04 March, 2014

डाकिये से कहना, घर में कोई नहीं रहता

खत जो आते हैं तेरे
लगाते हैं कागज़ को गुदगुदी
तेरी उँगलियों की खुशबू में लिपटे
आफ्टर शेव, हाँ क्या?

खत जो आते हैं तेरे
बताते हैं मेरे शहर में तेरे मौसम का हाल
खुल के गिरते हैं लिफाफे से सूखे पत्ते कई
मैं भटक जाती हूं तुम्हारे ख्वाबों से अपने घर का रास्ता

मुझे रोकने को तुम पकड़ते हो हाथ
ठीक वहीं से सूखने लगती है रुह की सारी नदियां
लहरें दम तोड़ती हैं तुम्हारी आंखों के आईने में
तुम्हारे शहर में प्यास बहुत है

तुम्हारे इंतजार में मैं उलीचती हूं
समंदर का सारा पानी
फिर पड़ता है सौ बरस अकाल
मेरी आंखों से गिरता है एक बूंद आँसू

तुम लगाते हो भींच कर गले
कि जैसे कुबूल करने हों दुनिया के सारे गुनाह
अनामिका उंगली में चुभती है निब
गहरे लाल से मैं लिखती हूं सजाये मौत

हम सो जाते हैं गलबहियां डाले
हमारी पहली पूरी नींद
दुनिया के नाम लिख कर
एक ही, आखिरी सुसाईड नोट


*Pic: Kurt's suicide note. Last part. Photoshopped. 

3 comments:

  1. शब्द इतने न उफने कि स्मृतियाँ ही रुद्ध हो जायें।

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  2. हम सो जाते हैं गलबहियां डाले
    हमारी पहली पूरी नींद
    दुनिया के नाम लिख कर
    एक ही, आखिरी सुसाईड नोट.........

    शब्दों के अनछुए पहलु, स्मृतियों को झकझोरते हुए. सुन्दर.

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