28 December, 2010

मेरी पहली लॉन्ग ड्राइव- अकेले

कोई कहे कि तुम एकदम पागल हो...इसको कॉम्प्लीमेंट की तरह लेना कब शुरू किया पता नहीं, पर अजीब चीज़ें करना, रिस्क लेना, जिनसे डर लगे वही काम करना...जिंदगी को छू के देखना...मौत को धप्पा दे आना इन सब कामों में मज़ा बहुत आता है. नहीं?
मैंने कार ड्राइविंग इस साल की शुरुआत में ही सीख ली थी...लाइसेंस जनवरी एंड में आ गया था. पर उसके बाद से कार चलाई ही बहुत कम है, एक तो कुणाल को डर लगता है तो वो मेन रोड पर हमको देता ही नहीं है...उसको टेंशन ही इतनी होती है. चेहरा देखने लायक होता है उसका, पूरा ध्यान उसका सड़क पर, और मैं गप्पें मारती चलती हूँ. अभी शनिवार रात को एक मित्र को मराथल्ली ड्रॉप करना था, रात के कोई एक बज रहे थे. गाड़ी मैं ही चला के ले गयी, कभी कभी ज्यादा जिद करने पर और रात को चूँकि सड़कें खाली रहती हैं तो कुणाल चलाने दे देता है हमको. लगभग ऊँगली पर गिन सकते हैं कि कितनी बार गाड़ी मैंने चलाई है साल में. 
कल दोपहर से ही खुराफात सूझ रही थी मुझे, ऑफिस जाने के पहले दोनों चाभियाँ ले कर उतरी थी...बाइक की भी और कार की भी. मेरे घर में पार्किंग से कार निकाल पाना बहुत मुश्किल है...अपार्टमेन्ट के दो गेट हैं...पीछे वाले गेट में अक्सर बहुत सी गाड़ियाँ लग के रास्ता ही ब्लोक रहता है वरना उस गेट से गाड़ी निकलना एकदम आसान है. थोड़ा सा रिवर्स करो और बस सीधे सड़क पर. वहीं सामने वाले गेट से निकलने के लिए बहुत आड़ा टेढ़ा करके निकालना पड़ता है. पिछली बार कोशिश की थी तो मिरर पर स्क्राच लगा दिया था. इतना रोना आया था कि मत पूछो.

ऑफिस जाने टाइम तो नहीं जा पायी कि रास्ते में बहुत गाड़ियाँ थी...वापस आई, कुक से खाना बनवाई फिर सोच रही थी कि कल व्हाईटफील्ड में मीटिंग है, बाइक से १८ किलोमीटर कुछ ज्यादा हो जायेंगे. कार से जा पाती तो कितना अच्छा रहता. भगवान का नाम लिया और दिल में कहा 'बेटा चढ़ जा सूली पर, जो होगा देखा जाएगा' अब सोचती हूँ तो हँसी आती है. बेसमेंट में पहुंची तो फिर से बाइक लगी हुयी थी कार के आगे...दरबान भी बेचारा देख रहा था कि मैं रोज कार की चाभी लिए आती हूँ और फिर जाती कहीं नहीं हूँ. तो उसने सामने से बाइक हटा दी. मैंने कार पहली बार निकाली अपार्टमेन्ट से बाहर.

गहरी सांसें ले रही थी...और दिल में कह रही थी 'यू कैन डू ईट, कम ऑन पूजा'. डर तो इतना लग रहा था कि दिल लगता था उछल के बाहर आ जाएगा...हाथ एकदम ठंढे पड़ रहे थे, एकदम. पहले तो कार के शीशे उतारे थे सारे ताकि बाहर की आवाज़ सुनाई पड़ती रहे. फिर मैंने हिम्मत की और सारा ध्यान सड़क पर रखा...शुरू के टाइम के कुछ लम्हे मुझे जिंदगी भर याद रहेंगे...सांस अटक रही थी. 'आई कैन डू ईट' के साथ एक और ख्याल भी आ रहा था 'मैं एकदम पागल हूँ' और घड़ी घड़ी सर को हिला रही थी कि मेरा खुद का कोई भरोसा नहीं है. फिर दिल में सोलिड बोल्ड ख्याल आया 'कि क्या होगा हद से हद एक स्क्रैच आएगा कार में, मर थोड़े ना जाउंगी'. बस फिर डर नहीं लगा...और मैंने कॉनफिडेंस के साथ कार चलायी. 

