31 May, 2010

मैसेज इन अ बॉटल

बहुत सालों बाद अकेले सफ़र कर रही थी. बंगलोर से बॉम्बे, फ्लाईट तीन बजे की थी और फिर बॉम्बे जा के साढ़े सात की ट्रेन पकडनी थी नासिक के लिए. वक्त कम था फ्लाईट लैंड करने और ट्रेन के छूटने में. ऐसे में समय जितना बच सके. अधिकतर फ्लाईट थोड़ा बहुत लेट हो ही जाती है. तो मैंने सोचा कि सामान सारा हैण्ड बैगेज में ही ले लूं. ट्रोली थी तो कोई चिंता नहीं थी, घुड़काते हुए ले जा सकती थी. 

फ्लाईट बोर्ड करने के लिए सारे लोग लाइन में लग चुके थे, जब मैंने उसे पहली बार देखा. उसमें कुछ तो था जो पूरी भीड़ में वो अलग नज़र आ रहा था. ऐसा होता है कि कई लोगों के बीच आप एक चेहरे पर फोकस हो जाते हैं, और अचानक से लोगों के बीच बार बार उसपर नज़र पड़ जाती है. सांवले रंग का, लगभग ५'११ के लगभग लम्बा होगा...पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि मैं उसे पहले से जानती हूँ. कहीं देखा है पहले...एक कनेक्शन सा लगा. ये भी लगा कि वो आर्मी या एयर फ़ोर्स में रहा है. उसकी आँखों के पास चोट का निशान था, कालापन था आँखों के इर्द गिर्द. उसने शोर्ट्स डाल रखे थे और बैग्पैक लेकर कतार में खड़ा था.

मैं सोच ही रही थी कि कहाँ देखा है पर याद नहीं आया. बस में चढ़ते वक़्त उसने सनग्लास्सेस लगा लिए थे...बस आई, हम चढ़े...और फिर प्लेन पर चढ़ी. मेरी सीट आगे से दूसरे नंबर पर ही थी. मेरा बैग थोड़ा ज्यादा भारी हो गया था और कोशिश करने पर भी अपने सर के  ऊपर वाले कम्पार्टमेंट पर नहीं डाल पा रही थी मैं. मैंने गहरी सांस ली और सोचा कि एक बार चढ़ा ही दूँगी...उस वक़्त कई लोग और भी चढ़े थे फ्लाईट पर, मेरे रस्ते में खड़े होने से जाने में दिक्कत भी हो रही होगी सबको पर किसी ने एक मिनट रुक कर नहीं कहा कि मैं चढ़ा देता हूँ. और किसी से मदद माँगना शायद मेरी शान के खिलाफ होता...पता नहीं, पर किसी से मदद मांगने में मुझे बड़ी शर्म आती है. 

सोचा तो था कि फ्लाईट अटेंडेंट होते हैं, उनको कह दूँगी, पर कोई दिखा नहीं...तो सोचा खुद ही करती हूँ. जैसे ही बैग उठाया, पीछे से आवाज आई, कैन इ हेल्प यू , मैंने बिना मुड़े कहा...यॉ प्लीज और मुड़ के देखती हूँ तो देखती हूँ वही है जिसे देखा था अभी थोड़ी देर पहले. एक सुखद आश्चर्य हुआ और अच्छा लगा...मेरे थैंक यू बोलने पर उसने एकदम आराम से मुस्कुराते हुए कहा, चीयर्स :) बात छोटी सी थी, बहुत छोटी पर मुझे बहुत अच्छा लगा. 

भले लोगों से कम ही भेंट होती है, पर जब होती है बड़ा अच्छा लगता है. जैसे जाड़ों के मौसम में कॉफ़ी से गर्माहट आ जाती है, वैसे ही कुछ अच्छे लोगों से मिल कर जिंदगी खुशनुमा सी लगने लगती है. उस अजनबी और उसके जैसे और लोग जिन्होंने मेरी मदद की है, उनसे कुछ कहने के लिए मैंने एक टैग बनाने कि सोची है "message in a bottle" जानती हूँ ये लोग कभी आके मेरा ब्लॉग नहीं पढेंगे पर ये मेरा तरीका है शुक्रिया बोलने का. 

"दोस्त, मैं तुम्हें जानती नहीं, पर तुम्हारी एक छोटी सी मदद से काफी देर मुस्कुराती रही मैं...शुक्रिया". 
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इन्टरनेट पर एक साईट है जहाँ आप जाकर अजनबियों के लिए अपने मैसेज छोड़ सकते हैं, मुझे काफी अलग सी लगी ये साईट. मुझे लगा कि ऐसी किसी चीज़ की सच में जरूरत है. आप भी देख आइये, किसी को कुछ कहना है तो कह दीजिये. साईट का नाम है -ब्लॉक, आई सॉ यू देयर...एंड आई थॉट यानि मैंने तुम्हे देखा और सोचा. देख के आइये :)

10 comments:

  1. मुझे लगता है ऐसे कई उधार लगभग सभी पर होंगे.... जैसे में कब कोचिंग जाता था तो कोई लिफ्ट देता था बिना मांगे...

    ...और नयी साईट का ख्याल भी अच्छा है.

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  2. वेब साईट के लिए शुक्रिया पूजा ...ऐसा शायद सब के साथ होता है

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  3. कुछ अजनबी बहुत याद आते हैं . काश हम संवाद से न चुके होते... आपको पढ़कर सुखद अनुभूति हुई.

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  4. शुक्रिया..कितना छोटा सा वर्ड है ना ....ओर हम कितने कंजूस होते है

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  5. sach mein is shukriya shabd se kitna sukun milta hai...

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  6. आपका व्यक्तित्व मुझे "जब वी मेट" की करीना के निभाए किरदार की तरह लगता है जो किसी भी विषय मे कितनी भी बात कर सकती है
    और सबसे बड़ी बात की वो बात शुरू से अंत तक रोचक होती है
    आपका क्या कहना है ?
    क्या आप मेरी बात से मुतासिर हैं ?
    और एक आख़िरी सवाल ,,,
    क्या आप भी खुद की फेवरेट हैं ? :)

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  7. @वीनस बात करने के मामले में तो कह सकते हैं, हालाँकि उतना नहीं बोलती पर अच्छा खासा बोलती हूँ, रोचक का भी पता नहीं अधिकतर तो बोर नहीं करती लोगों को. खुद की फेवरिट हुआ करती थी किसी ज़माने में, अब नहीं हूँ.

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  8. आपका व्यक्तित्व मुझे "जब वी मेट" की करीना के निभाए किरदार की तरह लगता है जो किसी भी विषय मे कितनी भी बात कर सकती है
    और सबसे बड़ी बात की वो बात शुरू से अंत तक रोचक होती है

    veenas se meri bhi sehmati hai

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  9. वाह... कुछ दिन पहले मै भी एक ऎसी ही पोस्ट लिखना चाह रहा था.. अब तक के सफ़र मे मिले कई जाने-अनजाने लोग जिन्होने कही न कही से किसी न किसी तरीके से मेरे अबतक के निर्माण मे योगदान दिया है.. उन सबको थैन्क्स बोलना चाह रहा थ.. और आज देखा तो मौतरमा ने क्या गज़ब लिख डाला है.. स्वीट पोस्ट.. और उस बहुत ही प्यारे लिन्क के लिये शुक्रिया..

    "खुद की फेवरिट हुआ करती थी किसी ज़माने में, अब नहीं हूँ."
    काहे हो?

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