12 March, 2012

The Artist - Echoes of nostalgia

इस फिल्म के बारे में शब्दों में कुछ भी कहना नामुमकिन है...ये बस ये यहाँ सहेज रही हूँ कि इस फिल्म से प्यार हो गया है.

'द आर्टिस्ट' के बारे में बहुत कौतुहल था...ये एक मूक-फिल्म है...श्वेत-श्याम...फिल्म की ख़ामोशी आपको अपने अंदर उतरने का मौका और वक्त देती है. जैसे जैसे परदे पर फिल्म चलती है वैसे वैसे आप भी अपनी एक जिंदगी जीते रहते हैं. फिल्म में डायलोग नहीं हैं तो अधिकतर आप या तो लिप रीड करेंगे या अंदाज़ लगाएंगे कि क्या कहा जा रहा है...इस तरह फिल्म उतनी ही आपकी भी हो जाती है जितनी डायरेक्टर की. फिल्म ऐसी है जैसा प्रेम/इश्क मैं करना चाहती हूँ...जिसमें शब्दों की कोई जगह न हो...बहुत सा संगीत हो...उजले और काले रंग हों और बहुत से खूबसूरत ग्रे शेड्स...मुस्कुराहटें...अदाएं और बहुत सारी खुशियाँ.

फिल्म मुझे बचपन के उस मूक प्रेम की याद दिलाती है जिसमें आपने कभी खुद को व्यक्त नहीं किया क्यूंकि समझ भी नहीं आ रहा था कि प्रेम जैसा कुछ पनप रहा है. डायलोग के हजारों सबसेट होते हैं पर आपका मन वही डायलोग सोचता है जो आपकी जिंदगी का intrinsic हिस्सा है. फिल्म इस तरह आपके साइकी(Psyche) में शामिल हो जाती है...ये सिर्फ परदे पर नहीं चलती...पैरलली एक फिल्म आपके मन के परदे पर भी चलने लगती है जिसमें कुछ मासूम स्मृतियाँ बिना मांगे अपनी जगह बनाती चली जाती हैं. 

मैं फिल्म देखने अकेले गयी थी नोर्मल सा वीकडे था...पीछे की कतारें भरी हुयी थी मगर आगे की लगभग छह कतारें खाली ही थी...मैं वहां बीच में बैठी...फिल्म जैसे हर तरफ से आइसोलेट कर रही थी...और मैं सारे वक़्त मुस्कुरा रही थी. मन में उजाला भर जाने जैसा...मूक फिल्म होने के कारण हर लम्हा लगा कि मैं भी फिल्म का हिस्सा हूँ...यहाँ सीट पर नहीं बैठी हूँ...वहां हूँ परदे पर...फिल्म के किरदारों के बेहद पास...उनकी हंसी को सुनती हुयी...वो हंसी जो परदे के इस पार नहीं आई पर परदे के उस तरफ है. फिल्म आपके सोचने के लिए परदे के जितना बड़ा ही कैनवास देती है. इस कैनवास में बहुत से लोगों के लिए जगह होती है. अगर कम्पेयर करें तो फिल्म एक परदे पर चलने वाला भाषण नहीं बल्कि एक दोस्त के साथ किसी खूबसूरत पार्क में टहलना है...जहाँ आप कुछ बातें कहते हैं, कुछ सुनते हैं...और मन में संगीत बजता है.


फिल्म आपके मन के अन्दर उतर जाती है...दबे पांव...सीढ़ियों पर...किरदार...एक्टिंग सब. जोर्ज वैलेंटिन से प्यार न हो असंभव है...जब पहली बार Gone विथ द विंड देखी थी तो रेट बटलर से प्यार हो गया था...जार्ज वैलेंटिन वैसा ही किरदार है...जिसे आप पहली नज़र में पसंद करने लगते हैं. फिल्म का सीन जहाँ पहली बार पेगी उससे टकराती है में उसका किरदार इतना खूबसूरती से उभर कर आया है कि आप मुस्कराहट रोक नहीं सकते. फिल्म का वो हिस्सा जहाँ पेगी  एक साइड आर्टिस्ट है और उसका छोटा सा रोल है जिसमें उसे वैलेंटिन के साथ छोटा सा डांस करना है...सीन में उनकी केमिस्ट्री इतने बेहतरीन तरीके से उभर कर आती है...सीन के हर रीटेक के साथ आप भी प्यार में गहरे डूबते जाते हो. पहली बार महसूस होता है कि प्यार इसके सिवा कुछ नहीं है कि आप उस एक शख्स के साथ हँस रहे हो.

वैलेंटिन की मुस्कराहट...उसके चेहरे के हावभाव बिना शब्दों के कितना कुछ कहते हैं ये अगर ये फिल्म न बनती तो कभी जान नहीं पाती...मैं फिल्म निर्देशक Michel Hazanavicius की शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने आज के दौर में ऐसी फिल्म बनायीं जिसमें संगीत और कुछ डायलोग बोर्ड्स की मदद से इतनी खूबसूरत कहानी बुनी है जो फिल्म देखने के कई दिनों बाद तक साथ रहती है.

