05 February, 2012

उसने किसी दूसरी कायनात का सूरज हमारे होठों पर टाँक दिया...

'तो? क्या चाहिए?
'तुम चाहिए'
'अच्छा, क्या करोगी मेरा?'
'बालों में तेल लगवाउंगी तुमसे' 
'बस...इतने छोटे से काम के लिए मैं तुम्हारा होने से रहा...कुछ अच्छा करवाना है तो बोलो'

'तुम हारे हुए हो...तुम्हारे पास ना बोलने का ऑप्शन नहीं है'
'अच्छा जी...कब हारा मैं तुमसे? मैंने तो कभी कोई शर्त तक नहीं लगाई है'
'अच्छा हुआ तुम्हें भी याद नहीं...मैं तो कब का भूल गयी कि तुम कब खुद को हारे थे मेरे पास...अब तो बस ये याद है कि तुम मेरे हो...बस मेरे'

'तो ठकुराइन हमसे वो काम करवाइए न जो हमें अच्छे से आता हो'
'मुझे तुम्हारे शब्दों के जाल में नहीं उलझना...तुम्हारे कुछ लिख देने से मेरा क्या हो जाएगा...सर में दर्द है, आ के मेरे बालों में उँगलियाँ फेरो तो तुम्हारे होने का कुछ मतलब भी हो...वरना वाकई...तुम्हारा जीना बेकार है'

'बस इतने में मेरा जीना बेकार हो गया?'
'और नहीं क्या अपनी प्रेमिका के बालों में तेल लगाने से महत्वपूर्ण कुछ और भी है तुम्हारी जिंदगी में तो ऐसी जिंदगी का क्या किया जाए!'
'आप और मेरी प्रेमिका...अभी तो आप कह रही थीं कि मैं हारा हुआ हूँ खुद को आपके पास...कि आप तो बेगम हैं'
'खूब जानती हूँ तुम्हें...देखो...ये बेगम शब्द कहा...कुछ और भी तो कह सकते थे'
'कुछ और जैसे कि...जान...महबूब...मेहरबां...या फिर कातिल?'
'हद्द हो...कितनी बात बनाते हो...मैं तो कह रही थी कि मालकिन, रानी साहिबा, मैडम या ऐसे अधिकार वाले शब्द'
'चलो बता दो इनमें से कौन सा शब्द गलत है...जान तुम में बसती है...महबूब तुम हो मेरी...और पल बदलते मेहरबान होती हो और पल ठहरते कातिल.'
'जाओ हम तुमसे बात नहीं करते'

'गलत इंसान से रूठ रही हो!'
'ओये लड़के...प्यार तुझसे करुँगी तो रूठने क्या पड़ोसी से जाउंगी?...हाँ प्यार गलत इंसान से कर लिया है...सीधे सीधे कह दो न .'
'प्यार गलत इंसान से कर लिया है...अब मैं अपना क्या करूँगा?'
'मेरे हो जाओ'
'अब क्या होना बाकी रह रखा?'

'ईगो बहुत है तुममें'
'अच्छा तो अब हमें तोड़ के भी देखोगी?...जान क्यों नहीं लेती हो हमारी?'
'अरे...फिर मेरे बालों में तेल कौन लगायेगा?'

'तौबा री लड़की! तू वाकई अपने जैसी अकेली है...तुझे खुदा से भी डर लगता है भला?'
'डरें मेरे दुश्मन...हमने भला कौन सा गुनाह किया है कभी'
'तूने री लड़की...गुनाह-ए-अज़ीम किया है'
'अच्छा...वो क्या भला?'
'इश्क़'
---

आखिरी लफ्ज़ कहते हुए महबूब की आँखों में शरारत नाच उठी...उसने किसी दूसरी कायनात का सूरज हमारे होठों पर टाँक दिया...उस एक सुलगते बोसे से मेरे होठ आज तक महक रहे हैं...कि आज भी जब मैं हंसती हूँ तो लोग कहते है कि मेरे होठों से रौशनी के फूल झरते हैं. 

15 comments:

  1. ahaa........... ! Wakai aapki kalam se bhi phool jhadare hain ! itvaar ki subah aur laharen... ye poora saptaah khoobsurat gujarne wala hai mera :)

    regards !

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  2. अद्भुत प्रेमाभिव्यक्ति। ईगो, तोड़ कर देखोगे क्या?
    ओह, यह कमवख्त ईश्क।

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  3. अश्क और इश्क ... और अब ये दूसरी कायनात का हर्फ़ ... रूह से महसूस करो ....

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  4. क्या खूब लिखती हैं आप!

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  5. ओस भरे प्यार सा है तुम्हारा निराला इश्क ........इसकी चिर नवीनता .....दिव्य सुवास .......अल्हड़पन ....अनूठा है सब कुछ.

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  6. कि आज भी जब मैं हंसती हूँ तो लोग कहते है कि मेरे होठों से रौशनी के फूल झरते है्………………उफ़ मोहब्बत!!!!

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  7. बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,

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  8. एक तत्व जिससे बनी है सृष्टि... उसे अपनी आत्मा में बसाकर जो लिख दो गीत बन जाता है...
    इश्क़ खिलता रहे इन्द्रधनुषी रंगों में यूँ ही!!!

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