06 December, 2012

बातें, सब बातें झूठी हैं

गाँव से बहुत दूर एक पुराने किले में एक दुष्ट जादूगरनी रहती थी जो कि छोटे बच्चों को पकड़ कर खा जाती थी...लेकिन आप जानते हो कि ये कहानी झूठी है कि गाँव के छोर पर एक गरीब की झोंपड़ी थी जिसमें एक सुनहले बालों वाली राजकुमारी रहती थी...उसके बाल खुलते थे तो सूरज की किरनें धान के खेतों पर गिरतीं थीं और गाँव वालों की खेती निर्बाध रूप से चलती थी.

वो जो दुष्ट जादूगरनी थी उसे काला जादू आता था...वो बच्चों को बहाने से बुला लेती थी और फिर उनका दिल निकाल कर उसकी कलेजी तल के खाती थी. उसे खरगोश जैसे मासूम बच्चे बहुत पसंद थे. गाँव के सारे बच्चों की माएं उन्हें उस जादूगरनी के बारे में बता के रखती थी और उनकी रक्षा के लिए काला तावीज बांधती थी. बच्चे लेकिन बहुत शैतान होते थे...वे भरी दुपहरिया पीपल के कोटर में अपना अपना तावीज रख आते थे और किले में उचक कर देखते थे. बच्चों को पूरा यकीन था कि शादी के बाद जिन लड़कियों की विदाई होती है वे कहीं नहीं जातीं, यही दुष्ट जादूगरनी उन्हें पकड़ के खा जाती है. 

मगर आप जानते हो कि दुष्ट जादूगरनी असल में किस्सा है...माएं अपने बेटों को उस राजकुमारी से बचाना चाहती थीं जिसका दिल एक राजकुमार ने तोड़ दिया था और उसके उदास आंसुओं की नदी से गाँव के सारे खेत सींचे जाते थे. गाँव के लड़के बहुत सीधे और भोले थे, उन्हें जादूगरनी से भी उतना ही खतरा था जितना कि राजकुमारी से. अगर उसने हँसना सीख लिया तो गाँव के सारे खेत सूख जायेंगे और सभी लोग भूखे मर जायेंगे.  जैसे किसी आशिक को अपने महबूब के वादों पर ऐतबार नहीं होता वैसे ही गाँव की माँओं को बारिश के आने पर भरोसा नहीं था. वे रातों को पीर की मजार पर राजकुमारी के आंसुओं की नदी बहती रखने की मन्नत बाँधने जातीं थी...आते और जाते हुए वे अपने बिछड़े हुए मायके के गीत गाया करतीं...ये गीत राजकुमारी तक हवा में उड़ कर पहुँच जाते...अगली भोर नदी में बाढ़ आ जाती और धान के खेत घुटने भर पानी में डूब जाते...अब धान के बिचड़ों को उखाड़ कर उनकी बुवाई शुरू हो जाती. 

छोटे बच्चों को मालूम नहीं होता कि माएं जो तावीज बांधती हैं उनमें उनकी सच्ची दुआएं शामिल होती हैं...जब वे तावीज को कोटर में रखते तो वे कुछ भी महसूस नहीं कर पाते...अगर वैसे में जादूगरनी उन्हें मार कर उनका दिल निकालती तो उन्हें दर्द नहीं होता...ये एक बहुत पुराने पीर का आशीर्वाद था. लेकिन वहां कोई जादूगरनी थी नहीं...जैसा कि समझदार लोग जानते हैं. बिना तावीज के उन्हें कुछ महसूस नहीं होता. वे देख नहीं पाते कि कहीं कोई जादूगरनी नहीं है...वे देख नहीं पाते कि राजकुमारी का दिल किस कदर टुकड़ों में है. उनमें से कोई राजकुमारी को अपने साथ खेलने के लिए भी नहीं बुलाता. वे बस दूर से देखते थे...उसके हवा में सूखते सतरंगी दुपट्टे को छू आने का साहस करते लेकिन पास नहीं जाते.

