05 May, 2010

जिंदगी...रिपीट...जिंदगी

बस आज मेरी बातें ख़तम हो गयीं. मैंने सारी कहानियां सुना दी तुमको, हर कविता लिख डाली. जिंदगी की हर याद का पोस्टमार्टम कर डाला. अब कुछ नहीं बचा है कहने को.

और जिंदगी तू ऐसे तंग करना बंद कर, ये तेरी हर वक़्त की खिट खिट से परेशान हो गयी हूँ मैं. अकेला छोड़ दो मुझे...मुझे किसी की बात नहीं सुननी, कोई किताब नहीं पढनी, कोई फिल्म नहीं देखनी...कुछ समझ नहीं आता है मुझे. और इस ना समझने से सर में दर्द हो रहा है और बहुत झुंझलाहट भी हो रही है.
कहीं, कुछ तो नया हो...कोई रंग, कोई पर्दा कोई रास्ता, कोई मौसम. वही सूरज रोज जिदियते धकियाते डुबा देती हूँ की जाओ, बला टली...जिंदगी का एक दिन और कटा.

एक ही दिन में अचानक कभी जिंदगी बहुत लम्बी लगती है तो कभी बहुत छोटी लगती है. किसी भी केस में हड़बड़ी उतनी ही रहती है इस जिंदगी से निकलने की. आध्यात्म मेरे पल्ले कभी नहीं पड़ा, ये उस दुनिया की बातें अधिकतर समझ नहीं आती. मैं अपनेआप को बेहद अकेला और परेशान महसूस करती हूँ. घर लौटते हुए भीगी हुयी बाइक के स्पीड मीटर पर अटका गुलमोहर के फूल की पंखुड़ी सा...अकेला, बेमकसद.

बेसिकली मैं अपनी जड़ें तलाश रही हूँ. हर इंसान का एक घर होता है...ये घर ईट, पत्थर दीवारों से बना हो जरूरी नहीं...कभी कभी किसी की बाहों से भी बना होता है...कभी किसी की आँखों में भी बना होता है. पर एक घर होता है...और इस घर का फिजिकली होना बहुत जरूरी है. ये घर हमारी सोच में या कल्पना में नहीं हो सकता. इस घर में जाने की ख्वाहिश है तो है, उस समय इस घर को वहां होना चाहिए...कैसे होना चाहिए, या होना प्रक्टिकल नहीं है ये सारी बातें मुझे समझ नहीं आती.

आजकल मैं अक्सर थकी और बीमार रहती हूँ.और मुझे ना थकी रहने की आदत है ना बीमार रहने की. मुझे मेरे सवालों के जवाब भी नहीं आते. एक क्वेस्चन पेपर है जिंदगी और मुझे फेल होना है ऐसा एक्साम के बाद लग रहा है. मैंने ऐसा कोई एक्जाम नहीं दिया जिसमें फेल हो गयी हूँ, या फेल होने का डर लगा हो. सबसे परेशानी की बात ये है की मुझे पता भी नहीं है की सवालों के सही जवाब क्या हैं तो मैं अपना स्कोर भी नहीं कैलकुलेट कर पा रही हूँ. अगली जिंदगी की प्रेपरेशन के लिए जाने कितनी देर हो गयी है. क्या लाइफ का भी री-एक्जाम होता है?


जीना बड़ा मुश्किल है यार...जाने लोग कैसे पूरी जिंदगी जी जाते हैं, हमको तो पहाड़ लगती है बची हुयी जिंदगी. बैठे ठाले, चले जा रहे हैं चले जा रहे हैं. थक गए उफ्फ्फ...

20 comments:

  1. पूजा तुमको पढ़कर ..........मैं खामोश हो गया हूँ ........................ जिंदगी रीपीट अक्सर होती रहती हैं ..............दरअसल यह सुबह शाम का रेपितिसन बेहद घिसा पिटा लगता हैं ..................फिर फ़रक किसी बंगलुरु और ठेठ हिन्दुस्तानी गाँव का भी होता हैं ............................हर इंसान का घर जारूर होता हैं .................किसी की बाहों में ..........किसी की आँखों में ...........और कभी कभी सिरफ़ किसी की बातों और यादों में ................... पर मेरा ख्याल हैं यह घर कभी इतना आसन नहीं होता ...................कड़ी धूप का सफ़र होता हैं कम्बखत ...........वैसे इतना परेशां इंसान का होना इंसानियत का सुबूत हैं .........तुम्हारी खुद की आईदेन्तिटी कभी खो नहीं सकती ...................हा इसे हासिल करना भी आसन नहीं ...............यही मज़ा हैं ज़िन्दगी का ...........और शायद यही दरद भी ................

    ReplyDelete
  2. थक गए उफ्फ्फ...
    थके हुए भी जीते हैं.
    बेहद खूबसूरत लेखन

    ReplyDelete
  3. उम्दा लेखन...
    अच्छा लगा पढ़कर!

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर तरीके से लिखा है आपने ... पर इतनी थकावट क्यूँ ... जिंदगी का मतलब ढूँढना है तो बिलकुल कमर भंदकर मैदान में उतरिये ...

