11 April, 2012

मन बंजारा फिर पगलाए, भागे रह रह तोरे देस...


ऊपर वाले ने हमें बनाया ही ऐसा है...कमबख्त...डिफेक्टिव पीस. सारा ध्यान बाहरी साज सज्जा पर लगा दिया, दिन रात बैठ कर चेहरे की कटिंग सुधारता रहा...आँखों की चमक का पैरामीटर सेट करता रहा और इस चक्कर में जो सबसे जरूरी कॉम्पोनेन्ट था उसपर ही ध्यान नहीं दिया...मन को ऐसे ही आधा अधूरा छोड़ दिया. अब ये मन का मिसिंग हिस्सा मैं कहाँ जा के ढूंढूं. कहीं भी कुछ नहीं मिलता जिससे मन का ये खालीपन थोड़ा भर आये. अब ये है भी तो डिवाइन डिफेक्ट तो धरती की कोई चीज़ कहाँ से मेरे अधूरे मन को पूरा कर पाएगी...मेरे लिए तो आसमान से ही कोई उतर कर आएगा कि ये लो बच्चा...ऊपर वाले की रिटन अपोलोजी और तुम्हारे मन का छूटा हुआ हिस्सा. 

तब तक कमबख्त मारी पूजा उपाध्याय करे तो क्या करे...कहाँ भटके...शहर शहर की ख़ाक छान मारे मन का अधूरा हिस्सा तलाशने के लिए...कि भटकने में थोड़ा चैन मिलता है कि झूठी ही सही उम्मीद बंधती है कि बेटा कहीं तो कुछ तो मिलेगा...चलो पूरा पूरा न सही एक टुकड़ा ही सही...ताउम्र भटक कर शायद मन को लगभग पूरा कर पाऊं...कि हाँ कुछ क्रैक्स तो फिर भी रहेंगे धरती की फॉल्ट लाइंस की तरह कि जब न तब भूचाल आएगा और मन के समझाए सारे समीकरण बिगाड़ कर चला जाएगा. 

करे कोई भरे कोई...अरे इत्ती मेहनत से बनाया था थोड़ा सा टेस्टिंग करके देखनी थी न बाबा नीचे भेजने के पहले...ऐसे कैसे बिना पूरी टेस्टिंग के मार्केट में प्रोडक्ट उतार देते हो, उपरवाले तेरा डिपार्टमेंट का क्वालिटी कंट्रोल  कसम से एकदम होपलेस है. मैं कहती हूँ कुणाल से एक अच्छा सा सॉफ्टवेर इंटीग्रेशन कर दे आपके लिए कि सब डिपार्टमेंट में सिनर्जी रहे. वैसे ये सब कर लेने पर भी मेरा कुछ हुआ नहीं होता कि ख़ास सूत्रों से खबर यही मिली है मैं पूरी की पूरी आपकी मिस्टेक हूँ...आपने स्पेशल कोटा में मुझे माँगा था...स्पेशली बिगाड़ने के लिए, बाकियों को जलन होती है कि मैं फैक्टरी मेड नहीं हैण्ड मेड हूँ...वो भी खुदा के हाथों...अब मैं सबको क्या समझाऊं कि खुदा कमबख्त होपलेस है इंसान बनाने में...उसे मन बनाना नहीं आता...या बनाना आता है तो पूरा करना नहीं आता...या पूरा करना भी आता है तो मेरी तरह कहानियों के ड्राफ्ट जैसा बना देता है कमबख्त मारा...अरे लड़की बना रहा था कोई कविता थोड़े लिख रहा था कि ओपन एंडेड छोड़ दिया कि बेटा अब बाकी हिस्सा खुद से समझो.

हालाँकि कोई बड़ी बात नहीं है कि इसमें खुदा की गलती ना हो...उनको डेडलाइन के पहले प्रोडक्ट डिलीवर करने बोल दिया गया हो...तो उन्होंने कच्चा पक्का जो मिला टार्गेट पूरा करने के लिए भेज दिया हो...हो ये भी सकता है कि उन्होंने भी रीजनिंग करने की कोशिश की हो कि इतने टाइम में प्रोडक्ट रेडी न हो पायेगा...पर डेडलाइन के लिए रिस्पोंसिबल कोई महा पेनफुल छोटा खुदा होगा जो जान खा गया होगा कि अब भेज ही दो...आउटर बॉडी पर काम कम्प्लीट हो गया है न...क्या फर्क पड़ता है. खुदा ने समझाने की कोशिश की होगी...कि छोटे इसका मन अभी आधा बना है...जितना बना है बहुत सुन्दर है पर अभी कुछ टुकड़े मिसिंग हैं...बस यहीं छोटा खुदा एकदम खुश हो गया होगा...मन ही अधूरा है न, क्या फर्क पड़ता है...दे दो ऐसे ही...ऐसे में क्या लड़की मर जायेगी...खुदा ने कहा होगा...नहीं, पर तकलीफ में रहेगी...बेचैन रहेगी...भटकती रहेगी. छोटे खुदा ने कहा होगा जाने दो...ऐसे तो धरती पर आधे लोग तकलीफ में रहते ही हैं...एक ये भी रह लेगी...खुदा ने फिर समझाने की कोशिश की...बाकी लोगों की तकलीफ का उपाय है...इसकी तकलीफ का कोई उपाय नहीं होगा...छोटा खुदा फिर भी छोटा खुदा था...माना नहीं...बस हम जनाब आ रहे रोते चिल्लाते धरती पर...लोग समझ नहीं पाए पर हम उस समय से खुदा के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे थे. 

