16 April, 2012

पागल होने का कोई सही मौसम नहीं होता


कुछ भी सच नहीं है 
जब तक कि तुमने नहीं देखी हैं मेरी आँखें 

तुम प्यार से भरे हो
इसलिए मृत्युगीत में सुनते हो उम्मीद 

मुझे नफरत हो गयी है
सिर्फ त्योहारों पर घर आने वाली खुशियों से 

घर की देहरी पर पहरा देता है नज़र्बट्टू 
इसलिए उदासियाँ नहीं जा पाती हैं मेरे दिल से दूर 

बाँध की दीवारों पर लगे हुए हैं टाइम बम
तुमसे बात करती हूँ तो यादों के सब गाँव डूब जाते हैं 

वसंत के विथड्रावल  सिम्पटम्स जीने नहीं देते हैं 
गुलमोहर और अमलतास को कागज़ में रोल कर सुलगा दो 

पागल होने का कोई सही मौसम नहीं होता 
इस जून मॉनसून ब्रेक  होने के पहले चली आऊं तुम्हारे शहर?

इस बार मैं रीत गयी हूँ पूरी की पूरी
इश्क फिर भी सामने बैठा है जिद्दी बच्चे की तरह हथेली खोले हुए 

खुदा के रजिस्टर में नाम रैंडम अलोट हुए थे 
किसी की गलती नहीं थी कि हमें प्यार हुआ एक दूसरे से ही 

मुझसे मत कहो कि मैं कितनी अच्छी हूँ
मुझे बाँहों में भर कर चूमते रहो मेरे मर जाने तक

18 comments:

  1. उदासियों को स्मृति के पहरे से मुक्तकर लहरों से अपना सच्चा संबंध जोड़ लीजिये पूजाजी।

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  2. Puja Puja Puja ..... कोई बुरा न माने तो कह दूँ तुम लाज़वाब हो यार ..
    बहुत serious type नहीं हूँ मैं ..क्या करूँ ... इसलिए कहे ही देती हूँ ....
    क्या बच्चे की जान लेकर मानोगी यार :PPPPPPPP

    मत लिखा करो... इत्ता सुंदर मत लिखा करो .. खाना पीना सब हराम हो जाता है
    muahhhhhh LOVE ur writingsss Puja ...... gr8888

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  3. इस बार मैं रीत गयी हूँ पूरी की पूरी ...


    कुछ नया नया सा लगा :)

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  4. कितनी बार तो लिख चुका हूँ ये बात, एक बार और सही की मैं "स्पीचलेस" हूँ!!!!

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    1. लिख तो ऐसे रहे हो जैसे टोनी स्टार्क दुनिया के सामने कुबूल रहा हो...मैं आयरन मैन हूँ ;) ;) :-P :-P

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  5. इस बार मैं रीत गयी हूँ पूरी की पूरी
    इश्क फिर भी सामने बैठा है जिद्दी बच्चे की तरह हथेली खोले ह...............sunder ...sunder bas sunder

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  6. मुझे नफरत हो गयी है
    सिर्फ त्योहारों पर घर आने वाली खुशियों से
    ओह ग्रेट ! बहुत सुंदर .. प्रतीकों के तो क्या कहने

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  7. लगता है प्रवीण जी का समर्थन करना होगा. केरल में अभी बारिश शुरू होने वाली है.

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  8. कुछ कर गुजरने को मौसम नहीं मन चाहिए. (शायद रमानाथ मिश्र जी की पंक्ति है)

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  9. बहुत ही प्यारी प्रस्तुति दिल को छू गयी।

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  10. :)...kuch kahne ka mn nahi hai.....

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  11. लहरों को ठहरते देखा है कभी?
    नहीं न!
    सचमुच, ठहरना लहरों का
    कम नहीं है किसी मौत से
    वे तो तभी अच्छी लगती हैं
    जब उछलती हैं
    अपनी सम्पूर्ण जिजीविषा के साथ
    बहा ले जाती हैं अपने साथ
    किनारे के अवसादों को
    और विसर्जित कर देती हैं उन्हें
    समुद्र की अतल गहराई में।
    यादें यदि इतनी ही अच्छी होतीं
    तो क्यों बुलाते भगवान
    अपने पास
    बिसराने यादों के ज़ख़ीरे!
    तुम्हें नदी नहीं
    समुद्र बनना होगा।

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  12. कौन समझाए "बिंदास" को
    ठहाके में उड़ा दे उपहास को :-)
    खुश रहो !
    शुभकामनाएँ!

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  13. मुझसे मत कहो कि मैं कितनी अच्छी हूँ
    मुझे बाँहों में भर कर चूमते रहो मेरे मर जाने तक...
    लाजवाब मानना पड़ेगा आपकी लेखनी को

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