04 February, 2011

कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है

ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है

तुम्हें मालूम कहाँ रात के टूटे वो पहर
कि आधी नींद लेके बदगुमान थे बहुत हम
जब कि ख्वाब में भी तुमने हाथ छोड़ा था
कि आधे जागने में भी मुझसे दूर थे बहुत तुम

हाँ वो बातें ही थी, कोरी ख्याली बातें थी
बस तुम कहते थे तो लगता था सच से रिश्ता है
तुम कहा करते थे मैं खूबसूरत हूँ बहुत
ये भी तो कहते थे इश्क हमेशा सा होता है

तुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
मुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ


ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है

21 comments:

  1. ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
    क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है

    gazab ka khyaal.

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  2. pooja ji - aap bahut hi acchi abhivyakti karti hain - dil ko choo jaati hain aapki rachnaein....

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  3. गहरा सागर
    भार बहुत
    अब पड़ता है,
    क्या होता है,
    बिन्दु अकेला.
    दिख जाने को लड़ता है।

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  4. जो बूंद भी नहीं बन पाता, वही रिसता है.

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  5. ''खुदा की देखो यह कैसी कुदरत,
    उनको देखे हो गई एक मुददत।''

    अच्‍छी रचना।

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  6. ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
    क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है

    wahhh...!!! totally awesome....bohot bohot khoobsurat nazm likhi hai yaara, tooo good...

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  7. बेहद भावपूर्ण रचना।

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  8. Sou do Brasil adorei seu blog

    Um abraço.

    Carlos

    मैं ब्राजील से हूँ मैं अपने ब्लॉग से प्यार

    एक आलिंगन.

    कार्लोस

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  9. बहुत अच्छी रचना

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  10. बहुत अच्छी रचना

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  11. ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
    क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है....

    उम्दा नज़्म ! आज आपकी कइ पोस्ट्स पढीं… बेहद अच्छी लगीं। फिर लौटूँगा !

    Stay blessed !

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  12. क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या हैतुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
    मुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
    आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
    मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ very nise thought

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  13. ड्राफ्ट में तिरासी पोस्ट्स पड़ी हुयी हैं. wo kab padhne ko milegi

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  14. ड्राफ्ट में तिरासी पोस्ट्स पड़ी हुयी हैं. wo kab padhne ko milegi

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  15. तेरे जख्म अब लगता है कि
    ज़ख़्मों के बस दाग भर हैं
    न दाग तुमसे मिट रहे हैं
    न जख्म उनमें रुक रहे हैं
    तुम्हें रुकने की आदत सी है
    या तुमने बेख्याली में पी है
    जो रिस रहा है रस नहीं है
    तेरा तो जान पर भी बस नहीं है
    कहाँ तक रोओगी रोने का रोना
    अब बस करो बदलो बिछोना
    गम में ही जरा सा हँस-हंसा लो
    इन सूखे फूलों पर ही मुस्करा लो

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  16. भावपूर्ण रचना।

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  17. बहुत भावपूर्ण रचना। धन्यवाद|

    आप को बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ|

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  18. तुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
    मुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
    आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
    मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ

    humm......
    love this one ....puja!

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  19. ^
    |
    same here
    तुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
    मुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
    आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
    मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ

    loved this one.. :)

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