30 November, 2012

धानी ओ धानी, तेरी चूनर का रंग कौन?

बचपन में पढ़ी हुयी बात थी 'तिरिया चरित्तर'...नारी के मन की बात ब्रम्हा भी नहीं जानते...वो बहुत छोटी थी...उसे लगता था कोई नारी नाम की औरत होती होगी...कोई तिरिया नाम की चिड़िया होती होगी...जैसे नीलकंठ होता है...एक पक्षी जिसे साल के किसी समय देखना शुभ माना जाता है. गाँव में  बहुत दूर दूर तक फैले खेत थे. साल में कई बार गाँव जाने पर भी गाँव के बच्चों के साथ किसी खेल में उसका मन नहीं लगता था. तिलसकरात के समय उसे नीलकंठ हमेशा दिखता. गाँव के शिवाले से जाते बिजली के तार पर बैठा हुआ. बचपन की ये बात उसे सबसे साफ़ और अपने पूरे रंगों में याद है.

हरे खेतों के बीच से खम्बों की एक सीधी कतार दिखती थी. पुरानी लकड़ी के बने हुए खम्भे...उनसे कैसी तो दोस्ती लगती थी. दिन अमरुद के पेड़ पर कटता था...कच्चे अमरुद कुतरते हुए भी उसे ध्यान रहता कि कुछ हिस्सा भी बर्बाद न हो...पेड़ के नीचे फिंके हुए अमरुद देख कर उसे बहुत रुलाई आती कि साल में गिनती के अमरुद लगते थे उस पेड़ पर. 

शाम को लालटेन की रौशनी में उसके साथ के सारे भाई बहन चिल्ला चिल्ला के पहाड़े पढ़ते...उसे बहुत हंसी आती. उसका पढ़ने में कुछ ख़ास दिल नहीं लगता. क्लास में पढ़ती थी और फिर एक्जाम के पहले पढ़ लेती...इतने में उसके नंबर सबसे अच्छे आते थे. उसे किताबों में सर घुसाने से अच्छा भंसा में बैठना लगता था. वहां लालटेन नहीं होती थी...ढिबरी होती थी, जिसमें घूंघट काढ़े चाची शाम का खाना बना रही होती. वो पीढ़ी पर बैठ कर आगे पीछे झूलती रहती...सोचती रहती कि चाची को लालटेन की जरूरत है और बच्चों को सो जाने की. कच्ची मिटटी के बने चूल्हे में कभी कभी चाची उसके लिए आलू डाल देती. उसे भुने आलू बहुत पसंद थे. बचपन से बड़ी हो गयी लेकिन उसे कभी समझ नहीं आया कि चाची से क्या बात करे. कैसे कहे कि ढिबरी की रौशनी में घूंघट काढ़े चाची का चेहरा कितना सुन्दर लगता है. 

कोलेज जाने के बाद गाँव आई तो पहली बार चाची के चेहरे की झुर्रियों पर ध्यान गया...चाची फिर भी उसे खाने का कुछ छूने नहीं देती थी...कि कभी कभार तो गाँव आती हो...हम लोग शबासिन से खाना नहीं बनवाते हैं. घर में सब लोग उसके साथ अलग बर्ताव करते...वो सबकी बहुत दुलारी थी...लेकिन कभी कभी इसके कारण उसे सबसे अलग भी महसूस होता था. इस बार गाँव आई तो चाची को दूसरी नज़र से देख रही थी...उनका दिन भर चुप चुप रहना...मुस्कुराते हुए सबके लिए खाना बनाना...कुएं से पानी भरना...अचरज लगता था. उसका चाची की कहानियां सुनने का मन करता था. कभी तो चाची बिना घूंघट के रहती होंगी...स्कूल जाती होंगी...बाकी लड़कियों के साथ हंसती बोलती होंगी. पहली बार उसका ध्यान गया कि उसको चाची का नाम भी नहीं पता है. उसका दिल किया कि पूछे...फिर लगा कि चाची को उनका नाम याद भी होगा?
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बरसते नवम्बर का मौसम है...कमरे में लगे कोयले के तंदूर पर लड़की ने कुछ साबुत आलू रखे हैं...टेबल पर विस्की का ग्लास रखा है...बर्फ लगभग पिघल गयी है. आरामकुर्सी पर बैठे हुए उसने पाँव बालकनी की रेलिंग पर टिका दिए हैं. घर में शोपें का नोक्टर्न ७ बज रहा है. बारिश की गंध, आलू के छिलकों का हल्का जला हुआ टेक्सचर संगीत में घुल गया है उसे थोड़ा नशा हो रखा है...उसे जिंदगी के सारे नवम्बर याद आ रहे हैं...सिलसिला बहुत साल पुराना है. 

याद के पहले नवम्बर वो सोलह साल की थी...उसकी दीदी को देखने लोग आये हुए थे...चाची के पकोड़ों के साथ चटनी बनाने के लिए पुदीने के पत्ते लाने को कहा था...वो ख़ुशी में दौड़ी जा रही थी कि अचानक किसी से टकरा गयी...बाल्टी और रस्सी के गिरने की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि शायद पूरे गाँव ने सुन ली थी...और फिर काँधे पर भिगोये निचोड़े गए कपड़े भी तो गिर गए थे. नवम्बर की धूप बहुत नर्म थी...वो कुएं पर बाल्टी बाल्टी पानी भर कर देता जा रहा था और वो कपड़े झपला रही थी...नाम क्या था लड़के का...याद नहीं...हाँ उस धूप में उसका कुएं की मुंडेर पर खड़े होकर पानी खींचने का सीक्वेंस बंद आँखों से देख सकती थी...उसका रंग सांवला था पर कैसे सोने जैसा दमकता था...एक पल तो वो अपलक ताकती ही रह गयी थी...इतना सुन्दर भी कोई होता है!

