15 February, 2012

पतझड़ का शहर

उसके शहर में
बहुत करीने से गिरते थे पत्ते भी

अक्सर सोचता हूँ 
दुनिया में कुछ है भी
जो उसकी तरह बिखरा हुआ है
या कि बेतरतीब 

सूखे पत्तों पर बाइक उड़ाती लड़की
मुझसे यूँ प्यार न करो
अभी मेरा दिल हरा ही है
अभी इंतज़ार अधूरा बाकी है 

तुम तो मौसम की तरह गुज़र जाओगी
पर मैं कतार में कैसे बिखेरूँगा सूखे पत्ते 

कि तुम कैसे पहचानोगी वापसी की राह?
तुम्हारी तसवीरें देख कर एक ही बात सोचता हूँ
तुम वाकई करोगी क्या मुझसे प्यार...ताउम्र?

या कि तुम्हें भी झूठे वादे करने
और झूठी कसमें खाने में लुत्फ़ आता है?

(एक लड़की थी...एक नंबर की झूठी...और वैसी ही दिलफरेब...एक शहर था...जिसे उस लड़की से प्यार हो गया था...एक लड़का था जिसे वो शहर दरवाजे पर रोक लेता था...और इश्क था...एक नंबर का बदमाश...ये इन तीनो(चारों?) की कहानी है. हाँ, इस कहानी के सारे पात्र असली हैं...बस उनका पता नहीं मिलता)

18 comments:

  1. बेहद खूबसूरत्।

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  2. कमाल है इश्क सामने है .. और लोग हैं की पहचानते नहीं और हाँ ऐसे शहरों के नाम नहीं हुआ करते बस किस्से होते हैं जो गूंजते रहते हैं कई बरसों तक .....
    तुम्हारा लिखा पढने के लिए ही आती हूँ अब तो में नेट पर .. क्या तुमसे कभी मिलना होगा सखी
    मेरी पूरी wall तुम्हारी लिखी lines से भरी रहती है .. love ur writings

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  3. वाकई आपकी लेखन शैली बहुत ही प्रभावशाली है।

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  4. सुंदर रचना।
    गहरे भाव।

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  5. बड़ी जानी पहचानी सी कहानी है, सबको अपने आप में ढूढ़नी होती है....थोड़ी थोड़ी...धीरे धीरे...

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  6. बहुत अच्छी कविता दिल को सलीके से छू गयी |

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  7. हवा ने एक दिन वो पत्ते उड़ा देने कि कोशिश की, वो लड़की दीवार बन खड़ी हो गयी, फिर हवा का बस भी कहाँ चला...और फिर जब वो लड़का शहर की हद तक पहुंचा तो हवा बैठी सुबुक रही थी, लड़की के प्यार से उसकी पहली मुलाकात थी वो !!!!

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  8. Lapata ganj..................live
    .
    .
    .
    aur ha aapka facebook pata, pata
    karna chahite hai..............bata digiyega
    jara............

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  9. बहुत खुबसूरत अंदाज है आपकी अभिव्यक्ति का...
    सुन्दर रचना...
    हार्दिक बधाई..

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  10. कुछ दिन से व्यस्त था इस गली में आना नहीं हुआ ...अब आया हूँ तो धीरे-धीरे तुम्हारी सारी पोस्ट्स इन बूढ़ी आँखों से छूने की कोशिश करूंगा.

    असली पात्रों का खोया हुआ पता हर किसी के पास है ...बस कोई बताना नहीं चाहता ...सब अनजान बनने का नाटक करते हैं ......याकि उन्हें यूँ बताना नहीं आता ...शायद गूंगे होंगे .....

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  11. खूबसूरत अहसास जगाती कविता।
    ...
    बसंत में याद आती है
    वो बाइक उड़ाती लड़की
    जब झरते हैं
    दरख्तों से सूखे पत्ते
    हाय!
    भुला दी जाती है
    फागुन की रंगीनियों के साथ
    ...

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  12. pooja tumhe padhne ka lag hi ahsaas hai

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  13. कल 30/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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