26 February, 2009

सावित्री...अंधेरे से रोशनी की ओर

बहुत सी चीज़ें ऐसी होती हैं जो अचानक से आती हैं और जिंदगी में कई मोड़ों पर बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सहायक होती है। इसी तरह कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक लम्हे में ही कुछ ऐसा रिश्ता कायम कर लेते हैं कि लगता है उन्होंने हमारी रूह को छू लिया है...और हम अन्दर से कुछ एकदम नए हो जाते हैं...जैसे कि पहले कभी नहीं थे। किसी एक शख्स का आना जैसे गहनतम अन्धकार में रोशनी की एक किरण जैसा होता है, भले उसके आने से अँधेरा पूरी तरह न मिट पाये पर वो पहले की तरह का अँधेरा नहीं रह जाता...

सावित्री और सत्यवान की कहानी लगभग हम सब लोग जानते हैं...मुझे न जाने क्यों बचपन से ये कहानी बड़ी आकर्षित करती है...कुछ बड़े होने पर थोड़ा अंदाजा हुआ कि क्यों...हमारे बिहार में एक व्रत रखा जाता है वट-सावित्री, आम बोलचाल की भाषा में इसे बरसाएत कहते हैं, मेरा जन्म इसी व्रत के पारण के दिन हुआ था। यानि व्रत रखने के दूसरे दिन, जब सुबह को औरतें वट वृक्ष की पूजा कर के पारण करती हैं यानि अन्न जल ग्रहण करती हैं।

सावित्री के बारे में सोच कर लगता था, कैसी होगी वह स्त्री जो यमराज से अपने पति को जीत लाती है...उसकी विद्वता और उसकी अदम्य इच्छाशक्ति प्रेरक लगी है मुझे...और सबसे बढ़कर उसका प्रेम जो नारद की इस भविष्यवाणी पर भी अटल रहता है कि जिससे वह शादी करने जा रही है वह एक साल में मृत्यु को प्राप्त होगा।

सावित्री से दूसरी बार परिचय कराया कुणाल ने...या यूँ कहूँ कि सावित्री ने हमारा परिचय कराया तो ग़लत न होगा...शुरुआत इस पंक्ति से हुयी
"I am the static oneness and you are the dynamic power"
यह पंक्ति इतनी सुनी सुनी सी लगी जैसे आत्मा के अन्धकार में कहीं ज्ञान की कोई दीपशिखा जल उठी हो...इस एक पंक्ति के रहस्यों को खोजते हुए मैं श्री अरविन्द की सावित्री के पन्ने पढ़ती गई।
श्री अरविन्द के बारे में इससे पहले बस इतना ही पता था की वो एक स्वंत्रता सेनानी रहे हैं, पर उनके जीवन का ये आध्यात्मिक पक्ष बिल्कुल नहीं पता था मुझे।
सावित्री की पहली लाइन है
"It was the hour before the gods awake."
एक वाक्य जैसे सदियों से मन में घूमते सवालों का जवाब बन कर खड़ा था...भगवान भी सोते हैं...शायद इसलिए कई बार हमारी प्रार्थना सुन नहीं पाते। सावित्री सिर्फ़ एक किताब नहीं है, एक कविता नहीं है इसे पढ़ना जैसे किसी और आयाम में ले जाता है...ऐसे अनुभव जो शायद बिल्कुल अनछुए हैं नए हैं और शायद धरती पर रहकर महसूस नहीं किए जा सकते।

कई बार जब मुश्किलों का कोई रास्ता नही मिल पाता मैं सावित्री खोल लेती हूँ...इसके शब्दों में अजीब शान्ति है, मानो ये शब्द नहीं श्लोक हों...परम सत्य को शब्दों में लिख दिया गया हो जैसे।

मैं कुछ वो पंक्तियाँ लिख रही हूँ जो मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं...

A point she has reached where life must be in vain
Or in her unborn element awake
Her will must cancel her body's destiny
---------------------

The fixity of the cosmic sequences
Fastened with hidden and inevitable links
She must disrupt, dislodge by her soul's force
Her past, a block on Immortal's road
Make a rased ground and shape anew her fate.
--------------------
Her being must confront its formless cause
Against the universe weigh its single self.
--------------------
On the bare peak where Self is alone with Naught
And life has no sense and love no place to stand
She must plead her case upon extinctions's verge
In the world's death-cave uphold life's helpless claim
And vindicate her right to be and love.
-------------------

7 comments:

  1. Sri Aurobindo's "SAVITRI" is an epic in itself. The more, the more number of times one reads it, the more, and more profound messages emerge out of this mesmerising work.

    "O woman soul, what light, what power revealed,
    Working the rapid marvels of this day,
    Opens for us by thee a happier age ?"


    ""Awakened to the meaning of my heart,
    That to feel love and oneness is to live,
    And this is the truth I know or seek, O sage."

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  2. बहुत ही सुन्दर तत्वयुक्त आलेख. पहली पंक्ति से ही हम अभिभूत हो गए. आभार.

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  3. श्री अरविन्दो की सावित्री पढ़ना काव्य पढ़ना नहीं, मान्त्रिक शक्ति से लोडेड पुस्तक पढ़ना है।

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  4. मंत्र-मुग्ध कर दिया इस पोस्ट ने. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. ्पुस्तक नहीं पढ़ी.. पर अब आपने उत्सुकाता बढा दी... करेगें जुगाड़..

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  6. पढने का मौका मिला तो ज़रूर पढूंगा।बहरहाल आपने पोस्ट भी अच्छी लिखी है।

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  7. लगता है पढ़नी चाहिए यह किताब।

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