29 March, 2010

एक भूली सी धुन की तलाश में

अज़दक पर एक पॉडकास्ट सुना था कुछ दिन पहले। वैसे मैं पॉडकास्ट बहुत कम सुनती हूँ, अच्छा नहीं लगा अधिकतर जो भी सुना है। आवाज की जादूगरी मन मोह गयी...कितनी कितनी बार सुना, दोबारा तिबारा...जाने कब तक।

उसके अलावा जो एकदम से किसी याद के तार छेड़ता सा लगा वो था पार्श्व में बजता गीत। मुझे कमेन्ट करने में थोड़ा डर भी लगा, लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं गया।

deja vu...मैंने बहुत कम podcasts सुने हैं, ऐसा एक भी नहीं लगा जो याद हो.
आपको आज पहली बार सुना, ये गीत जो है आपकी आवाज के दरमयान कौन सा है? बेख्याली में मैं कई बार कोई धुन गुनगुनाती रहती हूँ...ये वैसा ही गया हुआ कोई गीत लगा.
तारीफ़ के शब्द नहीं मिल रहे हैं, आज पहली बार कमेन्ट कर रही हूँ तो थोड़ा डर भी लग रहा है. आपकी आवाज बहुत अच्छी है.
और ये पोडकास्ट तो बहुत अच्छा लगा...एक छोटी सी कहानी जैसा. अगर इस गाने का कोई लिंक दे सकेंगे तो आभारी रहूंगी


उन्होंने फिल्म का नाम बताया उससे ढूंढते ढूंढते उसके जापानी version तक पहुंची...इसी सिलसिले में उसका फ्रेंच भी सुना। गीत कहीं मन में बजता सा महसूस होता था।
यूँ तो गाना या फिर सुनना अगलग अलग वजहों से होता है...मेरे लिए सबसे खूबसूरत वजह है कि संगीत को बताया नहीं जा सकता, समझाया नहीं जा सकता। कि इस गीत को सुनकर कैसा लगता है...ये एक ऐसी चीज़ है जो खुद महसूस करनी होती है। और हर एक के लिए हर गीत का अलग असर होता है।

फिर भी मैं कोशिश करुँगी कि इस गीत को सुन कर मुझे कैसा लगता है।
कदम बिलकुल हलके हों, कि डांस करते वक़्त फ्लोर को बिलकुल हलके से छुएं, जैसे कोई तितली फूल पर पल भर को रूकती है। पैर के अंगूठे पर घूम जाऊं...थोड़ा उचक कर तुम्हारी आँखों में देखूं...और जब तुम्हारी बाहों में घूमूं तो तुम्हारी आँखों में पूरे हाल का घूमना नज़र आये बस मेरा चेहरा रुका हो। डांस करना वैसे हो जैसे तन बिलकुल हल्का हो गया हो और ख़ुशी से पैर जमीन पर ना पड़ सकें।

बोल ऐसे हैं कि इनको गाने के लिए फ्रेंच सीखने का मन करे, ऐसी हलकी सी आवाज में हवा में तिरता सा गीत हो खुशबू की तरह। खूबसूरत सी गुलाबी रंग कि कोई ड्रेस हो जिसमें खूब सारी झालर हो...और रात पर रात बीतती जाए पर हम बस आँखों में आँखें डाले थिरकते रहे...और मैं कह सकूँ कि "la vie en rose/ looking at the world through rose coloured glasses".

कल सबरीना देख रही थी, एक पुरानी इंग्लिश फिल्म है audrey hepburn की...वो बेहद खूबसूरत है...और फिर मुझे याद आया कि ये गीत ऐसा सुना हुआ और आत्मा के तार छेड़ता क्यों लगता है। इसके साथ एक बेहद रूमानी प्यार का ख्वाब जो जुड़ा हुआ है।

कॉलेज में फिल्म अप्रेशिअशन के क्लास में दो फिल्में देखी थी इस बेहद खूबसूरत कलाकार की "रोमन होलीडे" और "सबरीना"। उस कच्ची उम्र में ये खूबसूरत गीत कितने शाम अकेले में गुनगुना के थिरकती रही थी...इंतज़ार में...मेरे प्रिंस चार्मिंग के इंतज़ार में। परीकथाओं पर यकीं करती थी, आज भी करती हूँ।

इसलिए ये गीत पहली नज़र के प्यार की तरह ताजगी से भरा अनछुआ सा लगता है...प्यार...दुनिया को गुलाबी चश्मे से ही तो दिखाता है।

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ये रहा



10 comments:

  1. इसपर पोस्ट काकी लिखी जा सकती थी और तुमने पहल कर दी.... मैं भी फ़िराक में था लेकिन इतने सीधे सीधे नहीं. मैं भी चाहता हूँ की background में कुछ बजता रहे... और जिस तरेह से वो पोडकास्ट है वो कमाल है... यह वाकई भूली हुई धुन है... रूह को खोजती हुई... कुछ आंचलिक लोकगीतों में भी ऐसी ही खुशबू होती है.

