02 February, 2012

मरने से लोग तस्वीरों से भी गुम हो जाते हैं...

 'रिपोर्ट यहीं लिखवाई जाती है?' लड़के ने तीसरी बार सवाल पूछा. वो एक छोटा सा ८-१० साल का लड़का होगा, पुलिस स्टेशन में मेज के सामने वाली कुर्सी पर बैठा था. उसे पैर बमुश्किल कुर्सी से नीचे जमीन तक पहुँच रहे थे. वो बड़ों के बैठने की कुर्सी थी...उसमें बैठा हुआ वह खुद को बहुत छोटा भी महसूस कर रहा था...उसे उचक कर बात करनी पड़ रही थी. सामने की कुर्सी पर एक अधेड़ उम्र का पुलिस वाला बैठा हुआ था...चेहरे पर बहुत सी हिकारत और नफरत उबली पड़ी थी कि जैसे सारे कैदियों के किये घृणित अपराधों का एक हिस्सा उसे चेहरे पर चिपकता जाता और इतने सालों में चेहरा परत परत विद्रूप हो गया था...सिकोड़ी हुयी नाक...आँखों में बहुत सा अविश्वास और हिकारत. 

वहाँ बहुत कोलाहल था...फिर भी एक अजीब किस्म का सन्नाटा भी पसरा हुआ था...पुलिस स्टेशन न होके कोई फांसीघर या बूचड़खाना लग रहा था...कायदे से उस लड़के के वहाँ पाए जाने की कोई जरूरत नहीं थी. कहीं बेशर्म ठहाके थे तो कहीं खैनी के ठोकने की आवाज़ और उसके साथ ही बीड़ी, सिगरेट और अतृप्त इच्छाओं के प्रेत भी हवा में डोल रहे थे...एक अजीब किस्म की मनहूस बेचैनी पसरी थी वहाँ. ऐसी किसी जगह से कोई भी उम्मीद नहीं जाग सकती थी...यहाँ आ के किसी का पता नहीं मिलता...शहर का हर आदमी यहाँ आने से डरता था. वो था भी एक छोटा सा शहर जिसका हर कदम वहाँ की लड़कियों की तरह होता है...हज़ार बार विचारा हुआ. सारे इफ्स एंड बट्स के बाद वहाँ कोई निर्णय लिया जाता था. वहाँ अगर लोग खो जाते थे तो उन्हें मरा हुआ मान लेना इस जिल्लत से बेहतर था कि पुलिस स्टेशन जा के रिपोर्ट लिखाई जाए और फिर पुलिस खोयी हुयी चीज़ या खोये हुए लोग ढूंढ के वापस करे. 

वो लड़का अभी छोटा था फिर भी उसे बहुत अच्छी तरह मालूम था कि पुलिस स्टेशन अच्छे आदमियों के जाने की जगह नहीं है. लेकिन जो खो गया था उसे ढूँढने के उसके सारे तरीके विफल हो चुके थे...वो सब जगह देख आया था. स्कूल के रजिस्टर में, उसके घर के सामने वाले अहाते में, कोटर वाले नीम के पीछे की छाँव में, अलगनी पर टंगे बाकी कपड़ों में...उसका कहीं कोई निशान नहीं था और दुनिया ऐसी बेपरवाह चल रही थी जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो. उसने बहुत सोचा कि वो क्या करे फिर आखिर में अपना बस्ता उठाया और पुलिस स्टेशन जाने का मन बनाया...गुल्लक फोड़ी तो उसमें से मात्र सैंतालिस रुपये बीस पैसे मिले. उसे लग रहा था कम से कम पचास रुपये तो हो जाने चाहिए...उसने बड़ों से सुन रखा था कि पुलिस से काम करवाने के पैसे लगते हैं...फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखता आया था. 

उसने अपनी साफ़ स्कूल वाली शर्ट पहनी और बैग लेकर थाने की ओर निकल गया. उस सुबह स्कूल मिस करने का क्या बहाना बनाएगा ये सोचना उसने बाद के लिए टाल दिया. आज रस्ते में उसे कोई भी देखता तो वो डर जाता, उसे लगता कि सब उसके चेहरे पर पढ़ लेंगे कि वो स्कूल नहीं थाना जा रहा है और फिर उसे जबरन खींच कर क्लास में बैठा दिया जाएगा या घर में बाथरूम में बंद कर दिया जाएगा. वो जल्दी जल्दी कदम बढ़ा रहा था. उसने आज पहली बार पुलिस स्टेशन को गौर से देखा था...एक बार तो ऊँची ऊँची दीवारें और उससे भी बेहद ऊँचे गेट को देख कर वो सहम गया. बचपन में जब वो खाना खाने में आनाकानी करता था तो मम्मी कहती थी कि उसे पुलिस थाने में दे आयेंगे. उसे लगा कि कहीं ये लोग उसे पकड़ के अन्दर ही रख न लें. 

