10 October, 2012

चाबी वाली लड़की

खुदा ने इन्द्रधनुष में डुबायी अपनी उँगलियाँ और उसके गालों पर एक छोटा सा गड्ढा बना दिया... और वो मुस्कुराने के पहले रोने के लिए अभिशप्त हो गयी. 
किसी गाँव में चूल्हे से उठती होगी लकड़ियों की गंध. कहीं कोई लड़की पहली बार बैठी होगी बैलगाड़ी पर. किसी दादी ने बच्चे की करधनी में लगाए होंगे चांदी के चार घुँघरू...किसी लड़की ने पहली बार कलाई में पहनी होंगी हरे कांच की चूड़ियाँ. कवि ने पेन्सिल को दबाया होगा दांतों में. टीचर ने चाक फ़ेंक कर मारा होगा क्लास की सबसे बातूनी लड़की को. 

कहीं कोई विवाहिता कड़ाही में छोड़ती है बैगन के बचके. कहीं एक बहन बचाती है अपने भाई को माँ की डांट से. कोई उड़ाता है धूप में सूखते गेहूं के ऊपर से गौरैय्या. कहीं माँ रोटी में गुड़ लपेट कर देती है तुतरू खाने को. कुएं में तैरना सीखता है एक चाँद. पीपल के पेड़ पर घर बनाता है एक कोमल दिल वाला भूत. शिवाले में प्रसाद में मिलते हैं पांच बताशे. हनुमान जी की ध्वजा बताती है बारिश का पता. चन्दन घिसने का पत्थर कुटाई वाली की छैनी से कुटाता है. रात को कोई बजाता है मंदिर की सबसे ऊंची वाली घंटी. 

दुनिया का बहुत सा कारोबार बेखटके चलता रहता है. एक लड़की बैठी होती है गंगा किनारे...नदी उफान पर है और इंच इंच करके खतरे के निशान को छूने की जिद में लड़की से कहीं और चले जाने की मिन्नत करती है. 

विजयादशमी के लिए रावण का पुतला तैयार करने वाले कारगर की बेटी बैठी है पटाखों के पिरामिड पर. माचिस के डब्बों से बनाती है मीनारें. 

कहीं एक परफेक्ट दुनिया मौजूद है...शायद आईने के उस पार.

पोसम्पा भाई पोसम्पा...लाल किले में कितने सिपाही? कतार लगा कर सारे बच्चे जल्दी जल्दी भागते हैं. आखिर गीत ख़त्म होने तक एक बच्चा दो जोड़ी हाथों में कैद हो जाता है और किले का एक पहरेदार बदल दिया जाता है. 

कोई बताता नहीं कि खट्टी इमली क्यों नहीं खानी चाहिए या फिर जो चटख गुलाबी रंग का लस्सा लपेटे आदमी आता है उसकी मिठाई खराब क्यूँ है. सवालों के चैप्टर के अंत में जवाब लिखने के लिए जगह नहीं है. एक लड़की टीचर से पूछती है कि दुनिया में सारे लोग क्या सिर्फ नीली और लाल इंक से लिखते हैं. लड़की को हरा रंग पसंद है. टिकोले की कच्ची फांक सा हरा।
धान की रोपनी में लगे किसान और जौन मजदूर एक लय में काम करते हैं. घर आया मजदूर मुझसे मुट्ठी भर गमकौउआ चूड़ा मांगता है. मैं फ्राक के खजाने से उसे एक मुट्ठी चूड़ा देती हूँ. उसकी फैली हथेली में मेरी छोटी सी मुट्ठी से गिरा चूड़ा बुहत कम लगता है लेकिन वो सौंफ की तरह उसे फांक कर एक लोटा पानी गटक जाता है. 
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एक दुनिया है जिसमें लड़की खो जाती है जंगल में तो उस जंगल में खिल आते हैं असंख्य अमलतास...जंगल से बाहर आती है तो शुरू होते हैं सूरजमुखी के खेत...सूरजमुखी के खेतों से जाती है एक अनंत सड़क जिसके दोनों ओर हैं सफ़ेद यूकेलिप्टस...उस रास्ते में आता है सतरंगी तितलियों का घोसला...वहां के झींगुरों ने बनाए हैं नए गीत...वहां बारिश से आती है दालचीनी की हलकी खुशबू...दुआओं के ख़त पर लगती है रिसीव्ड की मुहर...एक तीखे मोड़ पर है एक कलमकार की दूकान जो बेचता है गुलाबी रंग की स्याही...उसी दुनिया में होती है छह महीने की रात...मगर वहीं दीखता है औरोरा बोरेआलिस...उसी दुनिया में रुक गयी है मेरे हाथ की घड़ी. उस दुनिया में कोई नहीं लिखता है कहानियां कि कहानियों से चले आते हैं खतरनाक किस्म के लोग और पैन्डोरा के बक्से की तरह वापस जाने को तैयार नहीं होते.

दुनिया में ताली के लिए ताला होता है...लड़की की उँगलियों में उग आते हैं खांचे और उसकी आँखों में उग आता है ताला..लड़की अपनी हथेलियाँ रखती है आँखों पर और अपनी पलकों को लौक कर देती है. 

8 comments:

  1. नए चूड़े का स्वाद एक दम निराला होता हैं, नए चूड़े को पानी में भीगाने के बाद दूध और गुड़ के साथ उसका combination एक दम लाजवाब होता हैं. वैसे पोस्ट में मन के विचार हैं, जो बहे जा रहे हैं.

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  2. स्मृतियों के बीच सज रहे, कल्पित मन के ताने बाने,
    जाने क्या क्या दिख जाये, जब पंख उड़े मनमाने।

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  3. सत्यमेव जयते के एक एपीसोड में गाना था "घर याद आता है मुझे"...वही याद आ गया...पता नहीं कहाँ कहाँ खो गया...

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  4. आपके विचारों का प्रवाह उस उफनती नदी के समान जो पहाडो से उतरती हुई आनन फानन में सब कुछ बहा ले जाती हैं और मैदानों में पहुँचते ही धीर गंभीर और गरिमामय हो जाती हैं ...

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  5. ये गद्य है या बेहतरीन पद्य, कुछ समझ नहीं आया!

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  6. यहाँ आकर हर बार एक नए लोक में खुद महसूस करता हूँ!

    कुँवर जी,

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  7. गाँव की ख़ुश्बू में .....स्वाद में ......स्मृतियों में ....लहराते एक पूरे युग को खींच लाती हो। ....कि ज़िन्दगी वहीं दो पल ठहर कर सुस्ताने की ज़िद करने लगती है। मग़र ये बदमाश वक़्त कितना निर्दयी है जो खींचते-घसीटते लिये जा रहा है अपने साथ ....आगे ...आगे ...और आगे ....कि ठहरना मना है यहाँ। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़! मुज़फ़्फ़रपुर का दही-चूड़ा, मनेर के लड्डू, बक्सर की पापड़ी और देवघर का तिलकुट ....सिर्फ़ गन्ध और स्वाद नहीं, कितना कुछ और भी जुड़ा है इनके साथ ...सच्ची .....ज़िन्दगी का सबसे सुनहरा पन्ना ...यहीं खुला था ....यहीं बन्द हो गया। ...और ये पूजा है कि उन यादों को कुरेदने से बाज़ नहीं आती। सच ...मैं उदास हो गया हूँ।

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  8. लहरें, तरंगें, उफान पर तिरती कश्‍ती के हिचकोले.

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