30 November, 2011

हाय! साकी को शर्माना भी ना आये

हसरत-ऐ-नाज़ उठाना भी न आये
वो रूठें तो मनाना भी ना आये 
क्यूँ इश्क में गिरफ्तार हुए बैठे हो
तुम्हारे हाथों में तो पैमाना भी न आये 

खुद की खुद्दारियों में उलझे हो 
तुम्हें तो खुद को मिटाना भी ना आये 

खुदा की बंदगी से मुख्तलिफ यूँ
वो बुला ले तो निभाना भी ना आये 

हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
हाय! साकी को शर्माना भी ना आये 

वो जो पूछें गली में आने का सबब 
हमें देने को बहाना भी ना आये 

लौट तो जाएँ तेरे दीदार के बाद
जीते-जी तेरे दर से जाना भी ना आये 

जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है 
हमें तो सजदे में सर झुकाना भी ना आये 

29 comments:

  1. वो जो पूछें गली में आने का सबब
    हमें देने को बहाना भी ना आये

    waah bahut khoob

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  2. लौट तो जाएँ तेरे दीदार के बाद
    जीते-जी तेरे दर से जाना भी ना आये
    ...........वाह, क्या बात है ... बेहतरीन ग़ज़ल !

    संजय भास्कर
    आदत......मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  3. खुद की खुद्दारियों में उलझे हो
    तुम्हें तो खुद को मिटाना भी ना आये
    .....आह कितनी खूबसूरत बात कही है.

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  4. बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।

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  5. लौट तो जाएँ तेरे दीदार के बाद
    जीते-जी तेरे दर से जाना भी ना आये ...

    गहरे और सुंदर जज़्बात ...
    shows the hidden perseverance of the poet .

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  6. वो पूछें गर, क्या हाल है जनाब का,
    छिपाना जो चाहें, छिपाना न आये।

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  7. 'जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है'
    यह है समर्पण की चरम गति!
    सुन्दर!

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  8. बहुत ख़ूबसूरत, प्रसंशनीय, बधाई.

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  9. हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
    हाय! साकी को शर्माना भी ना आये

    वाह! बहुत खूब पूजा जी।

    सादर

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  10. क्या कहने, बहुत बढिया

    हसरत-ऐ-नाज़ उठाना भी न आये
    वो रूठें तो मनाना भी ना आये

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  11. लौट तो जाएँ तेरे दीदार के बाद
    जीते-जी तेरे दर से जाना भी ना आये
    ..
    बहुत सुंदर भाव... गज़ल में गहराई है ये देखकर अच्छा लगा ! हालाँकि अभी काफिया ...रदीफ ...और बहर की कुछ दिक्कत है !

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  12. भावपूर्ण सुन्दर गज़ल ! हर जज़्बात मन को छूते हैं और एक मीठा सा रिश्ता कायम कर लेते हैं !

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  13. पूजा जी,..
    बहुत ही सुंदर जज्बाती गजल,..लिखी आपने..
    मेरी शुभकामनाए,..इसी तरह लिखती रहे ,...

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  14. बढ़िया ग़ज़ल....
    सादर बधाई

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  15. हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
    हाय! साकी को शर्माना भी ना आये

    ...बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल ..हरेक शेर बहुत उम्दा..

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  16. जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है
    हमें तो सजदे में सर झुकाना भी ना आये

    baht khub

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  17. हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
    हाय! साकी को शर्माना भी ना आये
    awesome dear

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  18. वो जो पूछें गली में आने का सबब
    हमें देने को बहाना भी ना आये


    प्यार ही प्यार..बेशुमार.. :)

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  19. जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है
    हमें तो सजदे में सर झुकाना भी न आये
    वाह बहुत सुंदर ! हार्दिक बधाई

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  20. मकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
    ----------------------------
    आज 15/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  21. जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है
    हमें तो सजदे में सर झुकाना भी ना आये

    बेहतरीन...बहुत खूब..!

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  22. बहुत खूब..........

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  23. हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
    हाय! साकी को शर्माना भी ना आये

    वो जो पूछें गली में आने का सबब
    हमें देने को बहाना भी ना आये
    vah puja ji kya khoob likha hai ....dil ko chhoo gayee apki ye gazal ...badhai

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