02 January, 2012

मन के बाहर बारिश का शोर था...


मन के बाहर बारिश का शोर था...
बहुत सा अँधेरा था
कोहरे की तरह और कोहरे के साथ
गिरती हुयी ठंढ थी
रात का सन्नाटा था
घड़ी की टिक टिक थी 

खुले हुए बालों में अटकी
लैपटॉप से आती रोशनी
के कुछ कतरे थे

आँखों में उड़ी हुयी नींद के
कुछ उलाहने थे 
तुम्हारे दूर चले जाने के
कुछ  डरावने ख्याल थे 
तुम भूल जाओगे एक दिन 
ऐसी भोली घबराहट थी 

मन के अन्दर बस एक सवाल था
कैसा होगा तुम्हें छूना
उँगलियों की कोरों से
अहिस्ता, 
कि तुम्हारी नींद में खलल ना पड़े 

गले में प्यास की तरह अटके थे
सिर्फ तीन शब्द
I love you
I love you
I love you

8 comments:

  1. तीन बार कहना आई लव यू...

    कि तीन बार कहने मे

    दो बार का 'मी टू' भी शामिल होता है

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  2. कितनी खूबसूरत प्यारी सी कविता है..
    और दर्पण भाई का कमेन्ट भी! :)

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  3. गले में प्यास की तरह अटके थे
    सिर्फ तीन शब्द
    I love you
    I love you
    I love you
    ..... ab aur kya !

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  4. बड़े नाज़ुक हैं ये शब्द. नव वर्ष की शुभकामनाएं.

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  5. कामायनी की पंक्तियाँ याद आयी.

    तारा बनकर यह बिखर रहा

    क्यों स्वप्नों का उन्माद अरे

    मादकता-माती नींद लिये

    सोऊँ मन में अवसाद भरे।

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  6. भावो का सुन्दर समन्वय्।

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  7. गले में प्यास की तरह अटके थे....
    badhiya

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