27 July, 2010

कहवाखाने का शहज़ादा

यमन देश के एक छोटे से प्रान्त में एक कहवाखाना हुआ करता था. रेत के टीलों में दूर देश के मुसाफिर जैसे पानी की गंध पा कर पहुँच जाते थे. एक छोटा सा चश्मा उस छोटी सी बस्ती को जन्नत बनाये रखता था. बस्ती से कुछ ही दूर समंदर शुरू होता था, इस अनोखी जगह को लोग खुदा की नेमत समझते थे. व्यापारी यहाँ मसाले, हीरे, पन्ने , कई और बेशकीमती जवाहरात और महीन रेशम की बिक्री करने के लिए आते थे. जिंदगी को खूबसूरत बनाने वाली ये चीज़ें मुंहमांगे दाम पर बिकती थीं.

बस्ती का कहवाखाना किस्सों की एक चलती फिरती तस्वीर हुआ करता था. कई देशों की तहजीबें, अलग लोग, अलग रहन सहन, किस्सों का अलग तरीका...यूँ तो किस्से तरह तरह के होते थे, सुल्तानों के, कर ना दिए जाने पर ढाए सितम के, पर किस्से का खुमार बस एक ही...इश्क.

शाम ढलते ही कई रंग घुल जाते थे समंदर से आती हवाओं में और रुबाब गाने लगता था. कहवाखाने के दो कोने में मोम पिघलता रहता था पूरी रात...समंदर की नमकीन हवाओं में थिरकती लौ में एक उन्नीस साल का लड़का किस्से कहता था. उसकी आँखें नीली और पारदर्शी थी, जब रुबाब छेड़ता तो उड़ती रेत उसके किस्से एक दर्द की धुन में छुपा कर नीलम के एक ऊंचे कंगूरे तक पहुंचा देती थी. अगली सुबह जब पर्दानशीनो का जुलूस बाग़ के लिए निकलता था तो बिना हवा के भी एक नकाब खुल सा जाता था और सुनहली आँखें उसकी नीली आँखों पर थिरक उठती थीं. सहर की धूप समंदर की लहरों को छू कर ऊपर उठती थी. एक अगली रोज के लिए.

साल के जलसे पर एक रूहानी गीत के गाया गया, इश्क के इन्द्रधनुषी रंगों को समेटे हुए...एक हसीना का नकाब हलके से सरका और नीली और सुनहली आँखों ने सदियों के बंधन क़ुबूल लिए.

अगली सुबह समंदर का नीला पारदर्शी गहरा लाल होता जा रहा था. लहरें, किनारे, आसमान...सब कुछ लाल...कत्थई और धीरे धीरे सियाह हो गया.

कहते हैं उस रात पूरी बस्ती रेत में मिल गयी...आज भी रेगिस्तान में भटके लोगों को पानी का छलावा होता है. रात को चलते कारवां अक्सर एक रूहानी गीत की तलाश में भटक जाते हैं.

इश्क तब से जाविदा है. और इश्क करने वाले... फ़ना

11 comments:

  1. बहुत ही अलग शिल्प में लिखा है. एक ऐसा तरीका जो बहुत आकर्षक है, पढते हुए लगा कि जैसे पृष्ठभूमि में अरबी या पर्शियन गाना भी चल रहा हो, कुल मिला कर मूड रूमानी सा हो गया था... किन्तु अंत ऐसा होना ही था, यह वाजिब है.


    कहानी में नशा सा है शुरू में आनंदित करती हुई और बाद में निराश करती हुई पर पूरे समय बांधे रखती हुई सफल होती है.

    एकबारगी तो यह भी लगा जैसे अलिफ़ लैला का कोई एपिसोड देख रहा हूँ या फिर डीडी उर्दू पर किसी चाशनी भरे आवाज़ से वोईस ओवर सुन रहा हूँ.

    ReplyDelete
  2. ऊँचाई पर चढ़ने के जज़्बे गिरने का दर्द छिपा रहता है।

    ReplyDelete
  3. "इश्क तब से जाविदा है. और इश्क करने वाले... फ़ना"
    सुनहली आखों ने सदियों के बंधन क़ुबूल कर लिए.....कहानी का बड़ा प्यारा प्लाट तैयार किया. प्रतीकों के माध्यम से अच्छी रचना कर डाली है आपने....!

    ReplyDelete
  4. ये उस पुजा से बिलकुल जुदा लिखाई है जो अब तक मैंने पढ़ी है.. यहाँ तुमने इतने धारधार शब्द इस्तेमाल किये है कि मैं तुम्हारी तारीफ़ के लिए शब्द ढूंढ रहा हूँ.. मिल ही नहीं रहे कमबख्त.. कहवाखाना, कंगूरे, पर्दानशी.. वाह क्या लिख दिया है.. इस पुजा से परिचय भी बढ़िया रहा.. ऐसा लगा कि एलिस इन वंडरलैंड देख रहा हूँ..

    ReplyDelete
  5. Achhi-khaasi dimaagi kasrat karne ke baad kahaani samjh aa hi gai.

    नीली और सुनहली आँखों ने सदियों के बंधन क़ुबूल लिए. badi khaas line hai ji ye.....

    ReplyDelete
  6. कहाँ से ये शब्द चुरा कर लायी हो? जो मैंने महसूस किया वह तो सागर ने पहले ही लिख दिया है.. वैसे भी अच्छा ही किया उसने लिख कर, मुझसे तो वैसा लिखना संभव नहीं होता..

    ReplyDelete
  7. नए शब्द, नई शैली, नए प्रयोग ....

    ReplyDelete
  8. गज़ब की कल्पना शक्ति है ..बहुत अच्छी कहानी

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...