23 September, 2013

इश्क से बड़ा गुनाह करना था कोई. तुम्हारा क़त्ल सही.

तुम्हें मालूम है मैं आजकल तुम्हारे क़त्ल की प्लानिंग करती रहती हूँ. दिन दिन भर कितना सोचती हूँ. किस तरीके से मार दूं तुम्हें. क्या अपने हाथों से तुम्हारा गला दबा दूं? फिर सोचती हूँ कि इन्हीं हाथों से तुम्हें अनगिन चिट्ठियां लिखीं. आधी रात के आगे के पहर, पलंग पर सर तक रजाई ओढ़े लिखती थी तुम्हें. अँधेरे में लिखने का ऐसा अभ्यास कि कभी हाथ नहीं काँपे...दिन को देखो तो ऐसी सधी हुयी लिखाई जैसे तरतीब से मेज और कुर्सी पर बैठ कर लिखो हो तुम्हें. तब जबकि पूरब से धूप आ रही हो और पुरवा बह रही हो. पूरे दिन का होमवर्क करने के बाद इत्मीनान से तुम्हें लिख रही हूँ चिट्ठी. मगर ऐसा नहीं हुआ था कभी भी. अँधेरे में तुम्हारा नाम यूँ लिख लेती थी जैसे तुम पहचान लेते थे शाम को ट्यूशन से वापस लौटती लड़कियों के झुण्ड में मुझे. कभी हाथ पकड़ लेते थे, कभी दुपट्टा. कोई महीने भर की बिजली बोर्ड से खिच खिच के बाद जाकर कमबख्तों ने गोलंबर का लैम्पोस्ट ठीक किया था. एक ही दिन रौशनी में जा पायी थी, अगले दिन फिर से बल्ब गायब और शीशा टूटा हुआ. तुमने कभी सोचा भी कि अँधेरे में गलती से कोई मेनहोल में गिर सकता था. कोई दिन मैं ही गिर जाती तो?

जाहिल ही रहे तुम. बदतमीज एक नंबर के. गलियों को लेकर थेथर. इतना भी सलीका नहीं था कि लड़की की कलाई जोर से नहीं पकड़ते हैं. उसपर मेरा गोरा शफ्फाक रंग कि नील पड़ी कलाइयाँ छुपाती फिरती दिन भर. चूड़ियों का शौक़ तभी से लगा था. कितना तो सब चिढ़ाती थीं मुझे कि शादी करने का बहुत शौक़ लगा है. तुम्हें ये सब कहाँ समझ आता था कभी. सब तुम्हें लुच्चा कहते थे. लेकिन सहेलियां थी भी कुछ ऐसीं कि मुझसे मर्जी जितना झगड़ लें. तुम्हें मुझोंसा कहें मगर मजाल है कि घर पर किसी एक खबर की चुगली जाए. कॉलेज में इतनी साफ़ सुथरी छवि थी मेरी कि एक दिन छुट्टी लेती अगर तो घर पर लोग देखने पहुँच जाते कि लड़की कितनी बीमार पड़ गयी. सावन पूर्णिमा को मेहंदी लगाती थी भाई की लम्बी उम्र के लिए. तुम अक्सर पहुँच जाते थे कि देखो मेहंदी का रंग कितना लाल आया है. पति बहुत प्यार करेगा तुमसे. मैं हमेशा कहती थी कि ये रंग इसलिए आता है कि भाई मुझपर जान छिड़कता है. जिस दिन जान जाएगा तुम्हारे बारे में, उसी दिन गंगा बालू में काट कर गाड़ देगा. मालूम भी नहीं चलेगा किसी को कहाँ गायब हो गए हो.