सादी सी कहानी एक मूक फिल्मों के कलाकार के जीवन पर बनी हुयी...उसके आसमान पर छाये होने के दिन और फिर फिल्मों में आवाज़ के आने के बाद उसके मुफलिसी के दिन...इन सबके बीच वैलेंटिन खोया हुआ सा...कुछ वैसा ही लगता है जैसे कभी कभार आज की भागती दौड़ती दुनिया में खुद को पाती हूँ...मिसफिट...कि चारों तरफ बहुत शोर है...बहुत लोग हैं...और हम अपने घर में अकेले हैं...पुरानी यादों की रील के साथ...फिल्म के अंत में बहुत थोड़ा सा हिस्सा है डायलोग का...पर वो ऐसे चकित करता है कि मारे ख़ुशी के आँख भर आती है. वैलेंटिन का एक ही डायलोग है...With pleasure...फ्रेंच एक्सेंट में...मुझे लगा था कि डायलोग फ्रेंच में ही है...पर अभी चेक किया तो देखती हूँ कि इंग्लिश में था. ओह...उसकी आवाज़ सुनना ऐसा था जैसे पूरी जिंदगी किसी की आवाज़ के लिए तरस रहे हों...पर उसे कह भी नहीं सकते...और ठीक जब आप जिंदगी और मौत के बीच की रौशनी वाली जगह पर हों...उसने 'आई लव यू' कह दिया हो.

फिल्म 1.33 :1 के ऐस्पेक्ट रेशियो पर बनी है...हाल में इसपर ध्यान गया कि परदे पर स्क्वायर सी फील आ रही है...वो एक दूसरी ही दुनिया थी जब तक परदे पर फिल्म चल रही थी...मैं उसमें पूरी तरह खोयी हुयी थी...जानती हूँ कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है जो कहीं से भी इस फिल्म को जस्टिफाय करता है...मगर मेरे पास कहने को इतना भर ही था. अगर आपने ये फिल्म नहीं देखी है तो इसे किसी भी हाल में देख कर आइये...घर पर टीवी में देखने वाली ये फिल्म नहीं है...इसके हॉल में देखना जरूरी है. एक गुज़रे हुए दौर की याद दिलाती ये फिल्म हद तरीके से नोस्टालजिक करती है.


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बाकी यहाँ उस रात आकर जो जरा कुछ इधर उधर लिखा था...यहाँ रख देती हूँ...


Capturing a moment. The credit roll at the end of the movie The Artist.
Hopefully I'll somehow be able to put to words the feelings the movie evoked in me. 
It's like that love story I would like to be a part of...wherein there is music and laughter and you understand me even without the words...just a little smile and a flying kiss that always manages to reach you...no matter how far you are. 
To every single person who has brought me joy in my silences. I just sat there overwhelmed. Brimming with love. The way I am when I am with you. 
Some day maybe what I'll write will be coherent too right now I feel pretty intoxicated.
George Valentin I love you. ♥ ♥ 

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Sleeptyping. Again. Hopeless case. 
I want to see The artist again. 
Valentin reminds me of Rhett Butler. Seeing him onscreen has given me enough heartache to kill several of my nights.


You cannot not fall in love with Valentin :) 

15 comments:

  1. तुममें कुछ खास तो जरूर है पूजा...

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    1. वाह :) जिस दिन पता चलेगा क्या खास है उस दिन बताना :P
      डेरी मिल्क का ऐड याद है...कुछ खास है, हम सभी में, कुछ बात है, हम सभी में...बात है...खास है...क्या स्वाद है जिंदगी में...डेरी मिल्क...असली स्वाद जिंदगी का :)

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  2. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
    शुभकामनाएँ

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  3. हमारी भी कोशिश रहेगी.

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  4. किसी बेहतरीन पर लिखना हमेशा एक मुश्किल कोशिश की तरह होता है..जैसे उसे किसी हद में बांधना जबकि आप चाहते हैं कि वो बना रहे बे हद.फिल्म पर आपके लिखे के लिए कहूँगा- कुछ भी लिखकर इसकी पूरी तारीफ नहीं की जा सकती.नेति-नेति कहना ही शायद ठीक रहेगा.
    इस फिल्म के बारे में जहां भी कुछ पढ़ा जाएगा,ये आलेख हमेशा उसके ऊपर स्टेपल कर दिया जाएगा.

    मुझे वेलेंटिन की वो मुस्कान ख़ास पसंद आई जिसमें उनके मुंह में साइड वाला बैड टूथ ख़ास नुमाया होता है.

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  5. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  6. मेरी कल की टिप्पणी पता नहीं कहाँ चली गयी.बस यही कहना चाहता था- इस फिल्म के बारे में जहां भी पढ़ा जाएगा,ये आलेख उन सबके के ऊपर स्टैपल कर दिया जाएगा.

    फिल्म मौन के सारे रंग आत्मा में मल कर अभिव्यक्ति की सूक्ष्म ध्वनियों को भी गुंजायमान रूप से मुखरित करती है. फिल्म देखने के दौरान आप जो कुछ महसूस करते है ये आलेख उन भावों की शब्द-आत्मा है.

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    1. सारी गुस्ताखी ब्लोगर की थी संजय जी...उसने आपका कमेन्ट स्पैम में डाल दिया था. कल दिन भर नेट पर नहीं थी तो मैंने देखा नहीं था.

      वैसे अच्छा हुआ न...देखिये कितनी खूबसूरत पंक्ति उभर कर आई 'फिल्म मौन के सारे रंग आत्मा में मल कर अभिव्यक्ति की सूक्ष्म ध्वनियों को भी गुंजायमान रूप से मुखरित करती है'...ओह...ऐसा कुछ लिखा जाना चाहिए इस फिल्म के बारे में. मैंने तो बस जैसे टुकड़े जोड़ कर रफू कर दिया है...फिर भी इतने खूबसूरत कमेन्ट के लिए शुक्रिया :)

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  7. बहुत ही प्यारी सी फिल्म है!

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  8. अब जब फिल्म तुम्हारी आँखों से देख ली खुद की आँखों से वो कभी इतनी सुंदर लग सकती है?

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  9. didnt watch dt movie, now eager...

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  10. whatever you have write here is forced me to watch this movie
    & i am thankful of you..
    such a great movie, i jz love dt..

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