01 October, 2013

आवाज़ में भँवरें हैं. दलदल है. मरीचिका है. खतरे का निशान है. मेरे सिग्नेचर जैसा.

लड़की हमारे एक रात के क़त्ल का इलज़ाम तुम्हारे सर.
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गिटार बजता है शुरू में...कहीं पहले सुना है. ठीक ऐसा ही कुछ. बैकग्राउंड में लेकिन चुभता हुआ कुछ ऐसे जैसे टैटू बनाने वाली सुई...खून के कतरे कतरे को सियाही से रिप्लेस करती हुयी...दर्द में डुबो डुबो कर लिखती जाती एक नाम. प्यास की तरह खींचती रूह को जिस्म से बाहर.

गीत के कई मकाम होते हैं...सुर बदलता है जैसे मौसम में हवाओं की दिशा बदलती है और तुम्हारे शहर का मौसम मेरे शहर की सांस में धूल के बवंडर जैसा घूमने लगता है. गहरे नीले रंग का तूफ़ान समंदर के सीने से उठा है हूक की तरह, मुझे बांहों में भरता है जैसे कहीं लौट के जाने की इजाजत नहीं देगा. आवाज़ में भँवरें हैं. दलदल है. मरीचिका है. खतरे का निशान है. मेरे सिग्नेचर जैसा.
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इधर कुछ दिन पहले शाम बेहद ठंढी हो गयी थी. जाने कैसे मौसम बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे दिसंबर आ गया है. जानते हो, दिसंबर की एक गंध होती है, ख़ास. जैसे परफ्यूम लगाते हो न तुम, गर्दन के दोनों ओर. तुमसे गले मिलते हुए महसूस होती है भीनी सी...खास तौर से वो जो तुम ट्यूसडे को लगाते हो. मेरी कहानियों में दिसंबर वैसा ही होता है...नीली जींस और सफ़ेद लिनन की क्रिस्प शर्ट पहने हुए, कालरबोन के पास परफ्यूम का हल्का सा स्प्रे. जानलेवा एकदम. दाहिने हाथ में घड़ी. लाल स्वेड लेदर के जूते. आँखें...हमेशा लाईट ब्राउन...सुनहली. उनमें हलकी चमक होती है. गहरे अँधेरे में भी तुम्हारी आँखों की रौशनी से तुम तक पहुँच जाऊं...घुप्प अँधेरे में दूर किले की खिड़की में इंतज़ार के दिए जैसी अनथक लौ.
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देर रात जाग कर लिखने के मौसम वापस आ रहे हैं. दिल पर वही घबराहट का बुखार तारी है. दिल के धड़कने की रफ़्तार लगता है जैसे ४०० पार कर चुकी हो. मेरी कहानियों का इश्क एक ख़ास एक्सेंट में बोलता है. मेरा नाम भी लेता है तो लगता है कोई पुरानी ग्रीक कविता पढ़ कर सुना रहा हो बर्न के फाउंटेन में भीगते हुए. कभी मिले तुमसे तो उससे पाब्लो नेरुदा की कविता सुनना. मूड में होगा तो पूछेगा तुमसे, तुमने ये कविता सुनी है...सुनी भी होगी तो कहना नहीं सुनी...पढ़ी भी होगी तो कहना नहीं पढ़ी है...फिर वो तुम्हें अपना लिखा कुछ सुनाएगा...उस वक़्त मेरी जान खुद को रोक के रखना वरना समंदर में कूद कर जान दे देने को दिल चाहेगा. खुदा न खास्ता उसका गाने का मूड हो गया तब तो देखना कि धरती अपने अक्षांश पर घूमना बंद कर देगी. रेतघड़ी में रुक जाएगा सुनहले कणों का गिरना. तुम्हारे इर्द गिर्द सब कुछ रुक जाएगा. सब कुछ. खुदा जैसा कुछ होता है इसपर भी यकीं हो जाएगा. सम्हलना रे लड़की उस वक़्त.
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देखना उसकी तस्वीर को गौर से रात के ठहरे पहर. ऐतबार करना इस बात पर कि हिचकियों ने उसे सोने नहीं दिया होगा रात भर. खुश हो जाना इस झूठ पर और आइस क्यूब्स में थोड़ी और विस्की डाल लेना. पागल लड़की, बताया था न, ऐसी रात कभी भी लिख दूँगी तुम्हारी किस्मत में...फिर अपनी पसंद की सिगरेट खरीद कर क्यूँ नहीं रखी थी? मत दिया करो लोगों को अपनी सिगरेट पीने के लिए. देर रात तलब लगने पर कार लेकर एयरपोर्ट चली जाना. ध्यान रहे कि स्पीड कभी भी १०० से कम नहीं होनी चाहिए. दिल करे तो १२० पर भी चला सकती हो और अगर बहुत प्यार आये तो १३० पर. न, जाने दो. बड़ी प्यारी कार है, ऐसा करना १०० से ऊपर मत चलाना. कहीं किसी एक्सीडेंट में खुदा को प्यारी हो गयी तो इश्क का क्या होगा.
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उससे जब भी मिलना ऐसे मिलना जैसे आखिरी बार मिल रही हो. उसका ठिकाना नहीं है. एक बार जिंदगी में आये फिर ऐसा भी होता है कि ताजिंदगी इंतज़ार कराये और दुबारा कभी नज़र भी न आये. तुमने उसे देखा नहीं है ना लेकिन, पहचानोगी कैसे? तो ऐसा है मेरी जान...इश्क आते हुए कभी पहचान नहीं आता. सिर्फ उसके जाते हुए महसूस होता है कि वो जा चुका है. उसके जाने पर ऐसा लगेगा जैसे समंदर ने आखिरी लहरें वापस खींच ली हों...दिल ने पम्प कर दी है खून की आखिरी बूँद...लंग्स कोलाप्स कर रहे हों ऐसा निर्वात है चारों ओर. उसके जाने से चला जाता है जिंदगी का सारा राग...रात की सारी नींद...भोर का सारा उजास.
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सामान बांधना और चले जाना नार्थ पोल के पास के किसी गाँव में रहने जहाँ तीन महीने लगातार दिन होता है और फिर पूरे साल रात ही होती है एक लम्बी रात. रात को नृत्य करते हुए लड़के दिखेंगे. गौर से देखना, उसकी खुराफाती आँखें दिखेंगी मेले में ही कहीं. सब कुछ बदल जाता है, उसकी आँखें नहीं बदलतीं. बाँध के रख लेती हैं. गुनाहगार आँखें. पनाह मांगती आँखें. क़त्ल की गुज़ारिश करती आँखें.
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वो कुछ ऐसे गले लगाएगा जैसे कई जन्म बाद मिल रहा हो तुमसे. बर्फ वाले उस देश में औरोरा बोरियालिस तुम्हें चेताने की कोशिश करेगा...पल पल रंग बदलेगा मगर तुम उसकी आँखों में नहीं देख पाओगी खतरे का कोई भी रंग. वो डॉक्टर के स्काल्पेल को रखेगा तुम्हारी गर्दन पर और जैसे आर्टिस्ट खींचता है कैनवास पर पहली रेखा...जैसे शायर लिखता है अपनी प्रेमिका के नाम का पहला अक्षर...जैसे बच्चा सीखता है लिखना आयतें...तीखी धार से तुम्हारी गर्दन पर चला देगा कि मौत महसूस न हो.
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सफ़ेद बर्फ पर लिखेगा तुम्हारे लहू के लाल रंग से...आई लव यू...तुम्हारी रूह मुस्कुराएगी और कहेगी उससे...शुक्रिया.

