26 May, 2011

सो माय लव, यू गेम?

मंजिल होना कैसी त्रासदी है...कि यहाँ से कहीं और राहें नहीं जाती जहाँ मैं तुम्हारे साथ चल सकूँ. चकित करने की बात ये भी है कि मंजिल किसी सागर किनारे शहर नहीं है जैसे कि मुंबई, या कि मद्रास जहाँ स्टेशन नहीं होते टर्मिनस होता है. सारी पटरियां वहां जा के ख़त्म हो जाती हैं...मैं और तुम चलती रेलगाड़ियाँ तो नहीं हैं न कि टर्मिनस आने पर रुकें कुछ देर...जैसे जिंदगी बसती है और फिर वापस उन्ही रास्तों से दूसरी मंजिलों की और चल पड़ें...या कि हमारा रुकना ही क्यूँ जरूरी है.

मंजिलें तो पुरानी सदियों की खोज हैं न जब नौकाएं नहीं बनी थीं, हवाईजहाज़ नहीं थे...तब जब कि पता भी नहीं था कि धरती गोल है या सपाट कि अगर मेरे 'तुम' की तलाश में क्षितिज तक जाना चाहूँ तो शायद धरती से गिर जाऊं अनंत अन्तरिक्ष में...तब ये भी कहाँ पता था कि धरती हमें यूँ ही गिर नहीं जाने देगी...गुरुत्वाकर्षण की खोज भी कहाँ हुयी थी तब. ये मंजिल उस सदी में हुआ करती थी रास्ते का अंत....घर, परिवार, समाज. 

आज क्या जरूरी है कि ज़मीं के छोर पर मैं रुकूँ...क्यूँ न नाव के पाल गिरा...चाँद का पीछा करते सागर पर रास्ते बिछा दूँ....या कि अतल गहराइयों में उतर परदे हटाऊं...गहरे अँधेरे समंदर के बीच कहीं नदियाँ ढूँढूं...पाऊं...गरम पानी की नदियाँ जैसे अन्तः करण का मूक विलाप.

कौन से सफ़र पर निकल जाऊं जिधर रास्ते न हों...पैरा-ग्लाइडिंग, हवा के बहाव पर उड़ना...पंछी जैसे, धरती पर छोटा होता सब देखूं और जब महज़ बिंदु सा दिखे कुछ भी 'होना' वहां से तुम्हारे साथ एक रिश्ते की कल्पना करूँ...एक बिंदु से फिर रास्ते बनाऊं...और तुम्हारे संग चल दूँ...किसी तीसरी दुनिया के किसी अनजाने सफ़र पर. 

सो माय लव, आर यु गेम?

15 comments:

  1. .एक बिंदु से फिर रास्ते बनाऊं...और तुम्हारे संग चल दूँ...किसी तीसरी दुनिया के किसी अनजाने सफ़र पर.

    Kitna suhana hoga aisa safar! Kitnee kavyatmak hai ye kalpana!

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  2. जिन्दगी को टर्मिनस बनाने की चाह जीवन को गतिहीन बना देती है। किनारे भी लहरों द्वारा बार बार कचोटे जाते हैं, साथ बह चलने के लिये।

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  3. बादल सरकार की पंक्तियां हैं-
    तीर्थ नहीं है केवल यात्रा
    लक्ष्‍य नहीं है केवल पथ ही
    इसी तीर्थ पथ पर है चलना
    इष्‍ट यही गंतव्‍य यही है.

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  4. shuru karo udnaa... behti si rachna

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  5. बहुत सुन्दर्।

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  6. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (28.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  7. आप गध्य में कविता करती हैं...वाह...बेजोड़ लेखन

    नीरज

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  8. मुझे पसंद है तुम्हारा इस तरह लिखना ....ऐसा लिखना विविधता देता है .रेंज को ओर बढाता है .....

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  9. ब्लैकबेरी OS6 में पहले Indic support और हिन्दी इनपुट चुन लीजिये। ब्लैकबेरी में कीपैड की मैपिंग है बड़ी सरल है, Alt+Enter से भाषा बदल सकते हैं। दो दिन के बाद हाथ अभ्यस्त हो जायेगा।

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  10. शुक्रिया प्रवीण जी. कर के देखती हूँ.

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  12. accha likthi hai pooja ji
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  13. Bahut sunder likha hi pooja ji.
    likhate rahiye.

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