    "कदम बिलकुल हलके हों, कि डांस करते वक़्त फ्लोर को बिलकुल हलके से छुएं, जैसे कोई तितली फूल पर पल भर को रूकती है। पैर के अंगूठे पर घूम जाऊं...थोड़ा उचक कर तुम्हारी आँखों में देखूं...और जब तुम्हारी बाहों में घूमूं तो तुम्हारी आँखों में पूरे हाल का घूमना नज़र आये बस मेरा चेहरा रुका हो। डांस करना वैसे हो जैसे तन बिलकुल हल्का हो गया हो और ख़ुशी से पैर जमीन पर ना पड़ सकें।"

    यह तो अपने हिसाब से सही व्याख्या कर दिया तुमने... पर हमारे हिसाब से यह उल्टा होगा... लिंक देकर सही किया... शुक्रिया...

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  2. आपके पोस्ट के जवाब में यही कहूँगा के फिर से नियमित हो रहा हूँ आपको पढ़ने के लिए...


    अर्श

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  3. एकदम खुशबूदार. हमने भी सुना!

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  4. ओह पूजा.. जैसा बहाव और जादू परमोद जी कि आवाज में पहले सुना था, उसी बहाव को आज यहाँ पढ़ रहा हूँ.. अद्भुत..

    परमोद बाबू के बाकी पोडकास्ट ढूंढ ढूंढ कर सुनो, उनके बिलोग के कोनों दोगा-दुसाईन में नुकाया होगा.. सब्बे के सब गजबे है.. एक ठो परमोद जी का पंखा आदमी है, भिकास. उहो कभी कभार पौडकास्ट करता है.. उसका पौडकास्ट भी बढ़िया रहता है.. गुरु जितना बढ़िया तो नहीं, पर फेनो ठीके रहता है.. चेलवा भी त उ परमोद बाबू का ही है ना.. क्या कहा, भिकास के बिलोग का पता चाहिए? अरे परमोद बाबू के बिलोग में "भिकास" के नाम से भेंटा जायेगा.. :)

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  5. प्रमोद जी को अभी पढना शुरु किया है और समझना भी.. कभी कितनी सीधी जबान मे कितना काम्प्लेक्स सा कुछ कह देते है और कभी कोई सीधी चीज़ को इतना काम्प्लेक्स कर देते है कि पूछो मत..

    ’Audrey Hepburn' का मै फ़ैन रहा हू और 'Gregory Peck' का भी.. रोमन हालीडे इसलिये और भी जबरदस्त लगती है.. ’दिल है कि मानता नही’ उसी मूवी को चुराने की एक नाकामयाब कोशिश है..
    'breakfast at tiffany' और ’love in the afternoon' अभी भी सिस्टम मे पडी हुयी है..

    और ’विकास’ तो अच्छा है ही.. दोनो लोगो ने साथ मे कुछ वीडियोज़ भी शूट किये है..देखना, तुम्हे पसन्द आयेगे..
    अभी कुछ दिन पहले मुझसे पीडी ने २००६ की एक पोस्ट पर पूछा कि ’२००६ से सीधा २००८.. बीच मे कहा रहे’ तो बस फ़िर से तुम्हारा नाम आ गया.. तुम ब्लाग पर न आती तो हम कूप मन्डूक ही बने हुये रहते अभी तक.. :)

    इस बात का तो मै ज़िन्दगी भर आभारी रहने वाला हू :)

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  6. तो ये तुम हो पुजा..

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  7. प्रमोद जी तो खैर एक समंदर है .



    .."सबरीना पहली बार किसी चैनल पर देखी थी देर रात...नींद नहीं आ रही थी ...सो यूँ ही चैनल पलटते हुए .....नीचे अंग्रेजी के सब टाइटल थे ...फिर नींद उड़ गयी....
    ..

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  8. शुक्रिया सागर का, जिसके कमेंट को अजदक पर आज देख कर इस पोस्ट का लिंक मिला..जिसे शायद मैं मिस कर देता..पहले तो प्रमोद जी ने मारा ही था फिर आपकी सबरीना ने आखिरी कील भी ठोक दी..आज की रात कत्ल हो गयी...उफ़्फ़!..अफ़सोस भी हुआ इसे मिस कर जाने का और गुस्सा भी आया कि सबरीना का यह म्यूजिक पहले क्यों नही सुना..और अफ़सोस और गुस्से की इसी काकटेल मे यहाँ से दबे पाँव गुजरने वाला था..कि एक और ऐसे ही साउंड्ट्रैक का ख्याल आ गया..वांग कार वाइ की फ़िल्म ’इन दि मूड फ़ार लव’ जब देखी थी तो इसका नशा इतना तगड़ा हुआ था कि दिमाग की हार्ड डिस्क से खुद अपना नाम तक डिलीट हो गया था...और इसका म्यूजिक..ओह गॉड..जहर सा है! ऐसा कि मैं अगर पूरा पागल हुआ जिस दिन...तो यह फ़िल्म और इसका म्यूजिक उसकी तमाम वजहों मे से एक होगा..इसका यू-ट्यूब लिंक है यह
    और यह

    ..और अगर अच्छा न लगे तो मुझे न कहियेगा प्लीज..शायद बर्दाश्त न कर पाऊँ.. :-)

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  9. also listen to edith piaff singing la vie en rose

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