17 February, 2009

अजनबी शख्स

वो शख्स जो अब अजनबी है

जाने कब हाथ छुड़ा कर आगे बढ़ गया

और हम हर मोड़ पर पशोपेश में पड़ जाते हैं

किधर जायें...जाने किधर का रुख किया होगा उसने

वो शख्स अब भी अनजाने चेहरों से झाँकता है

कई बार भीड़ में लगा है कि वोही है

और हम तेज़ी से चल कर उसे करीब से देखना चाहते हैं

मगर वो तो जैसे जिंदगी की तरह...भागता जाता है

किसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे

थकते नहीं हो? यूँ भागते भागते

भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!

16 comments:

  1. किसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे

    थकते नहीं हो? यूँ भागते भागते

    भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!


    b'ful poem

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  2. बहुत खूब..पर वो मंजिल ही क्या जो इतनी आसानी से मिल जाये?

    रामराम.

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  3. क्या कहूं,कविता है हकीक़त या फ़िर दोनो,जो भी है दिल से लिखी गई बात है जिसकी तारीफ़ सच्चे दिल से ही हो सकती है।

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  4. इन दिनों तेजी से लिख रही हो...ठहर कर समझने की कोशिश कर रहा हूँ...ओर दोबारा पढता हूँ....तुम्हारी छाप इसमे दिखाई देती है...

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  5. किसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे

    थकते नहीं हो? यूँ भागते भागते

    जवाब मिले तो हमें भी बताइयेगा....ये अजनबी जानकार, कैसे रह लेते है, यूँ मंजिलों से दूर.....!

    मन को छूती कविता...!

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  6. खुशकिस्मत हो कवितए लिख रही हो.. वरना अपने यहा तो मंदी है.. कोई कविता लिख ही नही पाया.. कई दिनो से.. अब सोचता हू लिखना पड़ेगा..

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  7. आपकी कविताएं पसंद आयीं, कृप्या मेरा ब्लाग भी विजि़ट करें।

    विप्लव
    ...


    http://www.krantikatoofan.blogspot.com

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  8. और हम हर मोड़ पर पशोपेश में पड़ जाते हैं
    किधर जायें...जाने किधर का रुख किया होगा उसने
    वो शख्स अब भी अनजाने चेहरों से झाँकता है
    कई बार भीड़ में लगा है कि वोही है

    बहुत बढ़िया ..लगा मेरे दिल की बात तुमने कह दी .बहुत सुंदर

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  9. aapki poem mere blog pe :-)

    http://rohittripathi.blogspot.com

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  10. किसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे

    थकते नहीं हो? यूँ भागते भागते

    भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!

    sahi ye sawal hamare apne hi lagte hai,wo ajnabi hum se bhagta hai,aapko jawab milehame bhi bata dena,bahut gehre ehsaas nikle hai dil se aaj,bahut achhi lagi aapki kavita badhai

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  11. When I read your profile where you have mentioned " I love playing with words..." i said what's great?...

    But after reading this poem, I have to admit...liked the poem

    Nice work..keep it up..

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  12. हर बार की तरह उम्दा लिखा है आपने।
    किसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे
    थकते नहीं हो? यूँ भागते भागते
    भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!

    वाह क्या बात हैं।

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  13. बहुत ही सरल और सुंदर अभिव्यक्ति. 'भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!'. कहाँ तो लोग मंजिल की तलाश में लगे रहते हैं और यहाँ मंजिल ही तलाश रही है. बहुत खूब. आभार.

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  14. manzil se pichha chudate chudage kahan bhagte ho

    nice thoughts.

    -tarun

    http://tarun-world.blogspot.com

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  15. raste badal jain to manzile khud ba khud badal jati hain......

    Bahut pyari kavita hai

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