27 October, 2010

ग्रहण


'नहीं नहीं, ये बिलकुल गलत है, चौथ को ग्रहण कभी नहीं लगता, बताओ भला किसी ने देखा है कभी चौथ को ग्रहण लगे हुए...तुमने सुना है कभी?' लाल जोड़े में खड़ी उस खूबसूरत सी लडकी के चेहरे पर दर्द के परछाई गहराती जा रही थी.
'कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हो, वो देखो चाँद तो अपनी जगह चमक रहा है'...'चाँद नहीं मैं तो तुम्हारी...' वो घबराकर पलटी...छत पर काला, गहरा सन्नाटा पसरा था और वो एकदम अकेली खड़ी थी.
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जीने की सारी कोशिशों के बावजूद तुम्हारे जाने के तीन साल, छः महीने और चार दिन बाद वो मर गयी. उसका आखिरी सवाल था 'मैंने करवाचौथ में कभी कोई भूल नहीं की...तुम मुझसे पहले कैसे रुखसत हो सकते हो?'

9 comments:

  1. दिल दहलाने वाला था ये....

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  2. मूक कर गयी पोस्ट....

    क्या कहूँ ???

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  3. बहुत मार्मिक कहानी है| धन्यवाद|

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  4. शब्द विहीन हो गए.

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  5. कहने को कुछ भी नहीं बचा पास में!

    http://draashu.blogspot.com

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  6. क्या कहूँ ..... पढ़ा और खो सा गया...

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  7. बस अपना एक कलीग याद आया जो बस दो हफ़्ते पहले एक सड़क हादसे का शिकार हो गया था..तीन साल पहले शादी हुई थी..सोच रहा हूँ कि उसकी बीवी, जो अभी उम्मीद से है, इस चौथ पर क्या सोच रही होगी इन सात जन्मों की कसमों-वादों के बारे मे..
    ..बड़ी कम्बख्त है जिंदगी भी!!

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  8. नि:शब्द कर गयी यह पोस्ट ...

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