17 December, 2011

उस भागते, बिसरते, भूलते, याद आते...ever elusive 'तुम' की तलाश में!

हम कैसे पागल लोग हैं न! सारे एक्सपेरिमेंट खुद पर करते हैं. जिंदगी एक फिल्म की तरह है जिसमें हमें हमेशा ऑप्शन दिया जाता है कि हम अपने एक्शन सीन खुद से करें या बॉडी डबल का इस्तेमाल कर लें. हम जिद्दी इंसान हैं कि अपने सारे स्टंट्स खुद ही करेंगे...हीरो बनना इसी को कहते हैं...तो क्या हुआ अगर हीरो कभी फिल्म के बीच में नहीं मरता...और हम कभी भी किसी भी दिन टपक सकते हैं.

इसी तरह पागलों की तरह इश्क करते रहेंगे तो शायद हम भी अपना नाम अमर कर जाएँ उन लोगों में जो एक्सेस में इंडल्ज करने के कारण मर गए...सब जगह पढ़ने में आता है...घर पर भी पापा मम्मी कितना समझाते रहे हमेशा कि 'बेटा, अति हर चीज़ की बुरी होती है' हम न समझे तो न समझे...प्यार की भी कोई तो लिमिट होती होगी. हमें ज्यादा मैथ समझ नहीं आता वरना इसका कोई फ़ॉर्मूला हम पक्का निकालते कि इंसान की उम्र के हिसाब से उसे कितने बार प्यार में होना सर्वाइव करने देगा और कब प्यार ही उसकी जान ले लेगा. 

हम कमबख्त...प्यार शब्द से भी दिल नहीं भरता तो उसे और भारी कर देते हैं 'इश्क' हाँ...अब लगता है कि कोई चीज़ है जिसपर जान दी जा सके. इश्क टर्मिनल इलनेस ही तो है...बताओ भला किसी को जानते हो जो इश्क में पड़ने के बाद मरने के पहले निकल पाया इससे? हम तो नहीं जानते. राल्फ स्टीनमैन की याद आई...न ना...असल में याद उस साइंटिस्ट की आई जिसने कैंसर से लड़ते हुए खुद पर ही एक्सपेरिमेंट किये और अपनी जिजीविषा से जितना जीना चाहिए था उससे ज्यादा दिया वो...नाम तो गूगल करना पड़ा अभी. नाम के मामले में अभी भी कच्ची हूँ. बताओ क्या जरूरी होता है...गूगल के ज़माने में क्या फर्क पड़ता है कि लोगों को आपका नाम याद न हो...ढूंढ लेंगे उसे. कल को मान लो जो कोई ढूंढें, वो लड़की वो इश्क की ओवरडोज से मर गयी तो क्या मेरा नाम आएगा? 

इश्क का नशा तो किसी भी नशे से बढ़ कर चढ़ता है न...ये दिल जो इस तरह कमबख्त धड़कता है बंद क्यूँ न कर देता है धड़कना...लिखना कितनी बड़ी आज़ादी देता है...हम क्यूँ नहीं ये सारे अहसास अपने किरदारों के द्वारा जी लेते  हैं...हम कैसे पागल हैं न कि जब तक खुद का दिल टूट के किरिच किरिच नहीं बिखरता लिख ही नहीं पाते. खुद को बार बार इस आग में जलने के लिए फ़ेंक देते हैं और फिर खुद ही बाहर खड़े होकर तमाशा देखते हैं कि ले बेट्टा! हम बोले थे न, बचो बचो...बेसी होशियार बन रहे थे...अब बूझो!

अनुपम हमको 'masochist' बोलता है...हम अपने आपको सुपरहीरो समझते हैं...पर प्यार तो सुपरमैन को भी कमजोर कर देता है...अनुपम हमको एक दिन साइनोसाइडल वेव भी बोल दिया...हमको लगा सुसाइडल बोल रहा है...दुष्ट है...साइन वेव नहीं कह सकता था...कोई भली लड़की सोचेगी कि कोई उसको साइनोसाइडल वेव भी बोल सकता है...उसपर बोलता है कुणाल से पूछो, जैसे कि इतना सिंपल चीज़ हमको पता ही नहीं होगा. हम सर पकड़ के बैठ गए...जिस चीज़ को लिखने के लिए इतना लम्बा पोस्ट लिख मारे उसके लिए एक टर्म था...वो भी फिजिक्स का...एक शब्द! समझ नहीं आया कि साइंस की खूबसूरती पर खुश हों या अपने अनगिन शब्दों के व्यर्थ होने पर सर कूट लें. 

