02 April, 2010

विरह राग

देर रात के किसी पहर में
किसी भूले राग को गाते हुए
अक्सर 'पकड़' पर अटक जाती हूँ

सुर भटके हुए लगते हैं
याद आता है अपना हारमोनियम
और सर के तबले की थाप

उँगलियों पर तीन ताल गिनती हूँ
ह्म्म्म...वक़्त की गिनती अभी दुरुस्त है
कोई दिलासा मिलता है कहीं

मैं शायद कुछ उन लड़कियों में से हूँ
जिनको रात में अकेले डर नहीं लगता
चांदनी अच्छी लगती है कमरे में

चाँद को घूरते हुए सोचती हूँ
चाँद पूरा हो गया आज बढ़ते बढ़ते
तुम्हारा काम एक महीने से चल रहा है

गुलदान में से मुरझाये फूल निकालती हूँ
तीन दिन हो गए सन्डे बीते हुए
रजनीगंधा के फूल लाने होंगे नए

लैवेन्डर कैंडिल, रुकी हुयी लौ
उँगलियों से लौ को गुदगुदी करती हूँ
उसके थिरकने पर हंसी आती है

गिटार अब एकदम आउट ऑफ़ ट्यून है
मन कसैला हो जाता है सुन कर
डेरी मिल्क का एक टुकड़ा तोड़ती हूँ

बहुत कुछ करती हूँ बहुत देर जगी हुयी
तुम्हारे बिना रात वाकई बहुत लम्बी हो जाती है...

22 comments:

  1. ओह ! हैरान हूँ !टोटली हैरान !!!!

    उँगलियों पर तीन ताल गिनती हूँ
    ह्म्म्म...वक़्त की गिनती अभी दुरुस्त है
    कोई दिलासा मिलता है कहीं

    क्या बात लायी हो तुम..

    चाँद को घूरते हुए सोचती हूँ
    चाँद पूरा हो गया आज बढ़ते बढ़ते
    तुम्हारा काम एक महीने से चल रहा है

    ... इससे याद आया - प्यार चाँद जैसा होता है, जब बढ़ नहीं पाटा तो घटने लगता है...


    गिटार अब एकदम आउट ऑफ़ ट्यून है
    मन कसैला हो जाता है सुन कर
    डेरी मिल्क का एक टुकड़ा तोड़ती हूँ

    ... यह कमाल का चित्र खिंचा है.

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  2. मैं और मेरी तन्हाई, कुछ बातें

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  3. तुम्हारे बिना रात वाकई बहुत लम्बी हो जाती है...



    कैसा अजीब ये जूनून, मेरे दिल में समाया |
    हजारो चहरो में बस तेरा ही चेहरा भाया ||



    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  4. तुम्हारे बिना रात वाकई बहुत लम्बी हो जाती है...



    कैसा अजीब ये जूनून, मेरे दिल में समाया |
    हजारो चहरो में बस तेरा ही चेहरा भाया ||



    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  5. पर कविता आउट आफ ट्यून की परफेक्ट ट्यून में है ।

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  6. तुम्हारा काम एक महीने से चल रहा है

    क्या कमाल का थोट है पूजा..

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  7. AYE LADKEE SENTI KYO KARTI RAHTI HO...?


    BAAR BAAR PADH RAHI HUN

    GOD BLESS YOU

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  8. जैसा की पिछली टिपण्णी में कहा था के अब फिर से आपको बराबर पढ़ना चाहूँगा ... और आज फिर दिल और जाह्न दोनों कितनी दूर तक चले गए पूजा के साथ ... वाकई ..

    चाँद को घूरते हुए सोचती हूँ
    चाँद पूरा हो गया आज बढ़ते बढ़ते
    तुम्हारा काम एक महीने से चल रहा है

    के खूब बात की है इन फलसफों से .....
    एक शे'र याद आया ....
    मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खडा रहा
    सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गए ...

    बधाई

    अर्श

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  9. Awww .. ur posts are always breeze of fresh air !!!

    Inviting u to comment on my new poem !!

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  10. मैं शायद कुछ उन लड़कियों में से हूँ
    जिनको रात में अकेले डर नहीं लगता
    चांदनी अच्छी लगती है कमरे में .

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  11. गिटार की ट्यून को ठीक कर लें.....भई हमें तो न सीख पाने का गम है.....जो हुनर हो उसे तराशते रहना चाहिए....उठाइए एक बार फिर गिटार औऱ छेड़ दिजिए तान, हारमोनियम भी....सीखे सुर कभी नहीं जाते ,कहीं न कहीं अंदर बजते रहते हैं....एक बार फिर से शुरु करके तो देखिए अगर फिर से तान गूंजने न लगे तो कहिएगा....

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  12. हमारी संगिनी होती तो गवाते रहते भई......भले हमें उनके इशारे पर नाच दिखाना पड़ता.....

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  13. तीन दिन हो गए सन्डे बीते हुए
    रजनीगंधा के फूल लाने होंगे नए

    very innocent creation , still very effective. Simplicity is the essence of this poem.

    Superb !

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  14. आप भावों को कुशल शब्दों से कमाल का बुनती है। हर बुनावट सुन्दर होती है। वैसे रात को ना डरने का क्या सूत्र अपनाती है मुझे भी बताए, मुझे रात को डर लगता है।

    लैवेन्डर कैंडिल, रुकी हुयी लौ
    उँगलियों से लौ को गुदगुदी करती हूँ
    उसके थिरकने पर हंसी आती है

    गिटार अब एकदम आउट ऑफ़ ट्यून है
    मन कसैला हो जाता है सुन कर
    डेरी मिल्क का एक टुकड़ा तोड़ती हूँ

    ये वाली लाईनें ज्यादा अच्छी लगी।

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  15. :) tumhaari hi chaap liye ek aur sunder post....

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