04 March, 2015

इक आखिरी कहानी का इश़्क

उसे किताबों से डर लगता था. किताबों में प्रेत होते थे. लम्बी दाढ़ियों, बिखरी जटाओं और बढ़े लम्बे नाखूनों वाले. वे उसे किताब में बंद कर देना चाहते थे. 

लड़की शब्दों से भागते चलती मगर किताबें उसे नहीं बख्शतीं. उन्होंने उसपर निशान लगा दिया था. लड़की जहाँ भी जाती, किताबें उसका पीछा करते हुए पहुँच जातीं. किताबों में तिलिस्म हुआ करते...तिलिस्मों के दरवाजे...दरवाजों के पहरेदार कि जो लड़की के दुपट्टे की गंध सूंघते पहुँच जाते और उसके दुपट्टे का छोर पकड़े उसे पीछे पीछे चलते. 

शब्द उसे कभी भी दबोच लेते. पुरानी किताबों के पुराने प्रेतों को उसके दिमाग का पूरा नक्शा मालूम रहता. वो कितना भी किसी शहर की भूलभुलैया में छुपी बैठी रहती वे उस तक पहुँच जाते. पुरानी बावलियों...स्टेशनों...गुम हुए पुराने गाँवों में उसे जा धरते.

लड़की भागती फिरती...किसी शहर. गाँव. ठांव. नहीं ठहरती. मगर किताबें उसे चैन से जीने नहीं देती. बूढ़े बरगदों में रखे कोटरों से उग आतीं प्रेतों की लम्बी उँगलियाँ और लड़की की रातों को जकड़ लेतीं. घुप शहरों के गुम अंधेरों में उड़ने लगती छपे हुए पन्नों की ताज़ा गंध और लड़की उन कातिल बांहों में जाने के लिए बेताब हो उठती. फड़फड़ाने लगता मजार पर बंधा चूनर का टुकडा कि लड़की के पैर बाँधने को बस एक वही दुआ काम करती थी. लड़की बेबस हो जाती. उसके पैर रुनझुन रुनझुन थिरकने लगते. उसकी उँगलियाँ उसके बदन का पन्ना पन्ना पलटने लगतीं. उसकी छटपटाहट दुनिया की सारी लाइब्रेरीज में भूकंप के झटके ले आती...कभी कभी तो ऐसा भी होता कि धरती फट जाती और सारी किताबें उसमें दफ्न हो जातीं. कभी कभी रेत का अंधड़ उसके शहर की सारी किताबें उड़ा कर ले आता और अगली सुबह शहर में पश्चिम की ओर एक ऊंचा टीला बन जाता. लोग कभी न समझ पाते कि शहर की किताबों के गुम होने और रेत के टीले के उग आने के बीच क्या रहस्य है. बहुत सालों बाद जब दीमकों ने सारी किताबों को धूल कर दिया होता एक दिन रेत का टीला गायब हो जाता. वैसे ही जैसे कि आया था. लोग बरसों किताबों को ढूंढते फिरते. यूँ लोग बरसों उस लड़की को भी ढूँढा करते थे. मिलता मगर कोई न था. 

किताबें जादू हुआ करती थीं. एक ज़माने में किताबों का हर पन्ना मरहम का एक फाहा था जो उसके छिले घुटने और नील पड़ी कोहनियों को ठीक कर दिया करता था. नए पन्नों की गंध एनेस्थीसिया का काम करती और वो नन्ही, मासूम लड़की अपनी सारी तकलीफें भूल जाती. उन दिनों किताबों में हुआ करते थे दिलफरेब किरदार कि जो उसकी तन्हाइयों की दवा करते. लड़की दिन रात उसी दुनिया में रहना चाहती. वो पढ़ने का वक़्त अपनी नींद से, खाने के समय से और अपनी साँसों से चुरा लेना चाहती थी. 

जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी लड़की ने छिली कोहनियों और घुटनों के दर्द में अलग ही सुख तलाशना शुरू कर दिया. ये दिल टूटने के दिन थे. ये मुहब्बत में होने के दिन थे. लड़की को किताबों से ज्यादा उन हाथों का इंतज़ार रहने लगा जो उसके लिए दुनिया भर की किताबें लाया करते थे. उस लम्बे, गोरे लड़के के हाथ बेतरह खूबसूरत थे. अनामिका ऊँगली में एक नीले पत्थर की अंगूठी थी. ये अंगूठी उन दोनों की किताबों के तिलिस्म से रक्षा करती थी. लड़की ने उस साल अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा किताबें पढ़ीं जिनका एक अक्षर भी उसे याद नहीं है. याद है तो सिर्फ अंगूठी के उस नीले पत्थर की ठंढी छुअन. 

