20 August, 2015

उसकी आँखों की पगडंडियाँ दिल में नहीं जहन्नुम में खुलती थीं

'तुम्हें जिरहबख्तर उतारना आता है?' लड़की ने पूछा था. 
लड़का हँसा था, 'सिल्क, सैटिन और लेस के ज़माने में जिरहबख्तर कौन पहनता है?'.
उसकी हँसी पर तीखा घाव लगा था...लड़की के ऑफ शोल्डर ड्रेस की महीन किनारी में तलवार की धार सा तेज स्टील का धागा बुना हुआ था. उसका जिस्म महीन, धारदार जालियों में बंधा हुआ था. उसकी कमर पर हाथ रखते हुए हथेलियों में बारीक धारियां बनती गयीं थीं...उसकी उम्र की रेखा को कई जगह से काटती हुयीं. 

शायद अँधेरा था. लड़के ने गौर से नहीं देखा होगा. लड़की की आँखों में कंटीले तारों की सीमारेखा बंधी हुयी थी. जिसके पार नो-मैन्स-लैंड था. उसने सिर्फ उस ज़मीन पर खिलते हुए गुलाबी फूल देखे थे...घास के कालीन की हरी मुलायमत देखी थी. बारूद के बिखरे रूपहले कणों पर उसका ध्यान नहीं गया था. ये विवादित क्षेत्र था. मौत अपने शिकार की तलाश में तितलियों की शक्ल में भटका करती थी. किसी की गंध तलाशती हुयी.

उसकी आँखों की पगडंडियाँ दिल में नहीं जहन्नुम में खुलती थीं...
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अँधेरा एक खूबसूरत चित्रकार है. रात घिरते कई तसवीरें बनाया करता. लड़की जिसकी आँखों में देख लेती, उसकी रूह कैद कर लेती. शाम घिरते वो बालकनी में बुलबुले उड़ाया करती. उसकी पलकें झपकतीं तो रूहें उन काले रंग के बुलबुलों में कैद हो जाया करतीं. लम्हा लम्हा बुलबुले फूट जाते और रात की काली नदी में शहर डूब जाता. रूहें कई बार रास्ता भटक जातीं और सियाही की बोतल में रहने लगतीं. लड़का ऐसी ही किसी सियाही से लिख रहा था...लिखते लिखते उसके हाथों से उस लड़की की तस्वीर बन गयी. वो देर रात तक पियानो बजाती रही थी. जब तक कि सारे काले कीय्स उसकी उँगलियों में न चुभ गए. तस्वीर में गिरने लगे पियानो के काले बटन...ग्लास में रखी काली ऐब्सिंथ...और लड़के के गहरे राज़. 

लड़के ने अपनी कलाई काट कर जान देने की कोशिश की. उसकी कलाई से इतना कोलतार बहा कि उसके घर से महबूबा के घर तक की कच्ची पगडंडी रात भर में पक्की सड़क में तब्दील हो गयी. सुबह उसे कब्रगाह ले जाने वालों का काफ़िला अचानक लड़की के घर की तरफ मुड़ गया वर्ना उसे बहुत दिनों तक मालूम नहीं चलता कि उसकी खिड़की पर काले गुलाब रखने किसने बंद कर दिए हैं.
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उसने आखिरी सिगरेट बचा बचा कर पी. तीन कश मार कर बुझा देती. सोचती कि इसी तरह कुछ देर रोक लेगी अलविदा का ये बिटर हैंगोवर. हर बार जब उसने अपने बदन पर रगड़ कर सिगरेट बुझाई तो बैंगलोर की सारी बारिशें उस जगह की जलन को कम करने को दौड़ पड़ीं. 
लड़की को दर्द की आदत लग चुकी थी. इश्क़ से भी बुरी आदत.
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जाते हुए उसने मेरी खारी आँखें चूमीं.
'तुम्हें ब्लैक कॉफ़ी पीने की आदत छोड़नी नहीं चाहिए थी, तुम में मुझे सिर्फ वही एक चीज़ अच्छी लगती थी'.
'मेरा ब्लैक कॉफ़ी पीना?'
'नहीं. आफ्टरटेस्ट'
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घर में न सिगरेट है, न विस्की है, न तुम हो. हम तलब से मर क्यूं नहीं जाते? 

15 August, 2015

इश्क़ की दस्तक में बारूद की गंध घुली थी. बारूद का ख़तरा भी.