होली में गला फाड़ फाड़ के गाने की जरूरत नहीं है. तुम मोहल्ले आये हो तुमसे पहले तुम्हारे खबरी बता जाते हैं हमको. तुमको क्या लगता है हम हमेशा छत पर तफरी करते रहते हैं. ख़ास तुम्हारे लिए आना पड़ता है. कभी बड़ी पारने के बहाने कभी पापड़ सुखाने के बहाने. मगर ये मैं तुम्हारा गला दबाने की बात करते करते कितनी बातें करने लगी तुम्हारी. सामने अचार का मर्तबान रखा हुआ है. दिल करता है फ़ेंक मारूं उसे दीवार पर. नुकीले धारदार कांच से गला रेत दूं तुम्हारा. लगता बस ये है कि उँगलियाँ कांप जायेंगी. मुझे हो न हो, मेरे हाथों को तुमसे बहुत प्यार है. ख़ास तौर से उँगलियों को. ये अनामिका में जब से तुम्हारे नाम की अंगूठी पहनी है तब से मेरे हाथ मेरे नहीं रहे. तो क्या हुआ अगर लोहे की अंगूठी है और तो क्या हुआ अगर तुमने किसी पंडित के सामने मन्त्र नहीं पढ़े और मैंने खुद तुम्हारा नाम लेकर अंगूठी पहनी है. मन में सोच तो लिया ना कि अब तुम्हारी हूँ, हमेशा के लिए. फिर कहाँ बचती है कोई भी रस्म.

मगर तुम्हारीं उँगलियों में तो हीरे की अंगूठी है. खरीद लिया है उस लड़की के बाप ने तुम्हें और तुम्हारे पूरे खानदान को. मुंह तक नहीं खुला तुम्हारा. गोरी चमड़ी देकते ही पूरे घर वाले फिसल गए. अमरीका जा कर क्या बड़ा तीर मार लोगे. ग्रीन कार्ड कोई ऐसी ही अद्भुत चीज़ होती तो मर रहे होते ससुरे मोहल्ले के सारे लड़के उस कुलांगार से शादी करने के लिए. मगर उस चुड़ैल को तुम ही पसंद आने थे. तुम्हारी बरात के लिए पूरे मोहल्ले की सड़कें ठीक कर दीं गयीं. वो गोलंबर वाला मेनहोल भी भर दिया और सारे ट्यूबलाईट और हैलोजेन लगा दिए गए. अब कौन सा अँधेरा था कि मैं तुम्हारे काँधे लग कर एक बार रो भी सकूं. सहेलियां मेरा दर्द समझती थीं. जिस दिन हाथों के नील ख़त्म हुए उन्होंने पत्थर से मेरी चूड़ियाँ तोड़ दीं और मुझसे वादा लिया कि तुम मेरे लिए मर गए हो. तब तक बरसात ख़त्म हो चुकी थी और गंगा अपना तांडव समेट कर वापस लौट चुकी थी वरना मैं कसम से जान दे देती.

पागलों वाली हालत हो गयी है मेरी. उस जहरीली सांपिन को मेरा श्राप लगेगा. तू न तन से उसका हो पायेगा न मन से. मेरी याद तुझे ताउम्र डसती रहेगी. मगर सारी समस्या की जड़ तो तू है. तुझे खाने में जहर दे कर मार दूं. हमेशा से तुझे मेरे हाथ की खीर बहुत पसंद है. क्या मिला दूं उसमें कि तुझे अंदाजा न लगे. केमिस्ट्री लैब में पढ़ा रहे थे सर, कोई तो गंधहीन जहर होता है, केमिस्ट की दूकान पर मिलता है. अधिकतर किसान वही खा कर मरते हैं, जब उनकी फसल से उनका कर्जा उतरने को नहीं होता. जहर से मरने में तकलीफ होगी. पेट में दर्द होता है, शरीर ऐंठने लगता है. उलटी भी आती है और कई बार तो एक पूरा हफ्ता लग जाता है मरने में. ऐसी मौत तो नहीं दे सकती तुझे. इतने दिनों का प्यार है कमसे कम प्यार की मौत तो देनी चाहिए तुझे. इसमें तेरी क्या गलती कि उस फिरंगन ने तुझे पसंद कर लिया और तेरी चारों बहनों का बेड़ा पार लगाने का ठेका ले लिया. किसी चरवाहे के घर जा कर जिंदगी भर गोबर, बर्तन, चूल्हा करती. ऐसे में एक मेरी ही तो जिंदगी गयी चूल्हे में. चार बहन पर एक प्रेमिका चार बार निछावर है. मेरा भाई भी होता तो यही करता मेरे लिए. मगर हाय रे मेरे ही करम काहे फूटे.

