21 November, 2009

आउट ऑफ़ बॉडी एक्सपीरिएंस

रात के किसी अनगिने पहर
तुम्हारी साँसों की लय को सुनते हुए
अचानक से ख्याल आता है
कि सारी घर गृहस्थी छोड़ कर चल दूँ...

शब्द, ताल, चित्र, गंध
तुम्हारे हाथों का स्पर्श
तुम्हारे होने का अवलंबन
तोड़ के कहीं आगे बढ़ जाऊं

किसी अन्धकार भरी खाई में
चुप चाप उतर जाऊं
जहाँ भय इतना मूर्त हो जाए
कि दीवार सा छू सकूं उसको

अहसासों के परे जा सकूँ
शब्दों के बगैर संवाद कर सकूँ
किसी और आयाम को तलाश लूँ
जहाँ ख़ुद को स्वीकार कर सकूँ फ़िर से

इस शरीर से बाहर रह कर देख सकूँ
अपनी अभी तक की जिंदगी को
तटस्थ भाव से
एक लम्हे में गुजर जाए एक नया जन्म

मेरी आत्मा फ़िर से लौट आए इसी शरीर में
शायद जीवन के किसी उद्देश्य के लिए
भटकाव बंद हो जाए, कोई रास्ता खुले
छोर पर नज़र आए रौशनी की किरण

एक पल की मृत्यु शायद सुलझा दे
जिंदगी की ये बेहद उलझी हुयी गुत्थी
तुमसे पूछूं जाने के लिए
मुझे जाने दोगे क्या?

17 comments:

  1. एक पल की मृत्यु शायद सुलझा दे
    जिंदगी की ये बेहद उलझी हुयी गुत्थी
    तुमसे पूछूं जाने के लिए
    मुझे जाने दोगे क्या?

    हम्म! क्यूँ इतनी मायूसी? किसी भी चीज से निकल जाने से गुथ्थी नहीं सुलझती...उसे वहीं रहते सुलझाना होता है.

    गंभीर भाव!

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  2. Rat bhar jag kar yahi sab likho!!

    abhi padha nahi hai.. baad me padhunga.. :)

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  3. मुक्ति की चाह और एक पल की मृत्यु !
    मैं इन भावों को अपने बहुत निकट पाता हूँ।
    नहीं समीर जी, इसे मायूसी नहीं कहते।

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  4. इस शरीर से बाहर रह कर देख सकूँ
    अपनी अभी तक की जिंदगी को
    तटस्थ भाव से
    एक लम्हे में गुजर जाए एक नया जन्म

    ... यह हुई ना बात !

    एक गीत याद आया...

    याद में तेरी जाग-जाग के हम रात भर कवियाया करते हैं...

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  5. पिछली कविता में भी दो पैरे लाजवाब थे... इसमें भी जो हाई लाइट किया है वो भी... अगर कविता में शब्द, शिल्प, संयोजन, बिम्ब जैसा कुछ होता है तो (मुझे नहीं पता है इसलिए) तो उसपर यह खड़ी उतरती दिख रही है... पहले वाले कमेन्ट में अंतिम लाइन को अन्यथा मत लीजियेगा... प्लीज़.... वो मैंने अपने ऊपर लिखा है...

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  6. इस शरीर से बाहर रह कर देख सकूँ
    अपनी अभी तक की जिंदगी को
    तटस्थ भाव से
    एक लम्हे में गुजर जाए एक नया जन्म
    कुछ उत्साहित से जिग्यासु भाव।

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  7. एक प्रभावपूर्ण ओ बी ई कविता !

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  8. कविता तो बहुत अच्छी है लेकिन मै क्या करूँ ..मै आत्मा को नहीं मानता इसलिये इसके निहितार्थ मेरे लिये नही हैं ।

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  9. यह अनुभव बहुत सहज लगता है। काया से परे का अनुभव।

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  10. सुंदर रचना ... अपने बीतर झांका ही नहीं बल्कि बहुत गहरा उतरी हो.. कितने ही मुकामों और हालात पर आदमी सोचता है -

    एक पल की मृत्यु शायद सुलझा दे
    जिंदगी की ये बेहद उलझी हुयी गुत्थी

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  11. कविता बेहद भाव पूर्ण परन्तु निराशावादी लगी...कहीं कही आपके बेबाक व्यक्तित्व से हटकर लिखी गयी रचना है.थोडा सा चकित किया इस अभिव्यक्ति ने!

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  12. Lag raha hai kuch khoj rahi hai aap....khoj to lagatar chalti rahti hai...ek Pal ki mirtu ki jaroorat nahi hai...aap khud inta acha likhti hai ki aapki khoj jald porrti hogi

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  13. Nirshavadi .........no,its not !! U r in search ....keep going ....asli annd isi mein hai !!!

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  14. आज एक अरसे के बाद, आशा और निराशा के बीच झूलती मानवीय आकंछायो की झलक, फिर से आपके लेखन में मिली हैं.

    अब किसी दौड़ में, वोट के लिए दोस्तों से कहने की आवश्यकता नहीं है. यह कविता अपने आप में असंख्य वोटों के बराबर है.

    शुभकामनाएं!

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  15. सुन्दर रचना. दर्द को करीब से महसूस किये हो.

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  16. nice poem, songs list plsssssssss :D

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