19 July, 2012

हरकारे ओ हरकारे!

I miss you.
---
जैसे किसी ने कभी मेरा नाम नहीं पुकारा हो...जैसे मेरा कोई नाम हो ही नहीं...मैं सिर्फ एक संख्या हूँ...बाइनरी डिजिट्स से बनी ऐस्काई कोडिंग में रची कोई कविता...तुमने कौन सी कुंजी से जान लिया मेरे नाम का उच्चारण...तुम वो पहले व्यक्ति थे जिसने मेरा नाम पुकारा था.

हम एक मौन प्रजाति के जीव थे...कोई भी बोलना नहीं जानता था...आँखें उठाना नहीं जानता था...हम एक दूसरे को देखते तो थे पर किसी के चेहरे पहचान नहीं सकते थे...ऐसे में तुम जाने कैसे मेरी आँखों को बाँध सके थे...वो पूरा एक मिनट था जब तुमने मेरी ओर देखा था...उतनी देर में गार्डों ने २० लोगों की रोल-कॉल कम्प्लीट कर ली थी.

हमें खास जेनेटिक प्रयोगशालाओं में बनाया गया था...हमारा जीवन चक्र नियमित होता था और इस चक्र को अनियमित करने वाले जितने भी कारक थे उनका समय समय पर उन्मूलन किया जाता रहता था. नियत समय पर जीने और मरने वाले हम लोग खेत में लगे अरबी या खरीफ की फसल जैसे ही तो थे.
---
ये बहुत बुरी बात है कि इतने पर भी प्रेम जैसी कोई चीज़ मेरे अंदर बची रह गयी है. कि जैसे किसी जर्मन कवि ने कहा था कि अब इस भाषा में कभी भी कविताएं नहीं रची जा सकेंगी. उन्होंने फिर आजीवन कुछ नहीं लिखा.  मेरी हालत ऐसी है जैसे कि अंदर कहीं आग लगी हुयी है और मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही हूँ. मैं जानती हूँ कि मेरे लिए लिखना जरूरी है...मगर इस वक्त...इस वक्त...मैं दिल्ली में होना चाहती हूँ.
---
I miss you.
---
हालाँकि मैं जानती हूँ कि मैं जिस तुम के पीछे भागती हूँ वो दरअसल मेरी खुद को ढूँढने की कोशिश है. लोग आइनों की तरह होते हैं...उनमें आपका खुद का अक्स दिखता है. तलाश एक ऐसे आईने कि है जिसमें अक्स धुंधला न दिखे. बस.
---
आह...जरा सी जो कच्ची फाँक मिल जाती तुम्हारी आवाज़ की तो क्या बात होती!                                                                      

8 comments:

  1. लोग आइनों की तरह होते हैं...उनमें आपका खुद का अक्स दिखता है. तलाश एक ऐसे आईने कि है जिसमें अक्स धुंधला न दिखे. बस.

    सार्थक ...बिल्कुल सच ....
    स्वयम से दूर होकर ही मन उदास होता है ...!!

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. निकल आये मेरे अश्क हंसने से पहले,
    टूट जाते हैं ख्वाब बनने से पहले ?

    क्या प्यार करना ही गुनाह होता है ?
    काश दिल को थाम लेते प्यार होने से पहले ..

    याद रखियेगा
    धुल चहरे पे थी और आइना पोंछते रहे ...

    ReplyDelete
  4. नहीं नहीं पूजा, जेनेटिक प्रयोगशाला में नहीं , वहाँ नहीं | वहाँ तो जो भी बनता है, कम से कम उसपे बनाने वाले को नाज़ होता है | हम कहीं और ही बने हैं, शायद इससे भी कोई गयी-गुज़री जगह होगी, हमारा बनाने वाला तो हमें कब का भूल चुका है |

    ReplyDelete
  5. अपने खास होने का एहसास दुनियादारी में घुल जाता है, आपको अभी भी रह रह याद आता है, बड़ा ही खूबसूरत एहसास है, भगवान करे यह बना रहे।

    ReplyDelete
  6. निश्चित ही आप किसी ख़ास जेनेटिक प्रयोगशाला में बनाये गए हैं.

    ReplyDelete
  7. सच तो यह है पूजा! कि हम सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुद से ही प्यार करते हैं। यह जो आइने की तलाश हमें बेसब्र करती है वह सिर्फ़ ख़ुद का अक्श देखने के लिये ही तो। और हाँ ! अब शायद होम सिकनेस होने लगी है तुम्हें.....पोलैण्ड से कितनी भी मोहब्बत क्यों न हो गयी हो अपने मुल्क के अपनेपन की ...यहाँ तक कि अपनों से दुश्मनी की भी बात ही निराली है। तुम्हारा तुम्हारे घर में स्वागत है पूजा! तुम पूरे हिन्दुस्तान की बेटी हो...और हमें अपनी बेटियों पर नाज़ है।

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...