लड़का चाँद की रौशनी वाली टॉर्च बनाना चाहता. लड़की उसकी आँखों की रंग वाली कैंडिल. 
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वे बंद पड़े पोस्ट ऑफिसों में सेंधमारी कर कर पढ़ते खुशबूदार लिफाफों वाली चिट्ठियां. वे इत्रदानों में घोलते सियाही और लड़का दवातों में टपका देने को ही होता बारिश की गंध का इत्र कि जो लड़की ख़ास कन्नौज से लायी होती...तभी लड़की उसकी कलाइयाँ पकड़ लेती हंसती हुयी...के उसके साथ होती तो लड़की को हँसने में डर नहीं लगता...वो मूसलाधार बारिशों सी भिगोने वाली हँसी हँसती थी. कलमें ठीक से नहीं चलेंगी...तुम्हें मालूम है न इत्र की कैफियत पानी से अलग होती है...अक्षर ठीक नहीं लिखे जायेंगे...मान लो उसे ख़त लिखने चली और नाम के बाकी अक्षर गायब हो गए तो. खुशबू ज्यादा जरूरी या के ख़त. लड़के कहता एकदम घिसा पिटा डायलौग, मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है.
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इश्क़ की दस्तक में बारूद की गंध घुली थी. बारूद का ख़तरा भी.
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फिरोजी रंग की आँखें तलाशते लड़के को लेकिन सिर्फ सुबह का इंतज़ार है. लड़की की आँखें रात रंग की थी. लड़के की हँसी कोहरे की पदचाप जैसी. लड़की उसकी उँगलियों को याद किताबों के पेज नंबर मिटा कर अपना फोन नंबर लिखना चाहती. रबड़ से जरा सा भी रगड़ने की कोशिश करने पर लड़के की रेशमी उँगलियाँ उसके हाथों से फिसल जातीं. लड़के की त्वचा को बारीक मलमल तैयार करने वाले किसी बुनकर ने बुना था. उसके हाथों में यूँ तो कोई भी चीज़ खूबसूरत लगती मगर जो सबसे खूबसूरत होता वो उस लड़की का हाथ होता. लड़की कभी उसका हाथ नहीं पकड़ सकती क्यूंकि उसके हाथ हमेशा फिसल जाते. लड़का ही इसलिए लड़की का हाथ अपने हाथ में लिए चलता. लड़के की उँगलियों को दुनिया की सारी लाइब्रेजीज में रखी सारी किताबों के पेज नंबर याद थे. लड़के के लिए अलग अलग शहरों से बुलावा आता. कभी कभी कोई पुरानी पाण्डुलिपि खो गयी होती तो लड़के की उँगलियों से उसका पता तलाश लिया जाता. लड़की को इस सब से बहुत कोफ़्त होने लगी थी. उसे लगता था कि वे हाथ सिर्फ उसके लिए बने हैं. वह उसकी उँगलियों पर अपने नाम का गोदना गुदवा देना चाहती.
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वे सुकून बेचने आये गाँव के भोले भाले किसान से मोलभाव करते और आखिर आधे रूमाल भर सुकून खरीद पाते. उस आधे रूमाल का आधा आधा टुकड़ा दोनों बाँटना चाहते लेकिन रुमाल के बराबर हिस्से नहीं हो पाते. लड़का सुकून का बड़ा हिस्सा लड़की को देना चाहता लेकिन लड़की सुकून का छोटा हिस्सा लेना चाहती. दोनों बहुत देर तक भी एकमत नहीं हो पाते तो फिर झख मार कर सुकून बेचने वाले के पास फिर जाते. वो इनकी झिकझिक से इतना घबराया हुआ होता कि इन्हें देखते ही अपना माल असबाब लेकर कहीं भाग जाना चाहता. जब तक दोनों उसके पास पहुँचते, दोनों की साँस फूली हुयी होती. लड़की अपना पसंदीदा कंगन उसे देती और लड़का अपनी पसंदीदा घड़ी. इतने में एक चादर सुकून की आ जाती. दोस्त बाद में उनपर हँसते कि गाँव वाले ने अपना बदला ले लिया है. ये सुकून की चादर नहीं. कफ़न है. इसे ओढ़ कर सुकून सिर्फ मरने के बाद ही आएगा. लड़की मगर उस चादर पर काढ़ देती अपने पुराने प्रेमियों के नाम और लड़का उसपर परमानेंट मार्कर से लिख आता उन सारे शहरों का नाम जिनमें उसे इश्क़ हुआ था. दोनों एक दूसरे से वायदा करते कि वे एक साथ ही मरेंगे ताकि बिना किसी बेईमानी के...इसी सुकून के कफ़न में दोनों को एक साथ जलाया जा सके.
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लड़की उसके लिए कोई नया मौसम तलाशना चाहती और मौसम को पुकारती 'गुदगुदी'. वो जब भी उसके साथ होती तो इसी मौसम की सिफारिश करती. वे अपने साथ नन्ही शीशियाँ लिए घूमते थे. इन शीशियों में मौसमों का इत्र होता था.
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उसे इबारतों में यकीन नहीं था. इशारों में था. चुप्पियों में था.

यूँ भी वो सिर्फ चुप्पियों वाले जवाब मांगती थी. जब आँखों से पूछती थी लड़के से कि शाम का रंग कैसा है तो लड़का कुछ नहीं कहता. धूप से भीगे भीगे कमरे में फिरोजी आँखों वाली लड़की की पेंटिंग बनाता रहता.
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लड़की अपनी स्किन को रफ कॉपी की तरह इस्तेमाल करती. किसी का नाम. कोई भूली ग़ज़ल का मिसरा. पसंदीदा फिल्मों के कोट्स...सब लिखती रहती. इक दिन ऐसी ही बेख्याली में लिख दिया...Love is all a matter of time...इश्क़ को सिर्फ मोहलत चाहिए होती है...बहुत बाद में उसका ध्यान गया कि ये गलत लिख दिया है उसने...मगर फिर शायद जिंदगी के इस मोड़ पर उसे इसी फलसफे को सुनने की जरूरत थी. यूँ भी जिंदगी में अकस्मात् तो कुछ नहीं होता. इक वक़्त के बाद सब कुछ इश्क़ ही हो जाता है. महबूब भी. रकीब भी.
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अपनी कल्पनाओं के अँधेरे में लड़की उसकी गंध में भीगती. रूह तक. घर के सबसे ऊंचे ताखे पर रखती शिकायतों की गुल्लक, उससे मांगी गयी पेंसिलें और फिरोजी रंग के कॉन्टैक्ट लेन्सेस.
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मगर सच सिर्फ ये होता कि ये दुनिया अगर इश्वर की जगह उस लड़की ने बनायी होती तो भी सब कुछ ऐसा ही होता जैसा कि अभी है.
अबोला. अनछुआ. अनजिया.

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