6 comments:

  1. पहाड़ी नदी की तरह, जितना बहती, उतना सहती।

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  2. "वो डॉक्टर के स्काल्पेल को रखेगा तुम्हारी गर्दन पर और जैसे आर्टिस्ट खींचता है कैनवास पर पहली रेखा...जैसे शायर लिखता है अपनी प्रेमिका के नाम का पहला अक्षर...जैसे बच्चा सीखता है लिखना आयतें...तीखी धार से तुम्हारी गर्दन पर चला देगा कि मौत महसूस न हो"............एक ही साथ इतने वार, ऐसा लगता है जैसे कहीं कुछ छूट गया है, लेकिन उसकी किरच अभी भी दबी हुई है, निकाले निकल नहीं रही। इश्क होता ही ऐसा है, एक बार आ जाये तो जाने का नाम ही नहीं लेता, चला भी जाये तो समंदर की लहरों की तरह हमेशा भिगोता ही रहता है, रह रह कर और उसकी नमकीन यादें फिर तारो ताज़ा हो जाती हैं, कभी जीने का सबब बन कर तो कभी "पश्मीने की रात" में "गुलज़ार" का खुदा बनकर उलट पुलट कर रख देती है सब कुछ और उस समय ज़ंग करने को दिल चाहता है, खुदा से भी, पता है कि जीतना मुश्किल है लेकिन इश्क का जुनून खुदा कहाँ देखता है ......"मूड में होगा तो पूछेगा तुमसे, तुमने ये कविता सुनी है...सुनी भी होगी तो कहना नहीं सुनी...पढ़ी भी होगी तो कहना नहीं पढ़ी है...फिर वो तुम्हें अपना लिखा कुछ सुनाएगा...उस वक़्त मेरी जान खुद को रोक के रखना वरना समंदर में कूद कर जान दे देने को दिल चाहेगा. खुदा न खास्ता उसका गाने का मूड हो गया तब तो देखना कि धरती अपने अक्षांश पर घूमना बंद कर देगी. रेतघड़ी में रुक जाएगा सुनहले कणों का गिरना. तुम्हारे इर्द गिर्द सब कुछ रुक जाएगा. सब कुछ. खुदा जैसा कुछ होता है इसपर भी यकीं हो जाएगा."

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  3. रूह मुस्कुरायी और कहा... शुक्रिया पूजा!
    निर्बाध लिखती रहो ऐसे ही....

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  4. aaap to aise likhte ho jaise k na jaane kitne saalo ka anubhav ho. Bot pyara hamesha k tarah. Kash k mujhe b shabdo se khelne ka hunar mil jaaye..aaap sa.

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