ट्रैफिक वाली सड़कों पर तो कोई चिंता नहीं थी, २० की स्पीड पर क्या खाक होगा...खुली सड़कों पर उफ़ क्या मज़ा आता है. थोड़ा सा रोड खाली मिला नहीं कि आह...रात का समय...दिल में कोई गाना, मस्त सा मौसम, थोड़ा सा डर कि कुणाल को बताये बिना भाग आई हूँ :) किल्लर कॉम्बो होता है...एकदम दिल खुश हो जाने वाला टाइप्स. 

वापस आई तो दोस्त बोले...क्या जमाना आ गया है, अपनी ही गाड़ी ले के भागना पड़ रहा है...भाई हंसा बहुत देर तक पहले फिर बोला 'रे बिलाई क्या सब काम करती है' और जिससे सबसे डर लग रहा था...कि कुणाल जानेगा तो जान मार देगा पर वो कितना प्यारा है उसने बस कहा कि बता के जाया करो :) हम उससे ये भी पूछे कि तुम सोचे थे कि हम ऐसे गाड़ी लेके फरार हो जायेंगे. वो बोला एकदम सोचे थे, हर रोज़ सोचते हैं कि आज घर जायेंगे तो तुम गायब रहोगी. वो मुझे कित्ती अच्छी तरह समझता है :)  No wonder I love him like crazy.

ये थी मेरी पहली लॉन्ग ड्राइव की कहानी...खुद के साथ...और ये पूरी पूरी सच्ची है :)

11 comments:

  1. हा हा हा :)
    चलाते रहिये गाड़ी..हाथ साफ़ हो जाएगा..वैसे बैंगलोर का ट्रैफिक बहुत गन्दा है :)

    पटना में जब अपनी बहन को गाड़ी चलाना सीखाए थे तब वो कभी कभी रोड पे चलती भी थी...और जब वो चलाती थी तब उसको तो कुछ नहीं लगता था...हमको बहुत डर लगता था...कहीं ठोक न दे गाड़ी :) खैर अब तो वो अच्छे से चलाना सीख गयी है...:)

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  2. apni pahli long drive yaad aa gayi...sarkari jeep se shivpuri se bhopal tak 300 k.m. chala kar le gayi thi .uf... bahut hi kharab driving thi..driver pichli seat par baitha ram ram japta raha.

    lekin achcha hua jo tumne akele drive kiya..ab confidence to ekdam badh gaya hoga.

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  3. कहीं सुना था, वही करो जिससे सबसे अधिक डर लगे। मैंने ब्लॉगिंग प्रारम्भ कर सारे ब्लॉगजगत को खतरे में डाल दिया, बंगलोर तो आपकी कार ड्राइविंग को सम्हाल ही लेगा।

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  4. रे चोरनी, क्या क्या करती रहती है रे तुम? अपने घर में चोरी? राम राम!!

    माराथली वाला रोड पर चला ही ली.. अब व्हाईटफील्ड भी जाने ही वाली हो.. अगली बार सिल्क बोर्ड से नयका बला, १० किलोमीटर बला, फ्लाई ओवर(उस पर चलाने में बहुत मजा आता है, बीच में एक जगह बना हुआ है जहाँ कार रोक कर बैंगलोर का नजारा भी ले सकती हो) से सीधा होसूर के लिए निकल जाना.. या फिर माराथली से सीधा हैदराबाद हाईवे पर.. गाडी और जिंदगी चलाने का पहला और अंतिम नियम, कभी किसी भी हालात में डरों मत..

    और सड़क का कन्फ्यूजन हो तो हम हैं ही, बस फोन घुमा लेना.. :D

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  5. प्रशांत बाबु बड़ा जानते हो बैंगलोर के बारे में...
    चेन्नई में रहते हो न जी..:D

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  6. याद करेंगी तो याद आएगा कि ज़िन्दगी के सब काम ऐसे ही किये हैं, प्यार भी...

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  7. @ अभिषेक - बच्चे, जहाँ हाईवे की बात हो वहाँ शहरी बच्चों को नहीं बोलना नहीं बोलना चाहिए.. :P

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  8. @PD...ऊ वाला रोड पर चलाये, कुणाल ले गया था, हाइवे पर भी दूर दूर तक चलाये...बस अकेले नहीं चलाये थे कभी.
    और काहे अभिषेक का टांग खींच रहे हो, कभी चेन्नई में भटके तो रास्ता मत बतलाना बस :)

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