19 October, 2010

भोर का राग

तुम जब मुझे 'कहाँ गयी रे? लड़की!' बुलाते हो तो अक्सर याद आता है कि पापा भी ऐसे ही मम्मी को बुलाते थे...और ऐसे ही हमको भी...पापा की एक आवाज पर हम दोनों भागते पहुँचते पापा के पास. अक्सर सुबह का वक़्त होता और पापा पेपर पढ़ते हुए कुछ पन्ने गायब पाते थे, और जाहिर है घर में कुछ नहीं मिल रहा है तो या तो हमको मिलेगा या मम्मी को. पापा को खुद से तो कभी कुछ मिल नहीं पाता था.

कल-परसों घर पर बात हुयी थी, घर में सब तुम्हें 'मेहमान जी' कहकर बुलाते हैं वैसे में जब कोई पूछे कि 'वो कैसे हैं आजकल? तुम्हारा ख्याल तो रखते हैं ना?' इसपर मैं तुम्हें 'तुम' नहीं कह सकती. कहना होता है कि 'वो बहुत अच्छे हैं और मेरा बहुत ध्यान रखते हैं'. ऐसा कहते हुए अनायास कभी तुम्हें 'तुम' से 'आप' तक अपग्रेड करने का मन करता है. देखती हूँ जैसे साथ की कुछ और लड़कियां कहती हैं, कुछ तुम्हारे दोस्तों की बीवियां, कुछ मेरी फ्रेंड्स कि 'वो अभी तक ऑफिस से नहीं आये...आजकल काम थोड़ा बढ़ गया है ना, तू सुना कैसी चल रही है लाइफ?' तो अनायास सोचती हूँ कि इस 'आप' में अपनापन हो जाता है, अधिकार हो जाता है.

याद पड़ता है कि शादी के शुरू कुछ दिन में ससुराल में एक दो बार कोशिश की थी, 'सुनिए जी' कहकर बुलाने की...मगर तुम इससे सुनोगे तब ना. जब तक तार सप्तक के सुर में 'रे' नहीं लगाते थे तुमको लगता ही नहीं था कि हम तुमको बुला रहे हैं. घर के देवर-ननद सबको छोटे भाई बहनों की तरह शुरू से धौल-धप्पा दौड़ा-दौड़ी लगा रहा...जैसे भाई से बात करते थे वैसे ही छोटे देवरों से करने लगे, कोई फर्क लगा ही नहीं कभी...तुम्हारे घर में किसी की बड़ी दीदी नहीं रही कभी शायद इसलिए भी सबने वो खाली जगह बड़े प्यार से भाभी को दे दी और मुझे कुछ छोटे भाई और मिल गए और एक इकलौती लाड़ली ननद. पर सच में मेरा इन रिश्तों पर कभी ध्यान ही नहीं गया...सब अपने घर के बच्चों से लगे. और पार्शिअलिटी कहाँ नहीं होती...आकाश को हम सबसे ज्यादा मानते हैं.

कहाँ से कहाँ पहुँच गए(युंकी मुझे फालतू बात करने की आदत तो है नहीं ;) ) थोड़ी कन्फ्यूज हो रही हूँ...अपने घर में तुमको 'आप' बुलाऊंगी तो तुम सुनोगे कि नहीं. कहते हैं ना इन्सान को जो नहीं मिलता उसकी खूबसूरती दिखने लगती है...पहले मुझे अरेंज मैरेज समझ ही नहीं आता था...अब जब कुछ लोगों को देखा है तो अधिकतर को लड़ते ही पाया है...मगर जो कुछ लोग हैं उनके रिश्ते देख कर लगता है कि जोड़ियाँ  सच में ऊपर से बन के आती हैं.

सुबह सुबह उठना नहीं चाहिए...आधी नींद में सपनाने लगते हैं. आज इस बड़बड़ाने को यहीं बंद करते हैं...फिर कभी जब भोर को उठेंगे तो आगे लिखेंगे.

25 comments:

  1. pooja bahut badiya...........itnee sahjata se likh letee ho..
    hum to ghar me aap wale hee hai.............ek generation ka gap jo hai..........
    mai bhee Bangalore me hee hoo.....kabhee mil sakte hai............
    bujurgo se parhez to nahee hai na...?

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  2. सच आपकी दोनों बातें ही सही हैं .
    ...पहले मुझे अरेंज मैरेज समझ ही नहीं आता था...अब जब कुछ लोगों को देखा है तो अधिकतर को लड़ते ही पाया है...मगर जो कुछ लोग हैं उनके रिश्ते देख कर लगता है कि जोड़ियाँ सच में ऊपर से बन के आती हैं
    -विजय तिवारी " किसलय " जबलपुर // हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर

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  3. यह राग भी अच्छा लगा. 'तुम' से 'आप' अथवा 'वे' अपग्रेड करना कभी कभी मजबूरी भी होती है.

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  4. युंकी आपको फालतू बातें करने की आदत बिलकुल नहीं है.. ;)
    वैसे ये बड़बड़ाना आपका मस्त लगा..

    सुबह सुबह हमारा भी मूड बन ही गया :)

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  5. @अपनत्व...आपका ईमेल ढूँढने की कोशिश कर रही थी, नहीं मिला...बुजुर्गों से परहेज क्यों, उनसे तो कितना कुछ सीखने को मिलता है...एक उम्र जीने के बाद के अनुभव अमूल्य होते हैं. कुछ साल पहले इस अनुभव की उतनी समझ नहीं थी...पर अब ज्यादा महसूस करती हूँ कि कैसे बड़ों की कही हर बात सही होती थी, होती है. आप मुझे clovesncinnamon@gmail.com पर अपनी ईमेल आईडी मेल कर दीजिए. बाकी बातें वहीँ कर लेते हैं :)

    @सुब्रमनियम जी...हमारे लिए तो मजबूरी नहीं है, ओप्शन है...समय के साथ साथ पसंद भी बदलती है, जिन चीज़ों को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे, अच्छी लगने लगती है. तो बस सोच रही हूँ कि अपग्रेड किया जाए :)

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  6. लड़की आज तो सेंटी हो गयी रे..