तुझे जल्दी मार देने का एक और उपाय है. जिस बिल्डिंग में तू मजदूरी करता है उसके सबसे ऊपर वाले फ्लोर से तुझे धक्का दे दूं. मिनट भी नहीं लगेगा और काम तमाम हो जाएगा. रोज सोचती हूँ. खिड़की से देखती हूँ तुम्हें. सर पर ईटों की ढुलाई करते हुए. पहले कितना तो मासूम सपना होता था मेरा. एक दिन तुम्हारे लिए आँचर में बाँध कर तुझे दो रोटी और प्याज दे आने का सपना. देखो न रे, पल में कैसा प्यार बदल गया मेरा. सौतिया डाह बहुत ख़राब चीज़ होती है रे. तुमको उ दिन याद है जब हम बिल्डिंग पर पहुँच गए थे. तुम कितना पसीना में भीगे हुए थे. अपना दुपट्टा से तुमरा पसीना पोछे थे हम. बीस महला थी बिल्डिंग. तुम हमको बता रहे थे कि तुम कितना मेहनत करते हो और ऐसे ही एक दिन ठेकेदार बन जाओगे. मेरे इतना पढ़े लिखे न सही, पैसा तो इतना कमा ही लोगे कि हम दोनों का काम चल जाए. उतने ऊपर बिल्डिंग से पैर लटका कर बैठे हुए जरा भी डर नहीं लग रहा था. आज डर लग रहा है, वहां से कैसे धक्का दे दूं तुम्हें. मन नहीं मानेगा न.

काला है सब. सियाह है सब कुछ. ऊपर वाले ने कपार पर यही लिख कर भेजा है कि तुम्हारे खून से हाथ काला कर लें तो ये भी हो. तुम्हारे नाम का सिन्दूर न सहे तुम्हारे क़त्ल का कालिख तो हमारे हिस्से आये. पड़े रहे उम्र कैद में जिंदगी भर, यही सोचते हुए कि तुम्हारी बेवा रहे. इतना पढ़ लिख कर भी लेकिन ये समझ नहीं आ रहा कि तुम्हारा खून कैसे और किस तरीके से करें. खुद को समझा रहे हैं. कलेजा कड़ा कर रहे हैं. मार तो तुमको देंगे. खाली ई सोचना भर बाकी है कि कैसे. कौन सब लोग होता है कि प्यार करने को मर्द का कलेजा चाहिए. कौन मर्द का औकात हमारे जैसा प्यार कर सके. कल. कर करेंगे तुम्हारा खून.


इश्क तो कर चुके हम 
एक क़त्ल का गुनाह बाकी है 
सो तुम्हारा सही 


आज रात बस देखने को नज़र भर तुमको. चाँद को. एक एक ईंट करके बनती उस बिल्डिंग को. पहली बार ऐसा सोचे थे तब से चौदह चाँद रात बीत गयी है और बिल्डिंग आधा पूरा हो गया है. हमको फिर भी यकीन है कि कल. कल मार देंगे हम तुमको. कल. पक्का. तुम्हारी कसम. 

9 comments:

  1. किसी को मारने से पहले कहीं न कहीं हम खुद मर जाते हैं। बहुत ही खूबसूरती से दर्द बंया किया है।

    ReplyDelete
  2. जब इतना सोचना पड़ रहा है तो, किछु होबे ना।

    ReplyDelete
  3. kitna sundar likhte hain aaap.laharein jab padte hain na. To GUNAHO KA DEVTA ki takkar ka lagta hai. Patna wali boli to Sone pe suhaga.. Lajawaab

    ReplyDelete
  4. आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 26/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
    आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

    ReplyDelete
  5. Sach hai "इश्क तो कर चुके हम
    एक क़त्ल का गुनाह बाकी है
    सो तुम्हारा सही "
    one after another I read almost 22 posts without realizing that it is more than an hour now... very engaging writing. Hats off.

    ReplyDelete
  6. उफ्फ्फ ! दिल भर आया। .

    ReplyDelete
  7. तुम जादूगर हो शब्दों की...सचमुच

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...