15 October, 2014

पतिता

एक रोज़ उदात्त हो कर
तुम माफ़ कर देना चाहोगे मेरे सारे गुनाह
खोल दोगे दरवाज़ा
कि मैं वापस दाखिल हो सकूँ तुम्हारी जिंदगी में
चाहोगे कि फिर से घर की क्यारियों में रोप दूं
इश्क के नन्हे बिरवे
फसल पके, तैयार हो और हम पहले की तरह बैठे डाइनिंग टेबल पर
रेड वाइन पीते हुए तुम कहो कि मेरी आँखें खुदा की आँखों जैसी हैं
कि मेरी खुशबू से उठता है एक पाकीज़ा अहसास तुम्हारे जिस्म में
कि तुम मुझे छूने से ज्यादा मेरी इबादत करना चाहते हो

उस रोज़
मैंने क़ुबूल लिए होंगे अपने सारे अपराध
कर दिए होंगे सरकारी दस्तावेज़ पर दस्तखत
जब मैं नाम गिनाउंगी तुम्हारी पुरानी प्रेमिकाओं के
जज हत्याओं को कहेगा 'क्राइम ऑफ़ पैशन'
और मुझपर रियायत बरतते हुए कम कर देगा मेरी सजा
सिर्फ इक्यासी सालों तक की उम्रकैद बनिस्पत मृत्युदंड के

मुझे तब भी न आएगा प्रायश्चित का सलीका
मैं तब भी सीखूंगी काला जादू
और दु:स्वप्नों में नोच लूंगी उनकी नीली आँखें
रचती रहूंगी उनके नाम से अभिशप्त, आत्मघाती किरदार
कि जब तक ये उनके जीवन का सच नहीं हो जाता

मगर इतने में भी अगर नहीं मिलेगा सुकून
तो मैं शैतान के पास बेच आउंगी अपनी रूह
कर लूंगी चित्रगुप्त के साथ कोई अवैध करार
और उनके नाम लिखवा दूँगी प्रताड़नायें
और एक बेहद लम्बी उम्र

तुमसे आखिरी बार मिलने के रोज़
बताते हुए कि कितना गहरा है इश्क
चूल्हे पर रखते हुए तुम्हारे पसंद की चाय
रिसने दूँगी बहुत सारी ज्वलनशील गैस
तुमसे कहूँगी मेरे लिए जला दो एक सिगरेट
धमाके से लगेगी आग
कि जिसमें तुम्हारे साथ जल मरूंगी
बिल्कुल किसी सती स्त्री की तरह.

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