    और ये क्या..? बाल भी कटवा दिए 'आप' के तो..

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  7. बाल, दाढ़ी सब कटवाए हैं बड़ी मुश्किल से, इनको राजी करना कोई आसान बात थी...पर हुआ ये न कि इनके जिन डिम्पल पर हम फ़िदा हुए थे वो नज़र नहीं आते थे...तो फ़िदा होने को maintain करने के लिए ये मेकओवर करवाना पड़ा :D

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  8. bahut saara pyar umadta hai tumhari baato par.... GOD BLESS YOU...!!

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  9. अब बिहार कम दिल्ली वाले अपनी पे आ जाये तो गर्दन कटवा दे किसी की भी.. बाल तो फिर भी कम है..
    अब कुछ दिन डिम्पल को सिंपल ही रखो..

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  10. इस देश में पत्नियाँ पति को क्या बुलाती हैं, इस पर एक पूरा पुराण लिखा जा सकता है।

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  11. Hearties congratulations for your wedding...sab padhkar bahut achcha sa laga...feel good types :-)

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  12. अरे नाम ले कर क्यों नहीं बुलाती।

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  13. जिसे प्यार करो उसे आवाज़ देकर बुलाने कि ज़रूरत भी पड़ती है क्या? फिर क्या 'तुम' और क्या 'आप'! बस दिल की गहराइयों में उसे याद कर लीजिये, और किसी चीज की जरुरत ही नहीं.
    आपकी देवर-ननद वाली बात बड़ी बढ़िया लगी. थोड़े दूर के ही सही आपके देवर तो हम भी लगते हैं. :)
    आपकी तस्वीर भी बड़ी प्यारी लगी.........भगवान् भैया-भाभी को ढेर सारा प्यार दे!!!

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  14. सचमुच कभी कभी तो यह आसन सी स्थिति भी बड़ी मुश्किल लगाती है... क्या बुलाएँ...? कैसे बुलाएँ...?

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  15. भींजे रे चुनरिया प्रेमरस बूँदन

    शीर्षक भी बहुत अच्छा लगा।

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  16. कुलांचे मारता भीतर का आनंद यूँ ही बना रहे ...शुभकामनायें ...!

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  17. .

    " ज़रा सुनते हैं जी ईईईईईईईईईईईई..."

    .

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  18. सुबह सुबह उठना नहीं चाहिए...आधी नींद में सपनाने लगते हैं. आज इस बड़बड़ाने को यहीं बंद करते हैं...फिर कभी जब भोर को उठेंगे तो आगे लिखेंगे.


    क्या बात है आपका बडबडाना इतना खूबसूरत है तो पता नहीं जब बात करते समय क्या होता होगा ! उफ़ बहुत ही जल्दी ख़तम हो गया, काश कुछ और चलता ! दिल नहीं भरा ! सच में ! बहुत खुशकिस्मत हैं आपके "वो"

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  19. तुम्हारी ये सपनीली बातें...न जाने कहाँ कहाँ ले गयीं....
    बड़ा अच्छा लगा...
    थैंक्स

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  20. @Aashu, कुणाल ने बताया है तुम्हारे बारे में...कभी आओ बंगलोर, अच्छी जगह है. वैसे हमलोग दीवाली पर देवघर आ रहे हैं, पटना जाने का प्रोग्राम भी बनेगा. मिलते हैं :)

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  21. जरूर! पटना आइये तो जरूर मिलिएगा. बंगलौर आना हुआ था मेरा मार्च में मगर कम दिन के कारण किसी से मिल नहीं पाया......कभी न कभी मिलेंगे जरूर!

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  22. 'सुबह सुबह उठना नहीं चाहिए...आधी नींद में सपनाने लगते हैं'..... भोर का सपना तो सच होता है.

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  23. bahut kamaal likha hai aapneeeee......

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  24. इस पोस्ट को लिखे एक साल होने को आया. कुणाल जी के बाल फिर बड़े हो गए होंगे ? हमारे तो हैं ही नहीं बढ़ाएंगे क्या. होते तो कुणाल से भी बड़े रखते ...इतने कि लोगों को केवल आँखें भर दिखतीं चमकती हुईं बस्स ...l ( यह टिप्पणी कुणाल को भी पढ़वा देना ) बड़ा शौक था बालों का मगर हम तो गंजे हैं...क्या करें ..
    हमारे बोलने और सोचने के बीच प्रायः इनकोओर्डिनेशन हो जाता है नतीज़तन जितनी ज़ल्दी सोच लेते हैं उतनी ज़ल्दी बोल नहीं पाते तो जब उन्हें बुलाना होता है और शब्द नहीं मिलते तो कुछ भी पटक-पटक कर शोर करने लगते हैं. वो दौड़ी आती हैं...क्या हुआ ? कुछ नहीं तुम्हें बुलाना था ...समझ नहीं आया क्या कह के बुलाएं.....
    वैसे पूजा जी ! वो नदिया के पार वाला गाना याद है न !
    नाम न लें तो क्या कह के बुलाएं ...कैसे चलायें काम हो .......

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