06 May, 2010

कन्फ्यूज्ड सूरज







सूरज बादलों में उलझ के
घर जाने का रास्ता भूल गया है
कंफ्यूज्ड सा सोच रहा है
पश्चिम किधर है

जिस पेड़ से पूछता है
हड़का देता है, जम्हाई लेते हुए
सोने का टाइम हो रहा है
ऊंघ रहे हैं सारे पेड़

रात छुप के खड़ी है
क्षितिज की ओट में
सूरज के कल्टी होते ही
दादागिरी करने आ जायेगी

शाम लम्बी खिंच गयी है 
पंछी ओवरटाइम के कारण
भुनभुनाते लौट रहे हैं
ट्रैफिक बढ़ गया है आसमान का

चाँद बहुत देर से
आउट ऑफ़ फोकस था
सीन में एंट्री मारा
फुसफुसा के सिग्नल दिया

डाइरेक्शन मिलते ही
सूरज सर पे पैर रख के भागा
अगली सुबह हाँफते आएगा
बदमाश पेड़ को बिफोर टाइम जगाना जो है. 

22 comments:

  1. अगली सुबह हाँफते आएगा
    बदमाश पेड़ को बिफोर टाइम जगाना जो है.
    गज़ब के बिम्बों ने खुद मुझे भटका दिया है, सूरज क्या भटकेगा !!
    जिस पेड़ से पूछता है
    हड़का देता है, जम्हाई लेते हुए
    आपने कब देखा यह सब होते हुए समझ नहीं पा रहा हूँ

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  3. यार पूजा ! तुम क्या चीज हो यार ? गज़ब का शिल्प है तुम्हारे पास...बिल्कुल टटका...भोर के सूरज की तरह ...,लखनऊ आओ कभी तो जरूर मिलना ।

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  4. ओह क्या कल्पना है ... और शब्दों की जादूगरी ... वो तो है ही आपके पास !
    ऐसा लगा कोई animation फिल्म देख रहा हूँ !

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  5. अपनी दिनचर्या को प्राकृतिक उपमानों में निहारिये । जैसा अन्तः है, संसार भी वैसा ही दिखता है ।

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  6. आपकी कल्पनाशीलता का तो जवाब ही नहीं.................बहुत ही अनूठा चित्रण।

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  7. waah bahut khoob aaj kal ke shabd aur prakriti se unhe jodna bahut khoob...

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  8. हिंग्लिश ही सही पर कविता अच्छी है !
    कविता बन जा रही है तो सब चलाऊ है !
    बाकी तो सब बकवास है :)

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  9. :) हम अपने आप को ’पेड’ समझकर खुश हो रहे थे कि भैया सूरज की कन्फ़्यूजन मे ओफ़िस मे ऊंघा रहे है...
    और बस लास्ट मे तुमने ’बदमाश’ का ऎडजेक्टिव लगा दिया.. तब ऊ कोई और ही होगा.. हम चले सोने.. बिफ़ोर टाईम जगला जो है..

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  10. मान गये भई

    आपने तो एक सीन क्रियेट कर दिया हमारे सामने :{)}

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  11. लो तुम भी उलझ गयी इस लफंगे सूरज से..

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  12. कभी गौतम राजरिशी जी ने तुम्हें लिखा था कि "तुम वैसा ही लिखती हो जैसा खुद महसूस करती हो"

    ... और यही वजेह है की तुम्हारे लिखे से कोई भी जुड़ जाता है... और भवानी प्रसाद मिश्र की कविता की यह लाइन सच हो जाती है

    "जिस तरह हम बोलते हैं
    उस तरह तू लिख
    और इसके बाद भी
    हमसे बड़ा तू दिख"

    देखो ना सब तो वही लिखा है जो होता है, जो हम देखते हैं पर इसका treatment ऐसा देने नहीं आ रहा था हमें... यह लहरें पर हो सकता है और पूजा कर सकती थी.... सो किया... तो इसका शुक्रिया....

    जो प्रयोग तुमने कविता में किया है वो भी बहुत पसंद आया पर गुज़ारिश इत्ती सी है की उतना ही इंग्लिश रखना जितना समझ सकें...

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  13. "जिस तरह हम बोलते हैं
    उस तरह तू लिख
    और इसके बाद भी
    हमसे बड़ा तू दिख"

    waah Sagar waah.. :)

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  14. नई कलम की नई सोंच.
    खूबसूरत लेखन शैली,अद्भुत शब्द सौंदर्य, रोचक बिम्ब, कमाल के ख्याल!
    आप यूँ ही लिखती रहें. वाकई आप शब्दों से प्यार करती हैं. बधाई.

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  15. puja ...
    aap behtar likh sakti hain.
    shabdon aur bimbon ka ye ghalmel aapke swabhaw ke anurup nahi laga.
    ya ho sakta hai ki meri samajh thodi kam ho.
    par yahan pahle ki tarah tazgee aur dil ko chhoo lenewali abhiwyakti nahi hai.
    par jari rakhen...
    Intezaar rahta hai...

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  16. बहुत बढ़िया .. ग्रीष्म पर मेरी कविता पढ़ी या नही .. उसके बिम्ब देखना अच्छा लगेगा ।

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  17. वाह वाह सूरज भी कन्फ्यूजड हो सकता है पहली बार जाना.. रास्ता दिखाने वाला भी रास्ता भूल जाता है ये पता था..पर रोशनी दिखाने वाला रास्ता भूल गया.... पर फिर सोच रहा हूं कि रोशनी देने वाला रास्ता खोज रहा है....या हम ही उसे हड़का के कह रहे हैे कि जा नहीं चाहिए रोशनी....

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  18. Wow. is the word.
    It seems u r going the gulzar way..
    mingling english words in hindi poetry..a great experiment though !!

    In b/w Inviting u to comment on my new poem ..

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  19. माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,
    जहाँ बुनियाद हो,वहां इतनी नमी अच्छी नहीं होती.

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  20. पिछली पोस्ट पढ़ रहा था..मगर खटखटाने को दरवाजा नही मिला सो इस दरवाजे आ गया..
    आपकी इस पंक्ति से ५० प्रतिशत ही सहमत हूँ

    ’एक उम्र के बाद हर बेटी अपनी माँ का अक्स हो जाती है’

    तो बेटे किसका अक्स हो जाते होंगे?..मैं भी अपने मे माँ और पापा के अक्स का कॉकटेल देखना चाहता हूँ..मगर माँ का पर्सेंटेज ज्यादा होना चाहिये..!! गलत बात है..इतनी इमोशनल पोस्ट नही लिखनी चाहिये..कि पढ़ने वाला रात मे सो भी न पाये..घर से दूरी बहुत लम्बी लगने लगी है..
    इस कविता की भी तारीफ़ करनी थी..अपने अभिनव शब्द-चित्र-प्रयोगों के कारण..मगर अब नही कर पाऊँगा!!

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  21. शाम लम्बी खिंच गयी है
    पंछी ओवरटाइम के कारण
    भुनभुनाते लौट रहे हैं
    ट्रैफिक बढ़ गया है आसमान का

    Waah!!

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