धीरे धीरे उन हाथों में आने वाली किताबें कम होती गयीं और एक शाम ऐसी भी आई कि लड़के के हाथ में सिर्फ लड़की का हाथ रह गया. उसने बड़ी नजाकत से लड़की की उँगलियाँ चूम लीं और फिर बड़ी बेरहमी से लड़की के होठ. वे लड़के के घर की लाइब्रेरी में गए और उन्हों एक दूसरे की जिल्दें उघाड़ डालीं और चिन्दियाँ बिखेर दीं. किताबों ने उनकी इस बेवफाई के कारण उन पर उम्र भर की सजा मुक़र्रर कर दी.

उस कमसिन उम्र में उन्हें किताबों के बीच चली साजिशों का पता तक नहीं चला. वे अपनी पहली मुहब्बत में थे. उन्हें मालूम नहीं था कि किताबें बेरहमी की हद तक पजेसिव भी हो सकती हैं. लड़की किताबों की सिर्फ जिल्द देखती. हर्फों की जगह उसे लड़के के हाथ दिखते. उसके बदन में किसी नयी किताब के पन्नों की फड़फड़ाहट भर गयी थी. वो हर लम्हा चाहती थी कि लड़का उसे खोले, सहलाए, सूंघे...बदन की पसंदीदा जगहों को गहरा लाल अंडरलाइन करे. लड़का भी दीवाना हुआ करता. बुकमार्क्स तलाशता. लड़की के बदन पर जगह जगह लौट आने के निशान रखता जाता. काँधे का काला तिल. पीठ पर लगा टूटी चूड़ी के ज़ख्म का निशान. नाभि पर चमकती नग. लड़का उसके बदन में कहीं रह जाना चाहता कि जैसे किताब के पहले पन्ने पर लिख दिया करता था अपना नाम और तारीख. 

लड़के को मालूम था उन दिनों भी कि अच्छी किताबें और अच्छी लड़कियां किसी एक की नहीं होतीं. उनपर सबका बराबर हक होता है. कोई भी उसे माँग कर ले जा सकता है...न कहने पर चुरा कर ले जा सकता है…या कि छीन कर भी ले जा सकता है. उस सांवली सी लाल रंग की जिल्द वाली किताब को इक रोज़ उसकी अनुपस्थिति में उसका पड़ोसी उठा ले गया. लड़का जानता था कि किताब अब बहुत साल बाद कभी लौट कर वापस आएगी और उस पर जगह जगह अनजान लोगों के बनाये हुए निशान होंगे...मुड़े हुए पन्ने होंगे और वाहियात किस्म की बातें लिखी होंगी. लड़के ने किसी नयी किताब से दिल लगाने को लाइब्रेरी की सीढ़ी उठायी और सबसे ऊपर वाली रैक में रखी जिल्द वाली काली किताबों को देखने लगा. ये घर का सबसे सुदूर कोना था जहाँ तक पहुँच नामुमकिन तो नहीं पर इतना मुश्किल था कि उसने कभी उन किताबों को पढ़ने को सोचा भी नहीं था. 

पहली किताब की काली जिल्द छूते ही उसे काले जादू का अहसास हुआ था. कि इन किताबों में कुछ वर्जित सुख हैं जिन तक शायद उसे नहीं पहुंचना चाहिए. मन का एक हिस्सा भी कोरा होता तो शायद वह उस किताब को बंद कर के रख पाता मगर मन के सारे सफहों पर लड़की के लगाए लाल निशान थे. उसने पहला पन्ना पलटा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं. किताबों का बदला यूँ कहर ढाएगा ये उसने कब सोचा था. दुनिया की नज़रों से दूर, बंद लाइब्रेरी में उसके और लड़की के बीच जो कुछ पहली बार घटित हुआ था, ये इतना व्यापक और पुरातन है उसे अंदाज़ नहीं था. वात्सायन के सचित्र कामसूत्र के पन्ने पलटते हुए उसे महसूस भी नहीं हुआ कि उसकी उँगलियाँ छिल रही हैं. वे पन्ने सरेस पेपर के बने थे. उनका आकर्षण छिलने के दर्द से और बढ़ता ही जा रहा था. 

लड़की की तकलीफ दूसरे किस्म की थी. वो मुस्कुराते हुए उस लड़के के साथ उस शाम चली तो आई थी मगर उसके दुस्वप्नों में वही नीली अंगूठी की ठंढी छुवन आती रहती. इस लड़के का नाम विसाल था. विसाल के घर में सारी सेकेंड हैण्ड किताबें थीं. मुड़ी तुड़ी. हजारों बार इस्तेमाल की गयीं और बेपरवाही से फेंकी गयीं. यूँ लड़की भी नयी नहीं थी मगर उसे लड़के ने इतना सहेज के रखा था कि उसके कुछ पन्नों से अभी भी नयेपन की खुशबू आती थी. लड़की को विसाल से डर लगता. वो वापस लड़के की लाइब्रेरी में लौट जाना चाहती लेकिन विसाल ने उसके पहले पन्ने पर अपना नाम लिख दिया था. होठों से बहता खून पोंछती हुयी लड़की जानती थी कि अब वो शायद कभी उस लाइब्रेरी की जिल्द लगी किताबों के पास नहीं जा पाएगी. उसकी जिंदगी किसी कबाड़ी के पास २० रुपये किलो में बिकने वाली किताबों जैसी ही होने वाली है. किसी को फर्क नहीं पड़ेगा कि उसके अन्दर क्या लिखा है...सिर्फ बाहरी आवरण...उसकी फिगर...उसकी आँखें और उसके कटाव का वजन होगा. 

