17 July, 2010

ख़ामोशी के दोनों छोर पर

एक शोर वाली रात थी वो, एक भागते शहर की एक बेहद व्यस्त शाम गुजरी थी अभी अभी, बहुत सी निशानियों को पीछे छोड़ते हुए. अनगिनत होर्न, आँधियों वाली एक बारिश, अँधेरा सा दिन, सहमा सा सूरज...दर्द की कई हदों को छूते और महसूस करते हुए एक लड़की सड़क के किनारे भीगते हुयी चल रही थी, उसका चेहरा बिजली की चमक में सर्द दिखने लगता था. उसके उँगलियाँ एकदम बर्फ हो गयीं थीं, सदियों में किसी ने उसकी हथेली को चूम के पिघलाया नहीं था. सुनहली आँखें, जिनमें अभी भी कोई लपट बाकी दिखती थी, गोलाई लिए चेहरा मासूमियत से लबरेज. खूबसूरती और दर्द का एक ऐसा मेल की देखने वाले को उसके जख्मों की खरोंच महसूस होने लगे.
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उस रात मैं मर जाना चाहती थी, इतनी बारिश इतना अँधेरा दिन, घर भूला हुआ छाता, यादों का ऐसा अंधड़...तन्हाई का ऐसा शोर. बस स्टाप से घर की दूरी...उसपर हर इंसान की ठहरती हुयी नज़र. इनको क्या मेरी आँखों का सारा दर्द नज़र आता है, इतनी बेचारगी क्यों है सबकी आँखों में...सहानुभूति...जैसे की ये समझ रहे हों हालातों को. नौकरी का आखिरी दिन था आज...ये तीसरी जगह है जहाँ से इसलिए निकाला गया की मैं खूबूरत हूँ. बाकी लोग काम पर ध्यान नहीं लगा पाते. उसने भी तो इसलिए मुझे छोड़ा था क्योंकि मुझे घूरते बाकी लोग उसे बर्दाश्त नहीं होते थे. रोज के झगडे, इतना सज के मत निकला करो, बिंदी तक लगाना बंद कर दिया मैंने...माँ कहती थी काजल लगाने से नज़र नहीं लगती...शायद मुझे नज़र लग गयी है.

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कांपते हाथों से उसने फ़ोन लगाया...एक बार उसकी आवाज सुन लेती तो शायद जिंदगी जीने लायक लगने लगती...फ़ोन पर किसी तरफ से कोई कुछ नहीं बोला...

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घर पहुँचते ही बेटी दौड़ के गले लग गयी. वो लगभग बेहोश हो चुकी थी...आँखें खुली तो सुबह की धूप खिड़की से आ रही थी...उसने देखा बेटी की आँखों का रंग बेहद सुनहला था, उसकी खुद की आँखों की तरह.
जिंदगी फिर से जीने लायक लगने लगी.

10 comments:

  1. हर रात के बाद,
    बरसात के बाद,
    दिन उभरेगा,
    फूल संग में,
    भरसक कोशिश कर डालेंगे,
    पैर बँधे ढेरों झंझावत,
    खींच खींच कर ले जाने को,
    आने वाली उन रातों में,
    रह रह तुमको उकसायेंगे।

    निर्मम हो एक साँस पूर्ण सी भर लो मन में,
    जीवन का आवेश चढ़ाकर, भर लो तन में,
    गूँज रहा अनवरत एक ही स्वर दिगन्त में,
    नहीं दैन्यता और पलायन, इस जीवन में ।

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  2. किसकी कहानी है। दर्द भरा हुआ है।

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  3. हम्म.. नो कमेंट्स..

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  4. बरसात की कुछ बूंदें.. आंखो से छलका एक आंसू और जिंदगी का स्याह सच कुछ इस तरह से मिलेंगे सोचा न था। और क्या लिखूं क्योंकि आप खुद कहती हैं बात की तलाश जारी है

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  5. Puja Ji.. can't say anything special about this particular post right now.

    But one thing is very clear, the way you develop the characters in your story, the way you create curiosity, the way you go ahead with your story, the way you create an environment in your story, and the way you connect your characters with that particular environment as well as with your readers, reminds me some of great story tellers of the past and present. And with all that you have something unique in your writing. Can't tell what is that unique. But I felt that for sure.

    I wish you all the best.
    God bless you.

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  6. Please see
    http://rajubindas.blogspot.com/2010/07/blog-post_19.html

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  7. Viraedra had said very beautifully what i wanted to say!!

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