जिंदगी हर स्टंट के लिए बॉडी डबल देने के लिए तैयार है...एक किरदार रचो और उसके थ्रू सब जी लो...दर्द, तड़प, विरह...मगर हम हैं कि नहीं...ईमानदार लेखक हैं, जो जियेंगे वही लिखेंगे...अपने माथा पे हाथ धर के कसम खाए हैं जो कहेंगे सच कहेंगे, सच के सिवा कुछ नहीं कहेंगे. ई सबके बावजूद बहुत स्मूथ झूठ बोलते हैं...एकदम क्लासी व्हिस्की की तरह. फिलहाल स्टंट ये है कि एक समय में कितने लोगों की याद आ सकती है...खिड़की से चाँद दिखता है महीने के आधे दिन...मैं आधे पहर तो जागी रहती हूँ...उस वक़्त मेरा बॉडी डबल छत पर किसी तुम के साथ शैम्पेन पी रहा होता है...मैं लैपटॉप पर किटिर किटिर करती रहती हूँ. 

भोर नींद खुलती है...सोचती हूँ आज तुम्हारी आवाज़ सुनने को मिलेगी क्या...बाहर आती हूँ, तुलसी में जल देती हूँ...धूप को बंद पलकों से महसूस करती हूँ...हाथ भी जोड़ देती हूँ सूर्य देवता को, तुम्हारी याद कुछ ज्यादा आ रही हो तो या फिर स्मृति का एक्जाम हो तो. 

एक नंबर की झूठी हूँ...मेरी किसी बात का यकीन मत करो...वैसे तुम्हें बता दूं, घर के सामने नारियल के पेड़ पर एक पतंग अटकी हुयी है, पर्पल कलर की...उसे देख कर मांझे याद आये और उससे कटी उँगलियाँ...खून बहे तो तुम फ़िल्मी अंदाज़ में मेरी उँगलियाँ चूम लोगे या कि पतंग बचाने को मंझा और लटाई मेरे हाथ से ले लोगे? कौन ज्यादा प्यारी रे, मैं कि पतंग? ये वाला एक्सपेरिमेंट भी करके देखें? या कि बॉडी डबल को शैम्पेन के गिलास से निकालें और बोलें कि चिरकुट एक काम नहीं की लाइफ में, चलो एक ठो निम्बू पानी बना के लाओ तो...जोर का हैंगोवर हो रहा है. कल फिर किसी से बड़ी जोर का प्यार हो गया है हमको!

(इस पोस्ट के क्रेडिट रोल्स में है स्मृति...हमारे प्यारे प्यारे पतिदेव को जो कि अपने एक्सबॉक्स के गेम के बीच में हमको दूसरे रूम में जा के लिख लेने का परमिशन दिए और एक एकदम फ्रेश बनी दोस्त को जिसका नाम हम अभी पब्लिक फोरम में नहीं लेंगे)

11 comments:

  1. जब सारे अनुभव स्वयं ही जी लेने की व्यग्रता हो तो सुपरमैन बन कर जीना ही पड़ता है।

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  2. "तुम" तो मेरा हमेशा से पसंदीदा विषय रहा है...

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  3. बहुत अच्छी पोस्ट सुबह सार्थक हो गयी |समय मिले तो मेरा प्रेमगीत पढ़ लीजियेगा |www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com

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  4. 'कौन ज्यादा प्यारी रे, मैं कि पतंग?'
    अरे!... इसमें क्या सोचना... तू ही ज्यादा प्यारी है... पतंग से ही क्यूँ... सभी से ज्यादा तू ही प्यारी है...
    keep writing nonstop:)
    lovely post!!!
    lots of love and best wishes...

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  5. इश्क का नशा किसी भी नशे से बढ़ कर चढ़ता है
    कितना भी निम्बू इमली खिलाओ
    नशा उतरता नहीं ...

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  6. इन दिनों बहुत लिख रही हो.....अपूर्व कहता है ना...".ख्यालो का सुनामी "...लगता है इश्क को भी अपने साथ लेकर आया है ......
    जारी रहे ये सुनामी !

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  7. हाय!! हम भी थे यहाँ...अगर रिजल्ट से बेख़ौफ़ होते तो कह भी देते कि भाड़ में जाये ऐसा exam जो दो दोस्तों को फोन पर गप्पें भी न मारने दे ;)

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  8. This comment has been removed by the author.

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