12 October, 2015

सिगरेट एक आदिम तलब है. कि जो नींद और जाग का फर्क नहीं जानती.


शहर कभी कभी अपनी बत्तियां बुझा देता और खुद को गाँव होने के दिलासे देता. पॉवरकट की इन रातों में लड़की की नींद टूट जाती. आसमान एक फीके पीले रंग का होता. गर्मी की ठहरी हुयी दोपहरों का. जब ये रंग धूल का हुआ करता था. इस रंग का कोई नाम नहीं था. लड़की चाहती थी इस रंग में ऊँगली डुबा ले और जुबां से चख कर कहे...उदासी.

बिजली कट जाने से कहीं भी रौशनी की कोई लकीर नहीं होती जो रात के माथे पर चुभे और लड़की को अपने बेतरतीब घर में अमृतांजन ढूंढना पड़े. उसे याद नहीं आता कि वो आज से करीबन दस साल पहले अपने बैग में हमेशा अमृतांजन क्यूँ रखा करती थी. 

लड़की उन दिनों ख़ामोशी पहनना सीख रही होती. बिजली चले जाने से हर ओर चुप्पी होती. पंखों के चलने की आवाज़ नहीं होती. फ्रिज चुप पड़ा होता. सड़कों के स्ट्रीट लैम्प भी एक दूसरे से इशारे में ही बात करते थे, इसलिए बिजली कटने के बाद वे भी चुप देख ही पाते थे एक दूसरे को और ठंढी सांस भरते बस. 

सिगरेट एक आदिम तलब है. प्यास से गला सूखने की तरह. कि जो नींद और जाग का फर्क नहीं जानती. लड़की ने अँधेरे में अंदाज़ से सिगरेट का पैकेट तलाशा है. डाइनिंग टेबल पर दो पैकेट पड़े हैं. ब्लू लीफ और मार्लबोरो. उसे ध्यान है कि घर में बीड़ी भी है. ब्लू लेबल भी. फ्रिज में बर्फ भी. इन सब की याद सलीके से आती है उसे. किट किट किट आवाज़ है. चिंगारी दिखती है. पहला लाइटर काम नहीं करता. शायद फ्लूइड ख़त्म हो गया होगा. अँधेरे में मालूम नहीं कर सकती. वो याद करने की कोशिश करती है कि माचिस कहाँ मिलेगी घर में. पूजाघर में होगी कि नहीं. गैस के लाइटर से जलाई जाए. फिर वहीं टेबल पर दूसरा लाइटर मिल जाता है. अँधेरा और ख़ामोशी एक दूसरे के पर्याय हैं शायद. बिजली जाने के साथ बहुत सी आवाजें डूब जाती हैं. स्तब्ध रात है. दूसरे लाइटर से सिगरेट जलती है. कागज़ और अन्दर मुड़े-तुड़े टोबैको लीफ के पत्तों के जलने की आवाज़ आती है. ये बहुत ही फीकी आवाज़ है जो सिर्फ ऐसी एकदम चुप रातों में सुनी जा सकती है. लड़की एक लंबा, गहरा कश खींचती है. सिगरेट का लाल सिरा ज़रा तेज़ी से जलता है. उसे अपने दायें गाल पर लाल रौशनी महसूस होती है. दिखती है. 

रात बहुत शांत है. बहुत. बहुत दूर की रेलगाड़ी की आवाज़ आ रही है. स्टेशन लेकिन किसी और शहर का याद आता है उसे. एक शाम. सूरज डूब चुका था. रात इतनी चुप है कि उसे लगता है महबूब के दिल की धड़कन सुन सकती है. रात के सीने पर हाथ रखती है. महसूसती है अपनी कलाई से उठता इको. वो गहरी नींद सो रहा है. लड़की सॉफ्ट व्हिसल करती है. शोले की धुन. उसका दिल करता कि वो माउथऑर्गन बजाये. बहुत बहुत साल हो गए. रात की चुप में उसकी धीमी व्हिसल बहुत दूर तक जाती है. महबूब की खिड़की तक, चांदनी की तरह दबे पाँव उतरती है कमरे और चूम लेती है उसके होठ. उफ़...आज फिर उसने सिगरेट पी थी.

यूँ वो तानाशाही थी...मगर वे एक दूसरे को सरकार कहा करते थे. उन दिनों दुनिया का कारोबार बड़ी आसानी से चल रहा था. लोग एक दूसरे को धर्म के नाम पर मार देने को उतारू नहीं थे. ग़ुलाम अली के कॉन्सर्ट में वे एक दूसरे को एक तिरछी नज़र देख लेना चाहते थे कभी कभार. उन दिनों आज़ादी नहीं थी मगर ख्वाहिशों की दुनिया में एक आध छोटे गुनाहों की इज़ाज़त थी. उन दिनों गहरी नींद में चीखें नहीं दबी होती थीं. उन दिनों. नींद गहरी हुआ करती थी. हर शहर में बिजली चौबीस घंटे रहती थी. लड़की अपने एयरकंडीशंड कमरे में सोती थी. उसका होटल का कमरा नॉन-स्मोकिंग था और उसमें बालकनी नहीं थी. लड़की के पास बीड़ी भी नहीं हुआ करती थी उन दिनों और ना उसकी कलाई पर जले के निशान. उन दिनों उसकी कलाई पर महबूब के नाम का पहला अक्षर लिखा होता था. 

लड़की अँधेरा तलाशती चलती, शिकारी कुत्तों की तरह. अँधेरा उससे भागता रहता. कभी कभी वो हवाईजहाज में बैठती तो आधी धरती घूम आती मगर सूरज ठीक उसकी खिड़की के साथ साथ चलता रहता. झपकी भर भी नींद नहीं मिलती. जब से लड़के ने उसकी आँखें चूमी थीं, उसकी पलकें पारदर्शी हो गयीं थीं. उसे सोने के लिए अँधेरे की जरूरत पड़ती थी.

लड़की उसके शब्दों से छिलती थी. कटती थी. मगर फिर भी उसके शब्द मांगती थी. उसके शब्दों में इतनी धार थी कि सीने में धंस जाए तो जान चली जाए. लड़का जानता था. इसलिए अपने ख़त छुपा के रखता था. किसी शाम जब लड़की को बिलकुल मर जाने का मर करता तो उससे कहती...जीते जी तुमको कोई क्रेडिट नहीं दिया लेकिन कसम से, अपने मरने का क्रेडिट तुमको ही दे कर जायेंगे. पूरा का पूरा. 

लड़की बहुत कड़वी हो गयी थी इन दिनों. सस्ती सिगरेट की तरह. घटिया शराब की तरह. बासी कॉफ़ी की तरह. उसका प्याला कि जो इश्क़ से यूं लबालब भरा था कि छलका पड़ता था...खाली हो गया था...और टूट गया था. लेकिन वो किसी से भी नहीं कहना चाहती थी...यू नो...यू हैव टू लव मी बैक.

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 13 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. Puja didi apse niwedan hai ki kirpya.
    blog ka background coular change karne ki kirpa kare.

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    1. मुझे इसका रंग पसंद है, फिलहाल इसे नहीं बदल रहे हैं।

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