याद के दूसरे नवम्बर वो एक चौड़ी सड़क पार करने के लिए खड़ी थी...इतनी गाड़ियाँ थीं और वो ख्याल में ऐसी खोयी कि जाने कितनी देर हो गयी थी...तभी अचानक से किसी ने उसकी कलाई पकड़ी थी और एक झटके में अपने साथ दौड़ाते हुए सड़क के दूसरी ओर ले आया था. 'वहां खड़े खड़े तुम्हारी उम्र एक साल तो बढ़ ही गयी होगी, कौन से गाँव से आई हो?' और वो एक अनजान लड़के को अपने गाँव का नाम अपने नाम के पहले बता चुकी थी. वो साथ चलते तो रास्ते बिछते जाते, दोनों बहुत तेज़ चला करते थे. उन्हें समय को पीछे छोड़ देने की जल्दी थी. रिश्तों के सारे हाइवे उन्होंने गिन लिए. फिर एक दिन अचानक ही उनकी दिशायें एक दूसरे से उलट हो गयीं. कोई सड़क क्या दिल पर ख़त्म होती है?

याद के तीसरे नवम्बर उसका जन्मदिन था. वो अपने लिए एक प्लैटिनम अंगूठी खरीद रही थी. हमेशा से अकेले शोपिंग करने की आदत के कारण उसका बड़बड़ाना जारी था...'तो मैडम, आज आपका बर्थडे है?' उसकी आँखों का रंग ऐसा क्यूँ है...ये सोचते हुए लड़की ने जब हाँ कहा था तो उसे कहाँ मालूम था कि नवम्बर फिर उसे अपने आगोश में लेने को बेसब्र है...उसने बिल देने ही नहीं दिया...वो एक ज्वेलरी डिजाइनर था और ये शॉप उसने बेहद शौक से ख़ास कद्रदानों के लिए खोली थी. अंगूठी तो मैं तुम्हें दूंगा, लेकिन ये वाली नहीं...और फिर उसकी अपनी जिद से वो लड़की की जिंदगी बनता गया था. लड़की भूल गयी कि साल में कितने नवम्बर आते हैं...लेकिन जिंदगी नहीं भूली कि लड़की की जिंदगी में कितने नवम्बर गिन के रखे हैं. वे बेहद समझदार लोग थे...बहुत प्यार से अलग हुए...लड़की आज भी उस अंगूठी को गले की चेन में पहनती है. 

फिर लड़की ने साल से नवम्बर का पन्ना फाड़ के फ़ेंक दिया...हर साल एक नवम्बर का पन्ना उसकी बालकनी से नीचे घूमता हुआ निकल जाता...हर पन्ना एक चीड़ का पेड़ बन जाता और उसके घर साल भर बरसातें होतीं. कुदरत ने सारे पन्नों का हिसाब लगा रखा था. उसकी जिंदगी में एक ऐसा साल आया जिसका हर महीना नवम्बर था...बारह सालों के बारह नवम्बर बरस रहे थे. इश्क के कितने रंग...कितनी खुशबुयें और कितना दर्द. लेकिन लड़की जानती थी कि उसका और नवम्बर का रिश्ता पुराना है...इसलिए दस नवम्बर बीतने के बाद जब ग्यारवाँ आया तो उसे लगा कि शायद वो इस नवम्बर को जज़्ब कर ले तो अगले महीने दिसंबर आ जाएगा. आज नवम्बर की तीस तारीख है. 

उसने डायरी लिखी...३० नवम्बर, २०१२...साल का लेखा जोखा...मौसमों के किस्से...बचपन की कहानियां...भाई की चिट्ठियां...पापा के भेजे चेक जो उसने कभी कैश नहीं कराये...पी गयी विस्कियों की किस्में...बांयें कंधे पर उकेरे गए टैटू वाली कविता...नीली चीनीमिट्टी के देश से आया कोई पोस्टकार्ड...सूखे फूल...चोकलेट के रैपर. 

इस सबके आखिर में उसने लिखना चाहा अपना नाम...
लेकिन उसका नाम क्या था?
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8 comments:

  1. विश्व एड्स दिवस पर रखें याद जानकारी ही बचाव - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. कोई सड़क क्या दिल पर ख़त्म होती है?
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    लेकिन जिंदगी नहीं भूली कि लड़की की जिंदगी में कितने नवम्बर गिन के रखे हैं.
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    इस सबके आखिर में उसने लिखना चाहा अपना नाम...
    लेकिन उसका नाम क्या था?
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    उसका नाम ज़िन्दगी का पर्यायवाची होगा.

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  3. maine pura padha nahin aapka, meri behen thi jinke saath gudde gudiyon wala khel khela tha bade chote mein. unki shaadi ho gayi, main roya nahin, bas samajh nahin aaya kaisa boliun ki didi lagta hai hum sab bade ho gaye.
    aasunon ka bojh itna mushikil hota hai kya?

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  4. aapki post padh ke thoda ro leta hun to lagta hai insaan baaki hai mere andar

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  5. एक दिन में गहराता जीवन का सारांश..बहुत अच्छा लगता है यादों में उतराना..

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  6. kuchh yaadein aise hee itarti rahe to accha

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  7. बहुत ही सुखद अनुभव हुआ यह पोस्ट पढ़ते हुए। मुझे भी वे पुराने दिन याद आ गए जब सब कुछ देखने का नजरिया उत्सुकता से भरा होता था।

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