01 September, 2010

जाना...लौटना

होना कुछ नहीं होता...एक पर्दा है, रेटिना कह लो...उसपर जो चित्र बनते हैं वही हमारा सच हो जाता है...हम कभी जवाब तलब नहीं करते...कि इस सच के पीछे क्या कुछ है.

मेरी रेटिना पर पतली, बिलकुल महीन धारियां पड़ी हुयी हैं...पुराने जख्मों के निशान जैसी...मैं जब भी अपनी कलाइयों को देखती हूँ मुझे खून रिसता नज़र आता है, हालाँकि जख्म बहुत पुराने हैं और उनके भरने के निशान रेटिना पर भी पक्के उकेरे गए हैं. मैंने जब भी मर जाना चाहा है मेरी रेटिना पर एक पतली रेखा उभर आई है. हालाँकि अभी इनकी संख्या कम है इसलिए मेरा दुनिया को देखने का नजरिया कुछ बचा हुआ है, मेरी जिंदगी जीने के पहले और मरने के बाद में नहीं बँटी हुयी है.

मुझे लगता है कि मरने के लिए कच्ची उम्र में मेरी आँखों को बस धारियां दिखेंगी और कलाइयाँ टीस उठेंगी...वो एक ऐसा दौर होगा जब ब्लेड बनने ही बंद हो जायेंगे. मैं कितना भी कहूँ कि मेरी  कलाइयाँ कटी हुयी हैं कोई इलाज नहीं होगा क्योंकि ना सिर्फ उनका दर्द मेरे अलावा किसी को महसूस होगा बल्कि उनका काटना भी बस एक पतला निशान होगा...रेटिना पर.

मेरे सपने फिल्मों के रूप में अमर हो चुके होंगे...दर्द बड़े परदे पर उभर आएगा....और सिनेमाहाल के बिना चेहरे वाले अँधेरे में लोग सीटी बजायेंगे...लड़कियां बिना कन्धों के सुबकेंगी और मुझे कोसेंगी, जैसे मैं कोसना चाहती थी 'पचपन खम्बे लाल दीवारें' पढ़ कर. हर कोई सोचेगा कि इतना गहरा दर्द कोई 'सोच' कैसे सकता है...खुशकिस्मत लोग दर्द को जीना नहीं जानते.

किसी जाड़ों की सुबह मैं चाहूंगी कि तुम मेरा हाथ थामे रहो...और मैं आँखें बंद कर सकूँ...कि रौशनी चुभती है. तुम जैसे सड़क पार कराते वक़्त मेरी कलाई थामते हो...छोटे बच्चे की तरह...वैसे ही मेरी कलाई थामना...जब कलाई नहीं दिखती है तो रेटिना पहले की तरह हो जाती है...ऐसे में सारी बारीकियां दिखती है...जैसे कि तुम्हारी आँखों में मेरा चेहरा...प्यार में डूबा हुआ...जीवन से लबालब भरा हुआ.

और ऐसा थोड़े हुआ है कभी...कि मैं तुम्हारा हाथ छुड़ा के गयी हूँ...लौट आउंगी फिर...फिर.

9 comments:

  1. अच्छी अच्छी चीजें देखो तो रेटिना पर वही आयेंगी अच्छा सोचो भी ।

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  2. अनुभव धारियाँ बन दृश्य पर चढ़ता जाता है। कभी अश्रु से, कभी क्रोध से, कभी क्षोभ से तो कभी एकान्त में ये धारियाँ पीड़ा देने लगती हैं।

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  3. कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  4. और ऐसा थोड़े हुआ है कभी...कि मैं तुम्हारा हाथ छुड़ा के गयी हूँ...

    आगे एक गहरा मौन, अपने को भीतर की ओर खींचता हुआ. मैं अवसन्न हूँ, पराजित हूँ कि पूर्ण हूँ ?

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  5. सबसे पहले तो आप व् आपके परिवारवालों को
    श्री कृष्ण जन्मास्टमी की शुभकामनाएँ

    मुझे आपकी पोस्ट पढ़कर ऐसे लगता है
    जैसे में किसी क्लासिकल लेखक को
    पढ़ रहा हूँ . जो मुझसे सहमत न हो
    तो वो ये समझे कि, क्लासिकल लेखक
    कौन होता है, शायद ये मुझे नहीं मालुम.

    फिर इन दो पंक्तियों को पढ़े ........
    मेरे हिसाब से ये पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर, बहुत ही ख़ास है.

    जैसे कि तुम्हारी आँखों में मेरा चेहरा...प्यार में डूबा हुआ...जीवन से लबालब भरा हुआ.
    और ऐसा थोड़े हुआ है कभी...कि मैं तुम्हारा हाथ छुड़ा के गयी हूँ...लौट आउंगी फिर...फिर.

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  6. सबसे पहले तो आप व् आपके परिवारवालों को
    श्री कृष्ण जन्मास्टमी की शुभकामनाएँ

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  7. इसपे क्या टिपण्णी करूँ? speechless

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  8. हमें तो एक बहुत ही पुराना फ़िल्मी गीत याद आ गया "खयालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते"

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