उस रात लड़की फूट फूट कर रोई. लौट कर वापस जाने को न किताबें थी. न लड़का. बहुत देर रात उसने आँसू पोछे और पैकिंग शुरू कर दी. अगली सुबह वो किसी नए शहर में किसी नए दर्द की दुनिया तलाशने निकल पड़ी थी. बचपन से पढ़ी किताबों ने उसे इतना सिखाया था कि इस बड़ी दुनिया में उसे रहने को न छत की कमी होती न कभी पैसों की किल्लत. उसे तकलीफ सिर्फ अपनी उस दुनिया के छिन जाने की थी जिसने उसे बचपन से बड़ा सहेज और सम्हाल के रखा था. लड़की को लगा था कि एक बड़ा शहर शायद किताबों के न होने के स्पेस को भर सके और उसे जीने की और वजहें दे सकेगा. उसका झुकाव संगीत की तरफ होता गया. उसने जाना कि संगीत की भी एक अलग दुनिया है जहाँ तकलीफों को नदी में बहाया जा सकता है. वो हौले हौले बहने लगी. वक़्त गुज़रते उस मद्धम नदी के साथ रिषभ उसकी जिंदगी में आया. संगीत का दूसरा स्वर. जीवन का दूसरा प्रेम.

किताबों ने लड़की के धोखे को मगर अपनी जिल्द में उम्रकैद दी. लड़की गश खा कर गिरी जिस दिन उसने पड़ोस की बुक स्टाल पर से किताबें खरीदते वक़्त अपनी नग्न तस्वीर एक किताब के कवर पर देखी. एक कमजोर लम्हे का विसाल उसकी जिंदगी का ऐसा सियाह चैप्टर लिख जाएगा उसने कहाँ सोचा था. कम उम्र की अपनी बेवकूफियां होती हैं जिनकी सजाएं अक्सर गुनाहों से कहीं ज्यादा बड़ी होती हैं. लड़की का दिल विसाल ने नहीं किताबों ने तोड़ा था. उसकी बचपन से की गयी मुहब्बत को दरकिनार करके किताबों ने उसकी एक लम्हे की बेवफाई चुनी. 

उस रोज़ से लड़की ने किताबों से अपना उम्र भर का नाता तोड़ दिया...दूसरी मुहब्बत...दूसरा शहर और दूसरा स्वर दरकिनार करके फिर एक नए शहर को निकल पड़ी लड़की. वो बचपन से किताब बन कर एक खूबसूरत लाइब्रेरी में रहना चाहती थी मगर अब उसे अपने लिए नया मकान तलाशना था. उसने नील नदी किनारे बसा एक गाँव चुना जहाँ के शब्द उसे समझ नहीं आते. जहाँ की भाषा उसे समझ नहीं आती. जहाँ की किताबें उससे बदला लेने का ख्वाब नहीं बुनतीं. 

मगर फिर भी बिजनेस के सिलसिले में जब भी उसका कहीं बाहर आना होता है किताबें उसे घेर कर मारने के प्लान्स बनाती हैं...लड़की को किताबों से डर लगता है लेकिन कभी कभी किसी खूबसूरत कवर वाली किताब को देखती है तो लेखक के नाम पर हौले से फिराती है उँगलियाँ और याद करती है उसी लड़के को...नीले पत्थर की ठंढी छुअन को और पढ़ती है दुआ कि किसी को उससे कभी इतना प्यार हो कि अपनी कहानी में उसका खून लिख सके. वो मांगती है खुदा से एक कहानी का इश्क कि जिसके आखिर में वो डूब कर मर सके कि उसकी मुक्ति किसी कहानी में मर जाने में ही है. 

किसी लड़के में नहीं है ऐसी ताब कि कर सके उससे इश्क और लिख सके उसकी कहानी और क़त्ल कर सके उसका अपनी बांहों में भर कर. इसलिए मैं डूबती गयी हूँ उसके इश्क़ में...अब मुझे कहीं लौट कर नहीं जाना...कि ख़त्म हो गयी है कहानी...लड़की और मैं...

जरा उस लड़के से जा गुजारिश कर दो...आईने में देखो अपनी आँखें...चूमो अपनी उँगलियाँ...और कहो आमीन...

3 comments:

  1. आज 'ढेर दिन बाद' ब्लॉग पढ़ने आया तो पता लगा तुम्हारे 79 पोस्ट अनपढ़े बचे हैं फीड में ! :(

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    1. इतने कितने जितने सारे हो गये हैं कि कभी पढ़े नहीं जायेंगे! और तुम कितने सालों बाद लौट कर आये हो.

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  2. http://humsematpuchho.blogspot.in/

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