वो सारे लव लेटर जो तुमने अपनी प्रेमिकाओं को लिखे हैं सिर्फ़ अपने नाम का पहला अक्षर इस्तेमाल करते हुए वे सारे बेमानी हो जाएँगे। मेरे कुछ किए बिना, तुम्हारे प्रेम पर मेरा एकाधिकार हो जाएगा। यूँ भी ब्रेक अप के बाद तुम्हें कौन तलाशने आता। टूटने की भी एक हद होती है। तुम्हारे प्रेम से गुज़रने के बाद, कॉन्सेंट्रेशन कैम्प के क़ैदी की तरह उनकी पहचान सिर्फ़ एक संख्या ही तो रह जाती है। सोलहवें नम्बर की प्रेमिका, अठारवें नम्बर का प्रेमी। परित्यक्ता। भारत के वृंदावन की उन विधवाओं की तरह जिनका कान्हा के सिवा कोई नहीं होता। किसी दूसरे शहर में भी नहीं। किसी दूसरी यमुना के किनारे भी नहीं। 

पागलों की दुनिया का खुदा एक ही है। चाँद। तो तुम्हारा नाम चाँद के सिवा कुछ कैसे हो सकता था। मेरे क़रीब आते हो तो पागल लहरें उठती हैं। साँस के भीतर कहीं। तुम्हें बताया किसी ने, तुम्हारा नया नाम? सोच रही हूँ तुम नाराज़ होगे क्या इस बात को जान कर। मेरी दुनिया में सब तुम्हें चाँद ही कहते हैं। कोई पागल नहीं रहता मेरी दुनिया में। एक मेरे सिवा। तुम मेरे खुदा हो। सिर्फ़ मेरे। मुझे प्रेम की परवाह नहीं है तो मुझे तुम्हारी नाराज़गी की परवाह क्यूंकर हो। बाग़ी हुए जा रही हूँ इश्क़ में। रगों में इंक़लाब दौड़ता है। कहता है कि चाँद को उसकी ही हुकूमत से निष्कासित कर कर ही थमेंगे। उसकी ख़्वाबगाह से भी। और मेरी क़ब्रगाह से तो शर्तिया। 

मैंने तुम्हें देखने के पहले तुम्हारा प्रतिबिम्ब देखा था…आसमान के दर्पण में। बादलों के तीखे किनारों को बिजली से चमकाया गया था। उनके किनारे रूपहले थे। 

मैं इस दुनिया से जा चुकी हूँ कि जहाँ सब कुछ नाम से ही जुड़ता था। इस रिश्ते का नाम नहीं था। मेरे लिए भी नाम ज़रूरी नहीं था। मेरे लिए मेरा नाम ही प्रेम है। उसकी आवाज़ ही हूँ मैं। और जानेमन, आवाज़ों का क्या रह जाता है।

वो तलाशे अगर तो कहना, ‘मैं उसकी प्रतिध्वनि थी’। 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-95-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2333 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. समूचे लेख(शैली क्या कहूँ मुझ समझ नहीं है ) में उठते हुए लहर की तरह कई कविताये आकार लेते लेते अगले ही क्षण खो जाती हैं। मजा आ गया।

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