19 February, 2009

पुराने दोस्त

आज एक पुराने दोस्त से बात हुयी
और जाने कैसे जख्मों के टाँके खुल गए

सालों पुरानी बातें जेहन में घूमने लगीं
खुराफातों के कुछ दिन अंगडाई लेकर उठे

बावली में झाँकने लगी कुछ चाँद वाली शामें
पानी में नज़र आई किसी की हरी आँखें

सड़कों पर दौड़ने लगी कुछ उंघती दुपहरें
परछाई में मिल गया एक पूरा हुजूम

सीढियों पर हंसने लगे कुछ पुराने मज़ाक
फूलों पर उड़ने लगी मुहब्बत वाली तितली

बालकनी में टंग गया तोपहर का गुस्सैल सूरज
गीले बालों में उलझ गई पीएसार की झाडियाँ

सड़कों पर होलिया गई फाग वाली टोली
रंगों में भीग गया पूरा पूरा हॉस्टल

चाय की चुस्कियों में घुल गए कितने नाम
पन्नो के हाशियों पर उभर गई कैसी गुफ्तगू

गानों का शोर कब बन गया थिरकन
फेयरवेल बस उत्सव सा ही लगा था बस

पर वो जाने पहचाने चेहरों की आदत
कई दिनों तक सालती रही...

उस मोड़ से कई राहें जाती थी
और हम सबकी राहें अलग थी

कभी कभी लगता है
जेअनयू के उसी पुल पर
हम सब ठहरे हुए हैं...
जिसके पार से दुनिया शुरू होती थी

आज हम सब इसी दुनिया में कहीं हैं
पुल के उस पार के जेअनयू को ढूंढते हुए

यूँ ही कभी कभी
कोई दोस्त मिल जाता है

तो चल के उस पुल पर कुछ देर बैठ लेते हैं
इंतज़ार करते हैं...शायद कुछ और लोग भी लौटें

जाने उस पुल पर अलग अलग समय में
हम में से कितने लोग अकेले बैठते हैं...

कभी इंतज़ार में...और कभी तन्हाई में।

14 comments:

  1. इस कविता को पढ़कर कुछ अपनापन-सा लगा

    ---
    गुलाबी कोंपलें
    चाँद, बादल और शाम

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  2. beautiful words..

    कभी कभी लगता है
    जेअनयू के उसी पुल पर
    हम सब ठहरे हुए हैं...
    जिसके पार से दुनिया शुरू होती थी

    आज हम सब इसी दुनिया में कहीं हैं
    पुल के उस पार के जेअनयू को ढूंढते हुए

    ReplyDelete
  3. मेरी पसंदीदा पंक्तियाँ .....

    तो चल के उस पुल पर कुछ देर बैठ लेते हैं
    इंतज़ार करते हैं...शायद कुछ और लोग भी लौटें

    जाने उस पुल पर अलग अलग समय में
    हम में से कितने लोग अकेले बैठते हैं...

    कभी इंतज़ार में...और कभी तन्हाई में।

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  4. जाने उस पुल पर अलग अलग समय में
    हम में से कितने लोग अकेले बैठते हैं...

    कभी इंतज़ार में...और कभी तन्हाई में।

    bahut sahi kaha,bahut se log purane dost milne ke intazaar mein rehte hai,hum bhi,bahut achhi lagi kavita.

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  5. एक ये दिन जब सारी सड़के रूठी रूठी लगती है
    एक वो दिन जब "आओ खेले " सारी गलिया कहती थी -javed akhtar

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  6. क्या कहें, पुराने दोस्त मिलते हैं तो अपने झमेलों में जकड़े लगते है। नये तो निभते हैं औपचारिकता!

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  7. पुरानी बातों को लिखना और पढना सुकून सा देता है।

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  8. "कभी इंतज़ार में...और कभी तन्हाई में।"

    पूजा जी, आपकी कलम पाठक के दिल को गहराई तक छू जाती है. आपका चिट्ठा बुकमार्क कर लिया है.

    सस्नेह -- शास्त्री

    -- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.

    महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  9. सीढियों पर हंसने लगे कुछ पुराने मज़ाक
    फूलों पर उड़ने लगी मुहब्बत वाली तितली

    hame bhi apna college yaad aa gaya....

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  10. बहुत खास हे सचमुच
    मैं आपकी कविताओ का फैन हूं.....
    nice poem....
    Kr. vikash
    news 24, delhi

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  11. कभी गलत कहने,या मीन-मेख निकालने का मौका दोगी या नही?या हमेशा तारीफ़ करने पर मज़बूर करती रहोगी।बहुत अच्छा लिखा आपने,एकदम दिल से,शब्दो का ज़ादू दिखा रही है आप,रचना खतम होने पर ही वापस अपनी दुनिया मे लौटना संभव हो पाता है।

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  12. आपकी कविता के साथ हम भी किसी अलग पुल पर पहुँच गये और सोचा शायद सच ही तो है दूसरे भी आ कर गाहे बिगाहे अकेले बैठते तो होंगे ही.....!

    भावपूर्ण लिखती हैं आप....!

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  13. सुन्दर एवं भावपूर्ण

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