12 February, 2009

बागी हुयी लड़की...

आज भी पुरानी डायरी के पन्ने ही हैं, बस इतना अन्तर है ये मेरे नहीं है...न मुझे मालूम है की ये किसकी लिखी कविता है...

तोड़कर रिश्ते पुरानी व्यस्त राहों से
चल रही बचकर जमाने की निगाहों से
जिंदगी है आजकल भागी हुयी लड़की...

छोड़कर अपनी पुरानी रूढियों के घर
आस्था, अनुशाषणों के बांधकर बिस्तर
फ़िर बढ़ा नाखून लंबे खोल कर निज केश
आ गई जो ख़ुद बगावत की नदी के देश
जिंदगी है आजकल बागी हुयी लड़की...

आज है जिस ठांव उसका नाम है जंगल
रह गए जिसके तिमिर में दस्युओं के दल
क्रूर भूखे भेड़ियों के चीखते स्वर से
चोर डाकू और लुटेरों के बढे डर से
जिंदगी है रात भर जागी हुयी लड़की...

एक दिन पूछा अचानक जबकि मैंने नाम
बहुत धीरे से बताया जिंदगी ने "शाम"
कर लिए हैं दांत तब से मौत ने पैने
और तब से नाम उस का रख दिया मैंने
वक्त की बन्दूक से दागी हुयी लड़की...

ये कविता बहुत बचपन में पढ़ी थी...और जाने इसमें कैसा आकर्षण है...कई बार पढ़ती थी...कुछ अपनी सी लगती थी ये लड़की, ये जिंदगी...ये बागी शब्द, शायद उस उम्र का असर हो। पर अब भी ये कविता अच्छी लगती है...सोचा आपसे भी बाँट लूँ, शायद आपमें से किन्ही को इसके लेखक का नाम पता हो.

17 comments:

  1. hmmm lekhak ka naam to pata nahi
    :-( par kavita achi hai

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  2. लेखक का पता नही क्या नाम है, पर कविता बहुत ही अच्छी है....!

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  3. जिस भी इ‍ंसान ने लिखी है पर लिखी बडी जबरद्स्त हैं। हर लफ़्ज शानदार।
    तोड़कर रिश्ते पुरानी व्यस्त राहों से
    चल रही बचकर जमाने की निगाहों से
    जिंदगी है आजकल भागी हुई लड़की

    अद्भुत।

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  4. किस कलम से लिखती हो इतनी शानदार कविताएं...छुअन में रेशम सी..लेकिन तासीर में कभी तलवार की धार की तरह तो कभी जिंदगी के दुश्वर अहसास..हिंदी साहित्य आपसे उम्मीद बांध ले तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

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  5. एक खूबसूरत रचना बाँटने के लिये धन्यवाद.

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  6. bahut hi achchhi rachana aur prastutikaraN. badhaai.

    mukesh kumar tiwari

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  7. ultimate ---superb ....jisne bhi likhi hai ...kamaal kar diya hai

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  8. jisne bhi likhi hai ek bahut hi achhi kavita likhi hai,kuch apni si kuch tikhe nakhunsi.

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  9. जितनी तारीफ़ की जाए कम है। अच्छी और सच्ची कविता पढने का मौका देने के लिए आभार्।

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  10. किस कलम से लिखती हो इतनी शानदार कविताए.

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  11. एक दिन पूछा अचानक जबकि मैंने नाम
    बहुत धीरे से बताया जिंदगी ने "शाम"
    कर लिए हैं दांत तब से मौत ने पैने
    और तब से नाम उस का रख दिया मैंने
    वक्त की बन्दूक से दागी हुयी लड़की.

    कविता बहुत ही अच्छी.

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  12. छोड़कर अपनी पुरानी रूढियों के घर
    आस्था, अनुशाषणों के बांधकर बिस्तर
    फ़िर बढ़ा नाखून लंबे खोल कर निज केश
    आ गई जो ख़ुद बगावत की नदी के देश
    जिंदगी है आजकल बागी हुयी लड़की...


    कुछ-कुछ जानी पहचानी सी लग रही है ये लड़की.

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  13. bahut achhi kavita hai...aisi aur kavitaon se milwaiye yahi guzarish hai

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  14. जिन की भी है, बहुत प्यारी रचना है.. बन्द्टने के लिए शुक्रिया...

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  15. पूजा, यह गीत डॉ कुंअर बेचैन का है. उनका पता है - II एफ- 51, नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ. प्र.), 201001 , उनका मोबाइल नंबर है- 09818379422

    अजय मलिक

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