उस गाँव की लड़कियों की घर से बाहर निकलने की मनाही हो जाती...शादी के बाद और गौणा के पहले जो लड़कियां गाँव में रहतीं उन्हें दिखता था कि कहीं कोई जादूगरनी नहीं है. वे जब सावन में झूले की पींगें बढ़ातीं तो अक्सर रोते रोते उनकी हिचकियाँ बंध जातीं...वे फिर राजकुमारी के लिए दुआएं गातीं...गोरी..ओ री...कहाँ तेरा राजकुमार...गोरी रो री...चल नदिया के पार...बस कर दे बरसात ओ सावन कितना रोवे नैना...खोल दे रास्ता मन भागे हैं कहीं न पाए चैना...और भी कुछ ऐसा ही जिसका न ओर था न छोर था. कच्ची उमर की लड़कियां थीं, उसके दर्द में रोतीं थीं...जैसे जैसे उनके बाल पकते, कलेजा भी पत्थर होते जाता...फिर उन्हें न राजकुमारी की चिंता होती न उसके टूटे दिल की...वे अपने बेटों को दुष्ट जादूगरनी के किस्से सुनाने लगतीं, उनके गले में काला तावीज बाँधने लगतीं.

हर दुष्ट जादूगरनी की कहानी के पीछे ऐसी कोई कहानी होती है जो कोई नहीं सुनाता...भटकते भूतों का दर्द कौन सुनता है बैठ कर...जिसे मर कर भी चैन नहीं उससे ज्यादा उदास और कौन होगा...एक उदासी का फूल होता है...सदाबहार...जिस मन के बाग में वो खिलता है वहाँ सालों भर बरसातें होती हैं. किसी शहर में सालों भर बरसातें होती हों तो वहां खोजना...उदासी का फूल...उसका रंग सलेटी होता है, बहे हुए काजल जैसी रेखाएं होती हैं...उसे तोड़ते हुए ख्याल रखना...उसकी खुशबू उँगलियों में हमेशा के लिए रह जाती है. 

5 comments:

  1. हूँऊँऊँऊँऊँऊम! ओ पूजा दादी! आज समझ में आया कि अम्मा गले में काले धागे वाला ताबीज़ क्यों बाँधती थीं। मुझे तो सच्ची में अभी भी डर लगता है पीपल के पेड़ पर रहने वाली जादूगरनी से। आपसे कभी मिले तो मेरे लिये सिफ़ारिश कीजियेगा कि मेरा कलेजा खाने का इरादा मत करे....यूँ भी अब मैं खरगोश जैसा नहीं दिखता। मगर हाँ! राजकुमारी के आँसुओं में लोगों ने डुबकी लगाना नहीं छोड़ा अभीतक। खारे पानी से सीची हुये धान का भात खाने की आदत जो पड़ गयी है लोगों को।

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  2. deleted by mistake...

    पूजा दादी जी! आप वाकई बहुत चूजी हैं। टिप्पणी जैसे ही पोस्ट की कि एक सख़्त सी पंक्ति पढ़ने को मिली, लिखा है-"आपकी टिप्पणी स्वीकृति के बाद दिखने लगेगी" मतलब ये कि हुज़ूर के हुकुम के बिना पत्ते को भी हिलने की इज़ाज़त नहीं है। लेकिन मुझे पता है, आपका जवाब होगा - "अरे बेटा! ये बाल यूँ ही नहीं चांदी के हुये मेरे। देवघर से दिल्ली और अब बंग्लौर तक बहुत धूप देखी है मैने। ये तज़ुर्बा है तज़ुर्बा ....दरवाज़े बन्द न रखे जायें तो मच्छर तो आय्ंगे ही ये कम्बख़्त धूल भी आयेगी!"
    -कौशलेन्द्र

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  3. हृदय बिसारी एक कहानी,
    कुछ कुछ खारी, एक कहानी,
    राजा रानी, चन्दा, लोरी,
    रात बनाती एक कहानी।

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  4. :)क्या कहूँ बस मज़ा आता आपकी पोस्ट पढ़ने में और आज सबसे अच्छी लगी अंतिम पंक्तियाँ उदासी का सदबाहर फूल और हाथों से कभी न मिटने वाली उसकी खुशबू वाह क्या अंदाज़ ए बयां है आपका काश मैं भी ऐसा ही कुछ लिख पाती...

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  5. शानदार जीवन की बाते सहज सरल ढंग से कह दी गई मज़ा आ गया

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