मम्मी बताती थी कि मेरी डिलीवरी वक़्त से पंद्रह दिन पहले हो गयी थी...वो बस रेगुलर चेक-अप के लिए गयी थी कि डॉक्टर ने कहा इसको जल्दी एडमिट कीजिये...वक़्त आ गया है...बताओ...हमें कभी कहीं चैन नहीं पड़ा...पंद्रह दिन कम थोड़े होते हैं...खुदा भी बिचारा क्या करता, कौन जाने हम ही जान दे रहे हों धरती पर आने के लिए. 

यूँ अगर आप दुनिया को देखें तो सब कुछ एकदम एटोमिक क्लोकवर्क प्रिसिजन से चलता है...मेरे आने के पहले पूरी दुनिया में मेरी जगह कहाँ होगी...खाका तैयार ही होगा...पंद्रह दिन लेट से आते तो कितने लोगों से मिलना न होता...लाइफ...लाईक लव...इस आल अ मैटर ऑफ़ टाइमिंग टू. तो जो लोग मेरी जिंदगी में हैं...अच्छे बुरे जैसे भी हैं...परफेक्ट हैं. हाँ मेरे आने से उनकी जिंदगी में एक बिना मतलब की उथल पुथल जरूर हो जाती है. मेरे जो भी क्लोज फ्रेंड हैं कभी न कभी मैं उन्हें बेहद परेशान जरूर कर देती हूँ इसलिए बहुत सोच समझ कर किसी नए इंसान से बातें करती हूँ...मगर जेमिनी साइन के लोगों का जो स्वाभाव होता है...विरोधाभास से भरा हुआ...किसी से दोस्ती अक्सर इंस्टिक्ट पर करती हूँ...कोई अच्छा लगता है तो बस ऐसे ही अच्छा लगता है. बिना कारण...फिर सोचती हूँ...बुरी बात है न...खुद को थोड़ा रोकना था...मान लो वो जान जाए कि वो मेरी इस बेतरतीब सी जिंदगी में कितना इम्पोर्टेंट है...मुझे कितना प्यारा है तो उसे तकलीफ होगी न...आज न कल होगी ही...तो फिर हाथ  रोकती क्यूँ नहीं लड़की? 

पता है क्यूँ? क्यूंकि मन का वो थोड़ा सा छूटा हुआ हिस्सा जो है न...वो शहरों में नहीं है...लोगों में है...जिसे जिसे मिली हूँ न...अधूरा सा मन थोड़ा थोड़ा पूरा होने लगा है...और उनका पूरा पूरा मन थोड़ा थोड़ा अधूरा होने लगा है...है न बहुत खतरनाक बात? चलो आज सीक्रेट बता ही दिया...अब बताओ...मिलोगे मुझसे?

9 comments:

  1. मन बंजारा फिर पगलाए, भागे रह रह तोरे देस...
    मांगे अपने दिल का हिस्सा,न मिले फिर लागे ठेस||

    शुभकामनाये! पूजा !

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  2. हा हा हा हा, पता नहीं पर पढ़कर बस यही भाव आये। खुश रहो, तुम्हारा मन आधा तो बना दिया, हमें कहा कि अपना मन अपने आप बनाओ, गलती करो और भुगतो, बस ऊपर की ओर न देखना। हम हैं कि कहना मान बैठे हैं।

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  3. :)ye jo kuch logo ke mn kahi rah gae wo tumhari tarah yu hi bhatakte rahte hain....padhkar bas muskura rahi hu...

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  4. ...अब बताओ...मिलोगे मुझसे?

    A big "YES" in reply:)
    पक्का मिलेंगे...
    अभी आयें क्या?

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  5. सही है वाकई ऊपर वाले का सिस्टम एकदम हॉप लेस है ....बहुत बढ़िया पोस्ट ....

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  6. Pratibha....ha man ka khalipan kuch bharta hi nahi sach me...mera man bhi shayad adhura hi raha tumhari tarah...badhai

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  7. सभी के लिए अपनी-२ मुश्किलें बड़ी ही होती है. और जो इंसान उन मुश्किलों को हरा देता है. उसे ही लोग याद रखते है. हारे हुए को कोई याद नही रखता है.

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  8. so go ahead. and defeat the all diffculties.

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  9. "...बाकी लोगों की तकलीफ का उपाय है...इसकी तकलीफ का कोई उपाय नहीं होगा..."
    *** *** ***
    कैसे कोई कलम किसी के हाथों में यूँ किसी और के मन की बात लिख सकती है... तुम्हें पढना कई बार अचंभित करता है... मिलना तो है ही तुमसे... देखें कब मिलवाती है जिंदगी...

    लिखती रहो ऐसे ही... सुन्दर... स्पष्ट... बेतरतीब... कि बेतरतीबी में ही जीवन का सौन्दर्य है..

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