इतना सब सोचते हुए वो अन्दर गया था और मेज़ के सामने रखी कुर्सी पर बैठा था जहाँ कोई उसकी बात ही नहीं सुन रहा. कुछ देर वहीं चुप और गुमसुम बैठा रहा...वहाँ एक बड़े से बोर्ड पर बहुत से लोगों की तसवीरें लगी थीं. वो ध्यान से उन्हें देखने लगा कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा...लड़के ने देखा कि कुछ लोग रोते हुए अन्दर घुस आये हैं और उनमें से एक को बिठाने के लिए कुर्सी चाहिए थी...वो हड़बड़ा के उठ खड़ा हुआ. उसे मालूम नहीं था वो कितनी देर से वहाँ बैठा था. उसे लगा कि बहुत देर अगर वो उधर ही रहा तो क्या शहर में किसी को उसके खो जाने की बात पता चलेगी? क्या कोई उसकी रिपोर्ट लिखवाने थाने आएगा? उसके कोई खास दोस्त नहीं थे और उसे ऐसा लगता था कि माँ और पिता उसे इतना प्यार नहीं करते कि उसके लिए थाने चले आयें...वो शायद उसे मरा हुआ मान कर ही संतोष कर लेंगे. इतना सोचने के बावजूद वो रिपोर्ट लिखा कर घर जाना चाहता था. 

वहाँ सब अपने अपने काम में गुम थे...एक दरवाजे के पीछे उसे बहुत सी चुप्पी दिखी, लड़के को लगा कि यहाँ जो बैठता होगा उसे पास वक़्त होगा उसकी बात सुनने के लिए. वो दरवाजे से अन्दर घुसा...वहाँ एक दयालु आँखों वाला इन्स्पेक्टर बैठा था. उसे देख कर लड़के का सारा डर जाता रहा...इन्स्पेक्टर ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया और सामने कुर्सी पर बिठाया. 
'कोल्ड ड्रिंक पियोगे?'
लड़के को अचानक से लगा कि उसे बहुत देर से प्यास लगी थी...उसे हाँ में सर हिलाया. इन्स्पेक्टर ने घंटी बजायी और किसी को एक कोल्ड ड्रिंक लाने को कहा. कोल्ड ड्रिंक आने तक वो फ़ाइल में कुछ लिखता रहा और बीच बीच में लड़के की ओर देख कर मुस्कुरा भी देता. 
'अब बताओ...क्या हुआ?'
'एक लड़की खो गयी है...उसकी रिपोर्ट लिखवानी है?'
'तुम क्यूँ आये हो, उसके मम्मी पापा नहीं हैं?'
'हैं, पर वो उसे नहीं ढूंढते...उन्हें लगता है कि वो...(एक बार गले में कुछ अटका और उसने कोल्ड ड्रिंक का एक सिप लिया) कि वो मर गयी है. 
इन्स्पेक्टर के माथे पर कुछ बल पड़े पर वो शहर के लोगों को अच्छे से जानता था इसलिए उसे बात समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुयी.
'तुम्हारी कौन है, बहन?'
'दोस्त है'
'लड़की की फोटो है?'
लड़के ने बैग से निकल कर स्कूल की फोटो दी जो पिछले पंद्रह अगस्त को खिंचवाई गयी थी और ऊँगली से दिखाया ये यही लड़की है. 
इन्स्पेक्टर एक मिनट को तो चकित हुआ कि लड़का मजाक तो नहीं कर रहा...उस तस्वीर में सारे लड़के थे क्लास के. वो सेंट माइकल्स की तस्वीर थी और सेंट माइकल्स बोयस स्कूल था ये इन्स्पेक्टर को भी मालूम था. 

उसने संयत होकर लड़के से पूछा कि इसमें तो कोई लड़की है ही नहीं...फिर उसकी दोस्त कहाँ है. लड़के ने चौंक कर कहा कि मरने से लोग तस्वीरों से भी गुम हो जाते हैं...फिर वो सिर्फ उन्हीं को दिखते हैं जिन्होंने उन्हें जीते जी जाना था और जो उन्हें अब भी प्यार करते हैं. इन्स्पेक्टर लड़के के लिए परेशान होने लगा था उसने प्यार से पूछा कि लड़की कि और भी कोई चीज़ है उसके पास. इसपर लड़के ने अपना बक्सा निकला और उसमें से कागज़ निकाल के रखा जो किसी स्कूल की कॉपी से फाड़ा हुआ लग रहा था. टेढ़े मेढ़े अक्षर थे...'सोनू एक अच्छा लड़का है. सोनू पिंकी का बेस्ट फ्रेंड है. सोनू की साइकिल हरे रंग की है. सोनू की मम्मी बहुत अच्छा पुलाव बनाती है. सोनू मेरे साथ हमेशा रहेगा.' इसके नीचे नाम लिखा हुआ था पिंकी. 

