22 June, 2011

जिनसे बिछड़ना था उनसे मिलते रहे





खत जिनके जवाब आने थे, मैंने लिखे नहीं...जिनसे बिछड़ना था उनसे मिलते रहे...तुम्हारे शहर में गिरवी रखा था खुद को कि जब्त हो कर भी शायद तुमसे मिलता रहूँ...

इक अजनबी शहर में शाम गुजारते हुए..आज भी समझ नहीं आता कि धोखा किसने दिया...शहर ने...जिंदगी ने...
या तुमने.

8 comments:

  1. कौन किस पर, कौन पागल,
    सूर्य किरणें और बादल,
    एक तपता, एक छिपता,
    एक ऊर्जा, एक आँचल।

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  2. मुई जिंदगी को कित्ते हिसाब चुकाने है !

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  3. ब्लॉग खोलते ही आपका मैं तो दो मिनट तक बस ब्लॉग का टेम्पलेट और हेडर फोटो देखते रह गया...बेहद खूबसूरत..आवसम :)

    बाकी इस पोस्ट पे इतना ही,
    पढता हूँ बाकी के कुछ पोस्ट्स भी..:)

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  4. Na jane ham kyonkar itne dhoke kha jate hain?

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  5. adbhut ...!!jeevan ki kitaab ..bahut mushkil hai ....!!

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  6. क़तरे में दरिया होता है
    दरिया भी प्यासा होता है
    मैं होता हूं वो होता है
    बाक़ी सब धोखा होता है

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  7. तेरे अंदाजों का कायल कौन न हो
    पागल बनाते हैं, अफसोस भी जताते हैं

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  8. .बेहद खूबसूरत..

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