11 August, 2011

निर्मोही रे

निर्मोही रे
तन जोगी रे
मन का आँगन 
अँधियारा

निर्मोही रे
लहरों डूबे 
सागर ढूंढें 
हरकारा 

निर्मोही रे
आस जगाये
सांस बुझाए 
इकतारा 

निर्मोही रे
रीत निभाए
प्रीत भुलाए
आवारा 

निर्मोही रे
गंगा तीरे  
बहता जाए 
बंजारा

20 comments:

  1. nahi. ? ka matlab aawaz kahan hai ?

    baanki bahut khubsurat !

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  2. निर्मोही रे
    पढ़ ले ये कविता
    मोह टूट जायेगा
    मोक्ष मिल जायेगा रे

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  3. wah bahut sunder shabdo ka prayog...!!

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  4. wah bahut sunder shabdo ka prayog...!!

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  5. कल 12/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. 'निर्मोही' को बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है आपने.
    भावपूर्ण अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

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  7. बहुत खुबसूरत! Loved it!

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  8. do u charge for online tutorials??? havent been able to write in months...and u come out with such beauties everyday...not fair

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  9. यह शब्द संयोजन बड़ी सरल और मधुर गेयता से भरा है। स्वयं गाकर या किसी से गवाकर देखिये।

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  10. प्रवीण जी... इसे गा के रिकोर्ड किया था पर झिझक से खुद को उबार नहीं पायी और blog पर पोस्ट नहीं किया...शायद किसी दिन और :) ये पंक्तियाँ धुन के साथ ही आई थीं...पहले धुन आई या पहले शब्द कह नहीं सकती.

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  11. निर्मोही की सर्वग्राह्य परिभाषा, निर्झर काव्य में ढल गई . माँ आल्हादित हुआ . आभार

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  12. वाह ...बहुत खूब ।

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  13. बहुत खूबसूरत संयोजन.

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  14. शब्दों का सुन्दर प्रयोग किया है आपने.

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  15. thode shabdon mein sundar kavita

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