कुछ और है तुम्हारे पास? लड़के ने अबकी ना में सर हिलाया...इन्स्पेक्टर ख़ासा परेशान था. इस लड़की को कैसे ढूंढें जिसकी एक तस्वीर भी नहीं है...एक कागज़ के टुकड़े पर लिखी हैण्डराइटिंग का क्या ठिकाना...जाने कोई बच्ची है भी या नहीं. पर उसका मन नहीं मानता कि कोई लड़का इतनी हिम्मत करके झूठी कहानियां सुनाएगा. इन्स्पेक्टर ने लड़के का पता लिख लिया और कहा कि उसे लड़की मिल जायेगी तो बताने आ जाएगा और उस कागज़ के टुकड़े को अपने साथ रख लिया. 

इन्स्पेक्टर नया नया भर्ती हुआ था उसका अभी भी दुनिया में कुछ अच्छा करने और होने में विश्वास कायम था. उसने एक छोटी टुकड़ी लेकर शहर छानना शुरू किया...दुपहर होते होते शहर से कुछ पाँच किलोमीटर दूर गुफाओं के पास एक साइकिल दिखी...ये बहुत पुरानी गुफाएं थीं जहाँ यदा कदा लोग पहुँच जाते थे पुराने भित्ति चित्रों को देखने के लिए. सर्च लाईट लिए हुए पुलिसकर्मी अन्दर घुसे...काफी देर तक कहीं कुछ नहीं मिला कुछ घंटे बीत जाने पर अचानक कुछ उम्मीद जागी...एक गहरी कन्दरा में दो बच्चे दिख रहे थे. ऐम्बुलंस बुलवाई गयी और धीरे धीरे करके एक पुलिस वाला उस गहरी खोह में उतरा. 

रस्सियों की मदद से दोनों को बाहर निकाला गया...बच्ची की सांसें बहुत धीमे चल रहीं थी...पर लड़का दम तोड़ चुका था, उसका चेहरा खून से लथपथ था. टीम जब बाहर आई तो एम्बुलेंस और डॉक्टर बाहर खड़े थे...इन्स्पेक्टर भी पहली बार दोनों बच्चों को देखने पहुंचा...डॉक्टर ने लड़की की हालत चेक करके बताया कि वो बच जायेगी...कहाँ नहीं जा सकता कि कब गिरी, कब बेहोश हुयी...पर जल्दी ठीक हो जायेगी. लोग राहत की साँस ले रहे थे कि कमसे कम एक बच्चा तो बच गया...उन्हें लग रहा था भाई-बहन खेलते हुए आये होंगे और शाम यहाँ गिर गए होंगे. 

लड़के की बॉडी को पोस्टमोर्टेम के लिए भेज दिया गया. अगली शाम इन्स्पेक्टर रिपोर्ट पढ़ रहा था कि उसे लगा कि सर चकरा रहा है...कि उसकी हृदयगति रुक जायेगी. लड़के के मरने का वक़्त ७२ घंटे पहले दिया गया था. ७२ घंटे...तीन दिन...कल दोपहर की बात थी...यहीं...घबराया...सहमा सा...सामने की कुर्सी पर अब भी एक सांस में कोल्ड ड्रिंक पीता लड़का दिख रहा था इन्स्पेक्टर को...और दायीं जेब में कोपी का फटा हुआ पन्ना...सोनू एक अच्छा लड़का है... 

15 comments:

  1. अनूठी सच में बेहद अनूठी

    ReplyDelete
  2. ओह …………अद्भुत्।

    ReplyDelete
  3. मन शून्य है इस कथा को पढ़ कर। इस पर कुछ प्रतिक्रिया देना मुश्किल है बस फेसबुक वाल पे शेयर कर रहा हूँ।

    ReplyDelete
  4. प्यार की यह प्रगाढ़ता हिला देती है, किसने कहा कि प्यार रूहानी नहीं होता है, सोनू प्रियतम का लिखा कैसे असिद्ध कर दे।

    ReplyDelete
  5. pooja realy unexpected.....very nice

    ReplyDelete
  6. ऐसी सच्ची घटनाएं होती हैं जो बताती है कि प्यार कितना अमर होता है...कितना निश्छल होता है....।

    ReplyDelete
  7. ओह! क्या कहूं..................कुछ नहीं। एक बार फिर पढूंगा।

    ReplyDelete
  8. beautifully crafted, written and finished... This story maintained a good grip on me until the finish...
    wo kya kahta hai Darpan - Pure Awesomeness... :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. हमारी तो ईद हो गयी...पंकज बाबू बादलों से निकल कर बाहर आए हैं!

      Delete
    2. haha... badlon ka to pata nahin.. aalas se bahar jaroor nikla tha...
      btw lahrein youn hi jeeti rahein.. amen! :)

      Delete
  9. लगता है ज़ल्दी ही पूजा फिल्मों के लिए पटकथा लिखना शुरू करने वाली हैं .......फिलहाल इस पर एक टेली फिल्म बन सकती है......

    ReplyDelete
  10. beautiful...& different story.

    ReplyDelete
  11. इस लेखन के बारे में क्या लिखा जाय

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...