    ReplyDelete
  5. bahut se din aese hi be matlab ishara karte hain?? kyon akhir kyo zee rahe hai.. bahut sundar lekhan...
    I am pasting one of my poems from my blog on the same theme... hope you guys will like it.

    How many miles to be... to be far away???
    Though I feel the breeze and away it flows,
    a tear that drops and wets the soul,
    half a mile I walked and still the same........
    How many miles to be... to be far away???

    For a reason we all shall be,
    in the sway or anti to be,
    but somehow I hope for a hope,
    and thats never be and I wonder how many??
    How many miles to be... to be far away???

    Did I expect an exception for my feel to be?
    in the night or in the day without been seen,
    begging for my virtue to stay atleast as it is...
    and I run for miles wondering...........
    How many miles to be... to be far away???

    Amit

    www.xcept.blogspot.com

    ReplyDelete
  6. दुख ही दुख जीवन का सच है लोग कहते हैं यही
    दुख में भी सुख की झलक को ढ़ूँढ़ना अच्छा लगा

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  7. मन को उड़ेल दिया । पढ़कर अच्छा इसलिये लगा क्योंकि ऐसा जीवन में कई बार होता है ।

    ReplyDelete
  8. इस एक अदद ज़िंदगी में कई जिंदगियाँ जुड़ी हैं अनगिनत .
    मेरे घर आना ज़िंदगी :)

    ReplyDelete
  9. "जिंदगी" कितना ओवर यूज्ड शब्द है, जिसे देखो इस्तेमाल कर रहा है, शब्द न हुआ जीरे का तड़का हो गया, किसी भी सब्जी में मार दो, चलता है. इस चलता है के चक्कर में कहाँ तक घूम रही हूँ चकर घिरनी सी....

    "एक ही दिन में अचानक कभी जिंदगी बहुत लम्बी लगती है तो कभी बहुत छोटी लगती है." वैसे अच्छा लिखा है.. :)

    ReplyDelete
  10. vese waqt nikalte waqt nahi lagta ye jawa din bhi u nikal jayenge ki pata hi nahi chalega or jivan ki sham ho jayegi

    ReplyDelete
  11. अरे यह तो एक छोटा सा पडाव मात्र है..... देखियेगा यही जिन्दगी कल फ़िर बहुत खुबसुरत लगेगी.

    ReplyDelete
  12. aapko padhna bhi ek treat hai...punah ek achcha lekh...

    ReplyDelete
  13. Arey ye to pata ho ki sawaal kya hain...Pareshaani ka sabab to ye hai ki sawal hi nahi pata....Hamne to jad tak khod daali....Wo jo daant dabaya tha kabhi wo bhi nadarat hain.....Uff... Jiye jaao bas yahi reeti hain so follow dear :-)

    ReplyDelete
  14. अरे ये क्या /

    ऐसी पोस्ट तो पहली बार पढ़ी है इस ब्लॉग पर

    रो के मिलना हर किसी से
    क्या गिला है जिन्दगी से

    जिंदगी का बैक पेपर अगर होने लगे तो हमें भी बताईयेगा

    हमने तो कई इग्जाम ड्राप ही कर दिए हैं

    अगर पास हो गये तो शायद लोग हमसे भी खुश रहने लगें :)

    ReplyDelete
  15. सारी बातों सही,मगर आपकी ये बात है जो जिंदगी के पटल पर एक झलक-सी दि‍खा जाती है, और जीने का सबब भी यही बन जाता है-
    घर लौटते हुए भीगी हुयी बाइक के स्पीड मीटर पर अटका गुलमोहर के फूल की पंखुड़ी सा...अकेला, बेमकसद

    ReplyDelete
  16. पूजा.......
    आपको पढना मुझे हमेशा अच्छा लगता है........कह सकते हैं कि मैं आपकी फैन हूँ। आपकी बातें मुझे अपनी सी लगती हैं.......कभी कभी इनमें अपना ही अक्स नज़र आता है.........मेरे दिल के करीब हैं आप। मैं भी मानती हूँ बड़ी ही अजीब है ये जिंदगी।
    इस समय मुझे एक शेर याद आरहा है......
    ........जितना अपनाओगे उतनी ही निखर जायेगी
    जिन्दगी ख्वाब नहीं है कि बिखर जायेगी।

    ReplyDelete
  17. शानदार प्रस्तुति. आपकी बातों में बड़ा अपनापन है.

    ____________________
    'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com

    ReplyDelete
  18. बैक ऑन द ट्रेक..पूजा

    ReplyDelete
  19. क्या हम भी कोई फंडा पटक कर जाए यहाँ से, कि सीधे लाइन पर आती हो??

    ReplyDelete
  20. जो हाल दिल का उधर हो रहा है
    वो हाल दिल का इधर हो रहा है.

    इसी हाल में यह शिल्प भी निकलता है...

    " बाइक के स्पीड मीटर पर अटका गुलमोहर के फूल की पंखुड़ी सा...अकेला, बेमकसद"

    गिने हुए कुछ महीने हैं इसके... इतनी भी जिंदगी होती क्या बात होती !!!!

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...