03 February, 2013

पातालगंगा

इक नदी थी कि जिसे उसके बहते हुए रहने का धोखा था...सालों पड़ती ठंढ में पानी जम गया था...नदी अब बर्फ की एक चट्टान सी हो गयी थी...टनों मोटी बर्फ की चादर थी. कौन जानता था नदी के दिल का हाल. गाँव की बूढी औरतें ही थीं जो कहती थीं कि नदी के सीने में अब भी गर्म पानी का सोता है, सोने के रंग की मछलियाँ हैं...मोती बुनती सीपियाँ हैं...डूबी हुयी किश्तियाँ हैं...लिखी हुयी चिट्ठियां हैं, समंदर तक पहुँचाने के लिए.

नदी थी कि देख नहीं सकती थी कुछ भी, उसे महसूस होती थी अपने बदन पर प्रियतम की उँगलियाँ...कि वो धीरे धीरे सरकती थी बंजर मैदानों पर और उसे लगता था कि एक दिन दूब उगेगी इन्ही ढलानों में, हरी मखमली दूब. नदी पागल थी कि सपने देखती थी समंदर के...ग्लेशियर से निकल कर भी डूबना चाहती थी समंदर के अन्दर बहने वाली किसी नदी में. बरक़रार रखना चाहती थी किसी पहाड़ की उँगलियों की गर्मी, बर्फ की परतों के नीचे. उसने सुना था कि बर्फ में चीज़ें कभी ख़राब नहीं होतीं.

किसी पहाड़ ने समेटा था एक बार उसे अपनी बांहों में...नदी उसी दिन पिघलनी शुरू हुयी थी मगर पिघलते ही उसे छोड़ कर आना पड़ा था वो पहाड़ी कबीला जो उसके सदानीरा होने के गीत गाता था. घाटियों के लोगों के दिल पत्थर थे...उनके किनारे घिसते घिसते नदी छिलती जाती...परत दर परत छूटती जाती. किसी ने कहाँ समेटा छूटी हुयी नदी के टुकड़ों को. नदी के आंसू कोयला खदानों की अमानत हो गए.

कभी कभी पूरी नदी सिर्फ एक पुकार का शब्द बन जाती थी मगर नदी की शिराओं में आवाज़ सफ़र करते ही गुम हो जाती थी. कोई भी नहीं बुला पाता उसे जिसे नदी बुलाती थी. नदी की एक सखी थी... पातालगंगा... मरनेवालों को पार लगाती थी. नदी में रोज जान देती थीं कितनी लहरें.

नदी थी कि बंजर मैदानों की फटी बिवाईयों पर जड़ी बूटियों सी उगती जाती थी...नदी थी कि प्रवासी पक्षियों को रास्ता दिखाती थी...नदी थी कि हीर को रांझे से जुदा करती थी और मिलाती थी.

गीतों में कहते हैं कि नदी है...मगर गीत गाती औरतों की आँखों में देखो तो जानोगे कि नदी थी...

5 comments:

  1. नदी का जीवन से साम्य अद्भुत है..बहते रहना आवश्यक है..

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  2. गीतों में कहते हैं कि नदी है...मगर गीत गाती औरतों की आँखों में देखो तो जानोगे कि नदी थी...
    अब इसके बाद कहने को कुछ नहीं बचा

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  3. सुंदर प्रस्तुति...आपके ब्लॉग पर आके अच्छा लगा।

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  4. kya aap jaanti hain... "patalganga" naam ki ek nadi hai... Uttrakhand mein... bahut hi khatarank hai... baarish e dino mein... pehale bhi kai durghatano ke karan raha hai...
    karan ye rahata hai ki... nadi ki bahaw kaafi tez hai... aur nadi ke kinaron ke chattan... kamzor... kataw tez hota hai... aur kaafi bade bade... bolders tak... apne bahaw mwin baha laati hai... par ek jagah bahut hi sakri jagah se guzarti hai ye nadi... majboot chatton ke beech mein se... aur isi jagah hamesha dikkat aati hai... wo debris se block ho jaati hai... aur ek temprory dam ka nirmaan ho jata hai... jo ekaek... paani ke discharge ke karan..... downstream mein rahane waalon ke liye... bhari pad jata hai...

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